किसी सिविल मामले में वकील कैसे बदला जा सकता है, जानिए सम्बंधित प्रकिया एवं प्रावधान
SPARSH UPADHYAY
29 Jan 2020 4:19 AM GMT
जब भी कोई व्यक्ति न्याय प्राप्त के इरादे से अदालत की तरफ देखता है तो उसे सबसे पहले एक वकील की आवश्यकता प्रतीत होती है। वो एक बेहतर वकील की तलाश में निकल पड़ता है जो उसके मामले को अदालत में उत्तम प्रकार से प्रस्तुत करे और हरसंभव प्रयास करे कि वह व्यक्ति न्याय प्राप्त करने में सफल हो। दूसरी ओर, एक वकील का धर्म अपने मुवक्किल को न्याय दिलाना ही होता है और ऐसा करते हुए उसे न्यायालय के अहम् एवं जिम्मेदार अधिकारी के रूप में कार्य करना होता है।
एक मुवक्किल जब अपने वकील को स्वयं के मामले का अदालत में प्रतिनिधित्व करने के लिए नियुक्त करता है तो वह यह अवश्य देखता है कि उसका वकील उचित प्रकार से ऐसा करने में सक्षम हो सकेगा अथवा नहीं। हर मुवक्किल अपने वकील की काबिलियत को सुनिश्चित करने के पश्च्यात ही उसे अपना मामला सौंपता है।
हालाँकि, कई बार ऐसा होता भी होता है कि मामला अदालत में शुरू हो जाता हो और उसके बाद मुवक्किल को लगने लगता है कि उसका वकील उसके मामले का प्रतिनिधित्व करने में सक्षम नहीं है। कई बार फीस का मुद्दा, अहम् का टकराव, संतुष्टि की कमी जैसे तमाम विवाद भी मुवक्किल और उसके वकील के बीच पैदा हो जाते हैं। ऐसे मामलों में मुवक्किल अपने वकील को यदि बदलना चाहे तो क्या वह ऐसा कर सकता है?
हालाँकि, यह जरुरी नहीं कि ऊपर बताये गए कारणों के चलते ही मुवक्किल एवं उसके वकील के बीच विवाद उत्पन्न हों, ऐसा भी हो सकता है कि किसी अन्य वजह के चलते मुवक्किल अपने वकील को मुक़दमे के दौरान बदलना चाहता हो।
इस लेख में हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे और जानेंगे कि आखिर कैसे मुवक्किल अपने वकील को मुक़दमे के दौरान बदल सकता है एवं इसके समबन्ध में सुप्रीम कोर्ट/हाईकोर्ट के निर्णय क्या कहते हैं.
वकालतनामा क्या होता है?
जैसा कि हम जानते हैं, किसी भी मुवक्किल के मामले की अदालत में शुरुआत उसके वकील के वकालतनामे के साथ होती है। वकालतनामा एक प्रकार का समझौता या अथॉरिटी पत्र होता है जो मुवक्किल द्वारा अपने वकील को दिया जाता है, जिससे वह अदालत में उस मुवक्किल के मामले को प्लीड करे।
इसे एक प्रकार का स्वीकृति पत्र भी कहा जा सकता है जिसके जरिये मुवक्किल अपने वकील को अपने मामले को अदालत में प्लीड करने की न केवल इजाजत देता है बल्कि वह उस वकील को, मामले को प्लीड करने से सम्बंधित अन्य कार्य करने की स्वीकृति भी देता है।
मुवक्किल का वकील बदलने का अधिकार
एक पक्षकार को अपने वकील को बदलने की स्वतंत्रता हमेशा ही होनी चाहिए। वह ऐसा कभी भी कर सकता है, आमतौर पर एक पक्षकार ऐसा तब करता है जब उसे लगता है कि उसके द्वारा नियुक्त किया गया वकील, उसके मामले को अदालत में कुशलतापूर्वक संचालित करने में सक्षम नहीं है या इसलिए कि उसका आचरण पक्षकार के हित में नहीं है।
कारण जो भी हो, यदि कोई मुवक्किल किसी विशेष वकील के साथ आगे नहीं बढ़ना नहीं चाहता है, तो यह पेशे की गरिमा के अनुरूप एक पेशेवर सदाचार की आवश्यकता होगी कि वह वकील ऐसा करने में मुवक्किल की सहायता करे और उसके ब्रीफ/कागजात लौटाए – आर. डी. सक्सेना बनाम बलराम प्रसाद शर्मा AIR 2000 SC 2912।
इसी प्रकार से, कर्नाटक पॉवर ट्रांसमिशन कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम एम्. राजशेखर एवं अन्य [MISCELLANEOUS FIRST APPEAL NO. 6526/2013 (LAC)] के मामले में यह कहा गया था, सिविल और आपराधिक, दोनों ही मामलों में पक्षकार/मुवक्किल को अपने लिए एक नया वकील नियुक्त करने का पूर्ण अधिकार है। यह ध्यान रखने योग्य बात है कि किसी भी परिस्थिति में, एक पार्टी को अपनी पसंद के नए वकील को नियुक्त करने के अपने अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।
हमे यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि अपरिवर्तनीय वकालतनामा (irrevocable vakalatnama) जैसी कोई चीज़ नहीं होती है। अर्थात, ऐसा कोई वकालतनामा नहीं हो सकता है जिसे वापस न लिया जा सके। यह साफ़ है कि मुवक्किल के नाम पर वकील द्वारा उसके मामले में दायर वकालतनामा, मुवक्किल की मांग पर वापस लिया जा सकता है (केवल उस वकील के सम्बन्ध में)।
पक्षकार/मुवक्किल द्वारा वकालतनामा वापस लेने का अधिकार विधिसम्मत है। किसी भी परिस्थिति में, एक पार्टी को अपनी पसंद के नए वकील को नियुक्त करने के अपने अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है - श्री सी. वी. सुधींद्र एवं अन्य बनाम मेसर्स डिवाइन लाइट स्कूल फॉर ब्लाइंड एवं अन्य [ILR 2008 KAR 3983]।
इसलिए, कोई भी पक्षकार/मुवक्किल अपने वकील के वकालतनामा या उपस्थित होने कि सहमती को वापस लेते हुए उसको कार्यमुक्त करने का अधिकार रखता है, भले ही उसके लिए उसके द्वारा कारण दिए गए हों अथवा नहीं। वकील को कार्यमुक्त किये जाने की स्थिति में, पार्टी को वकील से अपने केस की फाइलें/कागजात वापस प्राप्त करने का अधिकार है।
एक वकील का यह एक नैतिक दायित्व और पेशेवर कर्तव्य होता है कि जब मुवक्किल को अपना वकील बदलना आवश्यक हो, तो वह संक्षिप्त विवरणी (मामले से जुड़े कागजात) उस मुवक्किल को वापस करे। इसके सम्बन्ध में अधिक जानकारी के लिए आप यह लेख पढ़ सकते हैं।
क्या मौजूदा वकील से 'नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट' लेना है अनिवार्य?
