भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 भाग 2: अधिनियम में लोक कर्त्तव्य किसे माना गया है

Shadab Salim

11 Aug 2022 4:47 AM GMT

  • भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 भाग 2: अधिनियम में लोक कर्त्तव्य किसे माना गया है

    भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988 (Prevention Of Corruption Act,1988) की धारा 2 इस अधिनियम का निर्वचन खंड है जो कुछ शब्दों की परिभाषाएं प्रस्तुत करता है। लोक कर्त्तव्य और लोक सेवक इस अधिनियम के दो महत्वपूर्ण भाग है, अधिनियम की परिधि इन्हीं के आसपास है। इस आलेख के अंतर्गत लोक कर्त्तव्य को समझने का प्रयास किया जा रहा है।

    यह अधिनियम की धारा 2(ख) में प्रस्तुत की गई लोक कर्त्तव्य की परिभाषा है-

    (ख) "लोक-कर्त्तव्य" से अभिप्रेत है, कोई ऐसा कर्त्तव्य जिसके निर्वहन में राज्य की जनता या समाज की रुचि है।

    स्पष्टीकरण – इसमें राज्य में केन्द्रीय, प्रान्तीय या राज्य के किसी अधिनियम के अधीन निर्मित नियम या कोई प्राधिकरण या कोई निकाय जो सरकार द्वारा स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन या सहायता प्राप्त है या कोई सरकारी कम्पनी जैसा कि कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956 का सं0 1) की धारा 617 में परिभाषित है।

    यह परिभाषा छोटी है लेकिन फिर भी अपने अर्थ की पूरी तरह पूर्ति कर रही है। लोक कर्त्तव्य ऐसे कर्त्तव्य को माना गया है जिसके निर्वहन में जनता या समाज की रुचि है। कोई ऐसा कर्त्तव्य जिसे निभाने में जनता की कोई रुचि हो। इस परिभाषा के स्पष्टीकरण से भी बहुत कुछ स्पष्ट हो जाता है।

    इस धारा के उपखण्ड (ख) में यथापरिभाषित "लोक कर्तव्य" शब्द ऐसे कर्तव्य के निर्वहन करने के लिए अर्थ रखता है जिसमें राज्य या बड़े स्तर पर समुदाय एक हित रखता है। इस उपधारा के साथ उपबंध किये गये स्पष्टीकरण के अग्रिम गुण द्वारा 'राज्य' शब्द में भीतर इसकी परिधि में, कम्पनी अधिनियम, 1956 धारा 617 में यथा परिभाषित एक सरकारी कंपनी या सरकार द्वारा अनुदान प्राप्त या नियंत्रित या स्वामित्व प्राप्त एक निकाय या एक प्राधिकारी या एक केन्द्रीय या प्रान्तीय या राज्य अधिनियम के अधीन या इसके द्वारा स्थापित किये गये निगम भी सम्मिलित होते हैं। अतएव इस शब्द का बड़ा ही विस्तृत अर्थ होता है।

    भारतीय दण्ड संहिता की धारा 12 "लोक शब्द को परिभाषित करता है जो लोक या किसी समुदाय के किसी वर्ग को सम्मिलित करता है।

    हरनन्दन लाल बनाम रामपालक मेहता, (1938) 18 पटना 76 के मामले में पटना उच्च न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि धारा 12 भारतीय दण्ड संहिता में लोक शब्द की परिभाषा सम्मिलित करने की प्रवृत्ति रखती है और लोक शब्द को परिभाषित नहीं करती है। यह मात्र यह कहती है कि लोक या किसी सम्प्रदाय के किसी वर्ग को "लोक शब्द के भीतर सम्मिलित किया जाता है। उच्च न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है कि एक विशेष स्थानीयता में निवास करने वाले एक व्यक्ति या व्यक्तियों का वर्ग लोक शब्द के भीतर आ सकता है।

    स्टीम नेवीगेशन कम्पनी लिमिटेड बनाम इंग्लैंड रेवेन्यू कमिश्नर, (1941) के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया था कि लोक" अनिश्चित अभिप्राय का एक शब्द है इसे प्रसंग द्वारा प्रत्येक मामले में परिसीमित किया जाना चाहिए जिसमें इसका प्रयोग किया जाता है। यह सामान्यरूपेण संसार के वासियों या इस देश के वासियों का भी अर्थ नहीं रखता है। किसी विशिष्ट प्रसंग में इसका अर्थ एक गाँव का या समुदाय के मात्र वासियों के व्यावहारिक प्रयोजनों का हो सकता है जो किसी विशेष मामले, व्यवसाय, राजनीतिक, सामाजिक, कला संबंधी या स्थानीय मामले में हित रखेगा।

    लोक कर्तव्य' की परिभाषा को पुराने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में सम्मिलित नहीं किया गया था। लोक कर्तव्य की परिभाषा को पहली बार नये अधिनियम में सम्मिलित किया गया है। उच्चतम न्यायालय द्वारा 'लोक कर्तव्य' के शब्द पर विस्तृत विचार किया गया तथा यह अभिनिर्धारित किया गया कि विधान सभा के सदस्य का कार्य भी लोक कर्तव्य की प्रकृति का है।

    मनीष त्रिवेदी बनाम स्टेट आफ राजस्थान, 2014 क्रि लॉ ज 429 (एस सी) के मामले में नगरपालिका बोर्ड के परामर्शदाता एवं सदस्य राजस्थान नगरपालिका अधिनियम के अधीन अस्तित्वशील की स्थिति में है और उस व्यक्ति की एक स्वतंत्र स्थिति थी जो इसको भरते हैं। वे अनेक कर्तव्यों को करते हैं जो लोक कर्तव्य के क्षेत्र में होते हैं। अतएव, वर्तमान मामले में अपीलार्थी जो नगरपालिका बोर्ड का परामर्शदाता एवं सदस्य थे, लोक कर्तव्य माना गया।

    कार्य यावर्मा बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया, 2015 क्रि लॉ ज 485 (केरल) के मामले में केरल क्रिकेट संघ के पदाधिकारी लोक सेवक नहीं होते हैं। परिवादी का मामला यह नहीं था कि राज्य द्वारा या सरकार के कार्यपालन निर्देश द्वारा अधिनियमित किसी सकारात्मक विधि के अधीन विधिक बाध्यताओं के निर्वहन में के द्वारा स्टेडियम का निर्माण किया जा रहा था।

    प्रस्तुत मामले को ध्यान में रखते हुए, स्टेडियम का निर्माण राज्य के कार्य के रूप में मात्र किया जा सकता कि किसी लोक कर्तव्य के निर्वहन में नहीं। चूंकि एक स्टेडियम के निर्माण के प्रयोजनार्थ केरल क्रिकेट संघ द्वारा भूमि का मात्र कार्य को लोक कर्तव्य के धारण करने वाला नहीं किया जा सकता था इसलिए स्टेडियम के निर्माण भूमि के क्रय में भ्रष्टाचार का अभिकथन करने वाला केरल क्रिकेट संघ के विरुद्ध परिवाद अभिखंडित कर दिया गया।

    लोक कर्तव्य शब्द इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस अधिनियम में आगे लोक सेवक शब्द को बताया गया है। लोक कर्तव्य से ही लोक सेवक का अर्थ लिया जाता है, जिन लोगों के पास किसी पद को धारण करते हुए लोक कर्तव्य होता है उन्हें ही लोक सेवक माना गया है। हालांकि एक लोक सेवक होने के लिए और अधिक बातों का होना आवश्यक है।

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