संविदा विधि (Law of Contract ) भाग 19 : संविदा विधि के अंतर्गत गिरवी रूपी उपनिधान क्या होता है (Contract of Bailment and Pledge)

Shadab Salim

12 Nov 2020 5:10 AM GMT

  • संविदा विधि (Law of Contract ) भाग 19 :   संविदा विधि के अंतर्गत गिरवी रूपी उपनिधान क्या होता है (Contract of Bailment and Pledge)

    संविदा विधि के पिछले आलेख के अंतर्गत उपनिधान के संदर्भ में चर्चा की गई है। उपनिधान का एक आम साधारण रूप और है जिसे गिरवी कहा जाता है। गिरवी बहुत साधारण अवधारणा है परंतु वैधानिक रूप से इस अवधारणा के अर्थ बड़े विस्तृत हैं। इस आलेख के अंतर्गत उपनिधान के अंतर्गत गिरवी की अवधारणा पर उल्लेख किया जा रहा है।

    गिरवी

    जैसा कि पूर्व ऊपर उल्लेख किया गया है गिरवी एक साधारण अवधारणा है जो आम जीवन में हमें देखने को मिलती है। कर्ज के लिए गिरवी किसी कीमती वस्तु को रखा जाता है तथा कर्ज के भुगतान के समय उसे पुनः वापस ले लिया जाता है। संविदा विधि के अंतर्गत गिरवी की अवधारणा को वैधानिक बल दिया गया है।

    भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 172 के अंतर्गत गिरवी की परिभाषा प्रस्तुत की गई है। गिरवी एक प्रकार का उपनिधान ही होता है परंतु गिरवी में किसी वचन के पालन हो जाने तक वस्तु हस्तांतरित नहीं की जाती है जबकि उपनिधान में किसी प्रयोजन के पूरा हो जाने तक वस्तु हस्तांतरित नहीं की जाती है। यह विशेष प्रकार का उपनिधान होता है।

    भारतीय संविदा अधिनियम 1872 (धारा 172)

    गिरवी का अर्थ किसी ऋण के संदाय के लिए से किसी वचन के लिए प्रतिभूति के तौर पर माल का उपनिधान गिरवी है। यह प्रतिभूति के तौर पर होते हैं जिसका संबंध प्रतिज्ञा के पालन से हैं। गिरवी की स्थिति में उपनिधाता को पणयमकार (Pawner) कहते हैं और उपनिहिती को पणयमदार (Pawnee) कहते हैं।

    यह कहा जा सकता है कि गिरवी भी एक प्रकार का उपनिधान है जिसमें माल का परिदान ऋण के भुगतान या वचन के पालन के तौर पर एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को किया जाता है। उपनिधान गिरवी की अपेक्षा अधिक विस्तृत है।

    गिरवी के संदर्भ में निम्नलिखित तीन तत्वों की अपेक्षा होती

    1)- माल का उपनिधान होना चाहिए।

    2)- उपनिधान प्रतिभूति द्वारा होना चाहिए।

    3)- प्रतिभूति ऋण के संदाय के संदर्भ में होना चाहिए।

    इसके अंतर्गत परिदान को आवश्यक तत्व माना गया है। गिरवी में एक विशिष्ट संपदा का कब्जा किसी दूसरे व्यक्ति को दिया जाता है। गिरवी के अंतर्गत माल का परिधान ऋण के भुगतान या किसी वचन के पालन की प्रतिभूति के रूप में दिया जाता है परंतु जब इससे भिन्न प्रयोजन हेतु माल का प्रदान किया जाता है तो इसे गिरवी रूपी उपनिधान न कहकर केवल उपनिधान कहते हैं।

    उदाहरण के लिए एक मोटरसाइकिल मरम्मत के लिए देना उपनिधान है और मोटरसाइकिल को प्रतिभूति के रूप में देकर लेना गिरवी है। इसलिए पूर्व में यह कहा गया है कि गिरवी भी एक प्रकार का उपनिधान है। उपनिधान और गिरवी के प्रयोजन में प्रभेद है।

