जाली दावों और संपत्ति की जब्ती से बचाव: भारतीय न्याय संहिता, 2023 के सेक्शन 244 और 245
Himanshu Mishra
10 Oct 2024 5:13 PM IST
भारतीय न्याय संहिता, 2023, जो 1 जुलाई 2024 से लागू हो चुकी है और जिसने भारतीय दंड संहिता की जगह ली है, संपत्ति के जाली दावे और अदालत के आदेशों (Decree) में धोखाधड़ी से जुड़े विभिन्न कृत्यों को संबोधित करती है। सेक्शन 244 और 245 विशेष रूप से संपत्ति के जाली दावों और अदालत के आदेशों में धोखाधड़ी पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
इन प्रावधानों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी व्यक्ति कानूनी प्रक्रियाओं को गलत दावों या धोखाधड़ी से प्रभावित करके संपत्ति की जब्ती (Seizure) या अदालत के आदेशों से बच न सके। आइए, इन सेक्शनों को सरल शब्दों में समझें और जानें कि इनमें दिए गए कृत्यों और सज़ाओं का क्या महत्व है।
सेक्शन 244: संपत्ति की जब्ती से बचने के लिए जाली दावा (Fraudulent Claim to Property)
यह सेक्शन उन व्यक्तियों पर केंद्रित है जो यह जानते हुए भी कि उनका उस संपत्ति पर कोई वैध अधिकार नहीं है, जाली तौर पर संपत्ति को स्वीकारते हैं, प्राप्त करते हैं, या दावा करते हैं।
अगर कोई व्यक्ति धोखा देकर अपनी संपत्ति को दंड (Forfeiture) या जुर्माने (Fine) से बचाने के लिए झूठे दावे करता है, तो उसे इस सेक्शन के तहत दंडित किया जाएगा। सरल शब्दों में कहें तो यह क़ानून उन लोगों को दंडित करता है जो अपनी संपत्ति पर कानूनी कार्यवाही (Legal Action) से बचने के लिए जाली दावा करते हैं या दूसरों को धोखा देते हैं।
इस सेक्शन के तहत सज़ा में दो साल तक की कैद, जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।
उदाहरण:
मान लीजिए, रोहन के पास एक मकान है जिसे अदालत द्वारा एक जुर्माने के कारण जब्त किया जाने वाला है। यह जानते हुए, रोहन अपनी संपत्ति को धोखाधड़ी से अपने दोस्त अंकित के नाम पर कर देता है और दावा करता है कि अंकित उस मकान का असली मालिक है। अंकित, यह जानते हुए कि उसका मकान पर कोई कानूनी अधिकार नहीं है, फिर भी उस संपत्ति को स्वीकार करता है ताकि रोहन को जब्ती से बचाया जा सके। इस धोखाधड़ी के लिए दोनों पर सेक्शन 244 के तहत मुकदमा चलेगा।
यह सेक्शन सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति धोखा देकर या अपनी संपत्ति छिपाकर कानूनी परिणामों से न बच सके।
सेक्शन 245: धोखाधड़ी से अवैध देयता स्वीकारना (Fraudulently Suffering a Decree for Sum Not Due)
सेक्शन 245 उन व्यक्तियों के खिलाफ है जो जानबूझकर धोखाधड़ी से अपने खिलाफ ऐसा अदालत का आदेश (Decree) पारित करवाते हैं, जिसमें उनसे कोई ऐसी राशि वसूल की जाए जो वास्तव में देय नहीं है, या उनके खिलाफ ऐसा आदेश पारित हो जिसमें उन पर कोई संपत्ति की देयता दिखाई जाए।
इस धोखाधड़ी का उद्देश्य यह होता है कि अदालत के आदेश में उल्लिखित राशि या संपत्ति को किसी दूसरे व्यक्ति के साथ मिलकर अवैध लाभ उठाया जा सके। सरल शब्दों में कहें तो यह क़ानून उन व्यक्तियों को दंडित करता है जो धोखाधड़ी से किसी अन्य व्यक्ति को फायदा पहुँचाने के लिए अपने खिलाफ जाली आदेश पारित करवाते हैं।
इस सेक्शन के तहत सज़ा में दो साल तक की कैद, जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।
उदाहरण:
मान लीजिए, A नामक व्यक्ति Z के खिलाफ एक मुकदमा दायर करता है और Z को यह पता है कि A मुकदमा जीतने वाला है और Z की संपत्ति जब्त हो सकती है। यह जानते हुए, Z धोखाधड़ी से B नामक व्यक्ति के पक्ष में एक और मुकदमा चलने देता है और अदालत से B के पक्ष में ज़्यादा बड़ी राशि का आदेश पारित होने देता है।
जबकि वास्तव में Z का B के प्रति कोई कर्ज़ नहीं था। यह चालाकी इसलिए की जाती है ताकि Z की संपत्ति की बिक्री होने पर B को भी फायदा हो सके। यह कार्रवाई सेक्शन 245 के तहत दंडनीय है।
यह सेक्शन सुनिश्चित करता है कि लोग अदालत की प्रक्रिया को धोखाधड़ी से प्रभावित न कर सकें और अवैध रूप से लाभ न उठा सकें।
सेक्शन 244 और 245 से प्राप्त मुख्य तथ्य
दोनों सेक्शन संपत्ति और अदालत के आदेशों में धोखाधड़ी से संबंधित हैं। इनका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी व्यक्ति कानूनी प्रक्रिया (Legal Process) को धोखाधड़ी या गलत दावों के जरिए प्रभावित न कर सके। प्रावधानों का मुख्य लक्ष्य उन लोगों को सज़ा देना है जो जानबूझकर जाली दावे करते हैं, झूठी स्वीकारोक्ति (False Acceptance) देते हैं, या धोखे से अदालत के आदेश पारित करवाते हैं।
इन मामलों में प्रमुख सिद्धांत यह है कि अदालत की प्रक्रियाओं का पवित्रता (Sanctity) बनी रहे और धोखाधड़ी के कृत्यों से न्यायिक प्रक्रिया को कमजोर न होने दिया जाए। कानून यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति संपत्ति की जब्ती, जुर्माने, या अदालत के आदेशों से धोखाधड़ी के ज़रिए बच न सके।
भारतीय न्याय संहिता, 2023 के सेक्शन 244 और 245 संपत्ति और अदालत के आदेशों में धोखाधड़ी से जुड़े कृत्यों पर प्रकाश डालते हैं। ये प्रावधान कानूनी प्रक्रिया की पवित्रता बनाए रखने के उद्देश्य से हैं, ताकि किसी व्यक्ति को धोखाधड़ी या गलत दावों के जरिए अदालत को गुमराह करने की अनुमति न दी जाए।
इन कृत्यों के लिए दो साल तक की कैद और जुर्माने की सज़ा का प्रावधान है, जो इस बात को सुनिश्चित करता है कि न्यायिक प्रणाली से धोखाधड़ी करने के किसी भी प्रयास को गंभीरता से लिया जाएगा और उसके परिणाम भुगतने होंगे।
यह लेख इन प्रावधानों का सरल और विस्तृत विश्लेषण प्रदान करता है ताकि आम पाठक भी इन कानूनों को समझ सके और यह जान सके कि अदालत की प्रक्रियाओं को धोखाधड़ी से प्रभावित करने की कोशिश पर क़ानून की सख्त नज़र है।