    उपनिधान का प्रयोजन ऋण के भुगतान के लिए यह प्रतिज्ञा के पालन के लिए प्रतिभूति देना होने की दशा में इसे गिरवी कहते हैं अर्थात गिरवी ऋण के भुगतान या प्रतिज्ञा के पालन की प्रतिभूति के रूप में माल का उपनिधान है। गिरवी के लिए माल का उपनिधान होना आवश्यक है इसका तात्पर्य यह हुआ कि गिरवी के लिए पणयमकार द्वारा पणयमदार को माल का प्रदान किया जाना आवश्यक है।

    राम प्रसाद बनाम स्टेट ऑफ़ एमपी 1970 एआईआर एससी 1818 के प्रकरण में कहा गया है जहां कोई करार किया गया हो कि कमीशन एजेंट खरीदे गए माल को अपने कब्जे में रखेगा वह उस रूप में वर्णित करेगा जिस रूप में कि उक्त माल के स्वामी द्वारा निर्देश किया गया हो तो ऐसी स्थिति में एजेंट का कब्जा विधिपूर्ण माना गया है।

    मूसा अब्दुल हामिद बनाम माउंटेन 1931 आईसी 723 स्वतंत्रता के पूर्व के प्रकरण में लाहौर उच्च न्यायालय ने कहा था कि चल संपत्ति को उस व्यक्ति के कब्जे के अधीन होना चाहिए जिसे संपत्ति गिरवी रखी गई है।

    गिरवी के लिए माल का उपनिधान होना चाहिए अर्थात गिरवी के लिए पणयमकार द्वारा पणयमदार को माल का प्रदान किया जाना आवश्यक है। यह बात ध्यान देने योग्य है कि गिरवी में माल का कब्जा पणयमदार के पास होता है जबकि उसका स्वामित्व पणयमकार के पास रहता है। यह एक बड़ा तथ्य है कि गिरवी में कोई वस्तु विक्रय नहीं होती है वस्तु का स्वामित्व नहीं परिवर्तित होता है केवल वस्तु का कब्जा परिवर्तित होता है। वस्तु का स्वामित्व उसी व्यक्ति का रहता है जो वस्तु को गिरवी रखता है।

    हमे वास्तविक एवं परिलक्षित परिदान के अर्थ को भी समझना चाहिए। जब माल का भौतिक कब्ज़ा पणयमकार द्वारा पणयमकार को दिया जाता है ऐसी स्थिति में इसे वास्तविक परिदान कहते हैं। जब वास्तव में माल के कब्जे का परिदान नहीं किया जाता बल्कि कोई ऐसा कार्य किया जाता है कि माल का कब्जा लेने का अधिकार पणयमदार से प्राप्त हो जाता है उसे परिलक्षित परिदान कहते हैं।

    जहां कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति का माल पहले से ही अपने कब्जे में रखे हुए हैं और वह पणयमकार के रूप में धारण करने की संविदा करता है तो वह इस प्रकार पणयमदार हो जाता है कि ऐसी स्थिति में पणयमकार हो जाता है।

    राजस्व अधिकारी प्रणाम सुदर्शन पिक्चर एआईआर 1968 मद्रास 319 के प्रकरण में कहा गया है कि जहां किसी निर्माता और वितरक के मध्य संविदा हुई थी कि जैसे ही फिल्म निर्माता का निर्माण करेगा वह उसे मित्र को गिरवी रख देगा किंतु इसे विधिमान्य गिरवी नहीं माना गया क्योंकि परिदान के लिए माल अस्तित्व में ही नहीं था और इस प्रकार माल के परिदान के अभाव में विधिमान्य गिरवी नहीं माना गया।

    इस प्रकरण से यह समझा जा सकता है कि किसी भी वस्तु के गिरवी होने के लिए उसका अस्तित्व में होना आवश्यक है। कोई भी ऐसी वस्तु जो भविष्य में होगी उसे गिरवी नहीं रखा जा सकता है।

    यदि कोई माल गिरवी रख दिया जाता है और किसी विशिष्ट प्रयोजन हेतु पणयमकार की अभिरक्षा में छोड़ दिया जाता है तो इसे गिरवी की वैधता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। उदाहरण के लिए एक प्रकरण में एक बैंक के पास सिनेमा का प्रोजेक्टर गिरवी रखा गया परंतु बैंक ने वह प्रोजेक्टर गिरवी करने वाले की अभिरक्षा में रहने दिया ताकि वह प्रोजेक्टर प्रयोग में रहे।

    न्यायालय ने निर्णय लिया कि उक्त गिरवी विधिमान्य है और उक्त प्रोजेक्टर गिरवी करने वाले की अभिरक्षा में रहने देने से इसकी वैधता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है और इसके परिणामस्वरूप उक्त विक्रय गिरवी के अधीन था।

    गिरवी के लिए माल का परीदान ऋण के भुगतान या प्रतिज्ञा के पालन के लिए प्रतिभूति के तौर पर होना आवश्यक है। माल का परीदान जब ऋण के भुगतान के लिए यह प्रतिज्ञा के पालन के लिए प्रतिभूति के तौर पर होता है तो इसे गिरवी कहते हैं। जब ऋण का भुगतान कर दिया जाता है अथवा प्रतिज्ञा के पालन हेतु प्रतिभूति के तौर पर होता है तो गिरवी माल गिरवी करने वाले को वापस कर दिया जाता है। साधारण बोलचाल में गिरवी करने वाले को गिरवीकर्ता और जिसे गिरवी किया जाता है उसे गिरवीदार कहते हैं।

    सामान्यता यह देखा जाता है कि किसी भी प्रकार की संपत्ति अथवा दस्तावेज गिरवी का विषय वस्तु हो सकता है। रेलवे की रसीद भी एक प्रकार की दस्तावेज है जो गिरवी की विषय वस्तु है। सरकारी प्रत्याभूति को गिरवी नहीं रखा जा सकता, संपत्ति का हक विलेख धारा 172 के अंतर्गत माल नहीं है।

    हीराकार बालाजी बनाम कालेरु 2011 एससी 391 आंध्र प्रदेश के प्रकरण में कहा गया है कि 3 वर्ष के भीतर ऋण के भुगतान एवं गिरवी वस्तुओं के उन्मूलन की तैयारी की अभिव्यक्ति करते हुए विधिक नोटिस नहीं दिया जाए तो धारा 177 स्पष्ट कहती है कि बकाया धनराशि के साथ ही ऐसे अतिरिक्त खर्च जो उसके व्यतिक्रम से अद्भुत हुए हो के संदाय के लिए गिरवी वस्तुओं का उन्मोचन कर सकता है।

    भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 173 के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया है कि पणयमदार गिरवी रखे हुए माल का प्रतिधारण कर सकता है। जब तक कि उसे ऋण की अदायगी ब्याज सहित नहीं कर दी जाती है किंतु यदि वह मुक्त ब्याज आदि लेने से इनकार कर देता है तो वह पणयमकार के माल का प्रतिधारण नहीं कर सकेगा। यह बात बैंक ऑफ साउथ वेल्स (1819) के एक प्रकरण में भी कहीं गई है।

    इस धारा की शब्दावली के अनुसार पणयमदार गिरवी माल का प्रतिधारण न केवल ब्याज देने के संदाय के लिए या वचन के पालन के लिए कर सकेगा वरण ऋण के ब्याज के लिए और गिरवी माल के कब्जे के बारे में यह परीक्षण के लिए अपने द्वारा उपगत सभी जरूरी खर्चों के लिए कर सकेगा।

    पणयमदार कब वस्तु को भेज सकता है

    भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 176 पणयमदार के अधिकारों का उल्लेख कर रही है। इस धारा के अनुसार पणयमदार के अधिकारों के उल्लेख में एक महत्वपूर्ण वर्णन यह है कि यदि पणयमकार उस धन के संदाय में या अनुबंध समय पर उस वचन का पालन करने में जिसके लिए माल गिरवी रखा गया है व्यतिक्रम करता है चूक करता है तो पणयमदार गिरवीदार के विरुद्ध वाद लाने के लिए सक्षम हो जाता है।

    ऐसी स्थिति में उक्त गिरवी माल को समपार्श्विक प्रतिभूति के रूप में प्रतिधारण कर सकता है। यह गिरवी चीज को बेचने की युक्तियुक्त सूचना पणयमकार को देकर उस चीज को बेच सकता है। यदि ऐसे विक्रय का आगम उस रकम से कम हो जो ऋण या वचन के बारे में शोध्य है तो पणयमदार बाकी की वसूली के लिए तब भी अधिकारी रहता है।

    अर्थात यदि कर्ज़ अधिक है और गिरवी रखी हुई वस्तु उतने में नहीं बिकती है जितनी कर्ज की राशि है तो वस्तु को बेचने के बाद में जो धनराशि बचती है पणयमदार उस धनराशि को प्राप्त करने के लिए भी वाद ला सकता है।

    यह भी ध्यान देने की बात है यदि विक्रय के आगम से उस रकम से अधिक हो जो ऐसे शोधन के लिए है तो पणयमदार शेष राशि पणयमकार को देगा अर्थात यदि वस्तु कर्ज की राशि से अधिक की है तो जितनी राशि कर्ज की है उसे प्राप्त करने के बाद पणयमदार शेष राशि को गिरवीकर्ता को सौंप देगा। यदि ऐसा नहीं करता है तो गिरवी करता पणयमदार के विरुद्ध वाद ला सकता है।

    पणयमदार ऋण की वसूली के लिए या वचन के पालन के लिए वाद ला सकता है। वह उक्त माल को समपार्श्विक प्रतिभूति के रूप में धारण कर सकता है। वह पणयमकार को युक्ति संगत सूचना देने के पश्चात उक्त माल का विक्रय भी कर सकता है।

    पंयमदार को गिरवी रखी गई वस्तु को बेचने का अधिकार

    गिरवी की स्थिति में जबकि माल पणयमदार को रखा गया हो और उक्त माल पर ऋण लिया हो और उक्त ऋण का संदाय न किया गया हो, इस संबंध में अनुबंधित समय भी व्यतीत हो गया हो तो युक्तियुक्त सूचना देने के पश्चात पणयमदार उस माल को बेच सकता है।

    इस हेतु पणयमदार तीन अधिकार प्राप्त हैं-

    1)- संपत्ति के विरुद्ध अग्रसर होने का अधिकार

    2)- ऋणी व्यक्ति के विरुद्ध अग्रसर होने का अधिकार

    3)- गिरवी रखे गए माल को व्यक्तिगत रुप में विक्रय करना और यह विक्रय बिना न्यायालय को संदर्भित किए हुए किया गया हो।

    गुलाम हुसैन बनाम कालरा डिसूजा (1929) के प्रकरण में कहा गया है कि फिर भी यदि वह किसी भी रुप में विधि द्वारा तिरोहित (barred) अथवा प्रतिबंधित हो तो वैसा नहीं किया जाएगा। पणयमदार को यह भी अधिकार प्राप्त है कि वह उस माल को तब तक अपने कब्जे में रखें जब तक कि उक्त गिरवी रखे माल की बाबत संपूर्ण ऋण का भुगतान नहीं कर दिया जाता।

    गिरवी रखे गए माल को बेचने के लिए कुछ दशाएं हैं जिनका उल्लेख इस आलेख में किया जा रहा है। केवल इन दशाओं में ही कोई पणयमदार अपने पास गिरवी रखी गई संपत्ति को बेच सकता है-

    1)- जब माल की बाबत ऋण न चुकाया गया हो।

    2)- जब उक्त संदर्भ में पणयमदार को युक्तियुक्त सूचना दे दी गई हो।

    3)- सूचना देने के बावजूद भी पणयमकार वैसा नहीं करता है।

    उपरोक्त दशाओं के विधामान रहने की दशा में पणयमदार पणयमदार की संपत्ति का जो माल के रूप में उसके पास गिरवी रखी गई है उसका विक्रय कर सकता है। इलाहाबाद बैंक बनाम फर्म ऑफ मदन मोहन 1917 (29) आईसी 169।

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