जैसा कि हमने समझा है, किसी मुकदमे की कार्यवाही के दौरान पक्षकार अपनी पसंद के वकील को नियुक्त करने, उसकी सेवाओं को समाप्त करने और एक नया वकील नियुक्त करने का पूर्ण अधिकार रखता है।
एक पक्षकर को किसी भी समय और किसी भी कारण से अपने वकील को बदलने की स्वतंत्रता है। हालांकि, निष्पक्षता की मांग यह है कि पार्टी को, अपने मौजूदा वकील को पहले से इसे विषय में सूचना देनी चाहिए, हालांकि एक नया वकील नियुक्त करने से पहले की यह अनिवार्य शर्त नहीं हो सकती है।
हालाँकि, बार काउंसिल ऑफ इंडिया रुल्स के प्रावधानों और विशेष रूप से भाग- VI के अध्याय- II के नियम 39 के अनुसार, एक वकील किसी भी मामले में अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करेगा, जिसमें पहले से ही वकालत(नामा) या उपस्थिति दर्ज की गई हो (किसी अन्य वकील द्वारा)। हालाँकि, यदि ऐसे वकील की सहमति प्राप्त की गयी हो तो ऐसा किया जा सकता है।
उन मामलों में जहाँ ऐसी सहमति का उत्पादन नहीं होता है, वहां वह वकील यह कहते हुए अदालत में आवेदन करेगा कि उक्त सहमति क्यों प्राप्त नहीं की जा सकती और वह अदालत की अनुमति प्राप्त करने के बाद ही मामले में प्रस्तुत हो सकता है।
गौरतलब है कि एक मुवक्किल का सामान्य आचरण यह होना चाहिए है कि यदि वह किसी कारण से अपने वकील को मुक़दमे के दौरान बदलना चाहता है, तो उसे अपने मौजूदा वकील से संपर्क करना चाहिए और ब्रीफ/कागजात वापसी की, एवम 'नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट' की मांग करनी चाहिए।
ऐसा करने से यह उम्मीद बाकी रहती है कि आपसी सहमती से एवं बिना किसी विवाद के सुगमतापूर्वक नए वकील को नियुक्त किया जाता है और अदालत में वक़्त की बर्बादी नहीं होती है - श्री असीम श्यामकेशो सिंह बनाम थोकचोम रंजन मीटी [M.C. (W.P. (C)) No. 147 of 2016 (Ref: - W.P. (C) No. 202 of 2015)]।
यह तय कानून है कि यदि पक्षकार/मुवक्किल का वकील, उसके ब्रीफ/कागजात वापस करता है और 'नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट' देता है (कि दूसरा वकील नियुक्त किये जाने में उसे कोई आपत्ति नहीं है) तो ठीक है और यदि वह ऐसा करने से इनकार करता है, तो पक्षकार/मुवक्किल अपनी शिकायतों के निवारण के लिए सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 3 नियम 4 के उपबंधों को लागू कर सकता है और अदालत से संपर्क कर सकता है।
सिविल मामलों में, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अंतर्गत, आदेश 3 नियम 4 के अनुसार, आपके पास अपनी पसंद का वकील नियुक्त करने का अधिकार है, और इस तरह की नियुक्ति तब तक जारी रहती है जब तक कि अदालत इसे मुवक्किल/पक्षकार या वकील के अनुरोध पर समाप्त करने की अनुमति नहीं देती है (जिसके पश्च्यात आवश्यकता के अनुसार वकील बदला जा सकता है)।
आदेश 3 नियम 4 प्लीडर की नियुक्ति
4. प्लीडर की नियुक्ति - (1) कोई भी प्लीडर किसी भी न्यायालय में किसी भी व्यक्ति के लिए कार्य नहीं करेगा जब तक कि वह उस व्यक्ति द्वारा ऐसे लिखित दस्तावेज द्वारा इस प्रयोजन के लिए नियुक्त नहीं किया गया हो जो उस व्यक्ति द्वारा या उसके मान्यताप्राप्त अभिकर्ता द्वारा या ऐसी नियुक्ति करने के लिए मुख्तारनामे द्वारा या उसके अधीन सम्यक रूप से प्राधिकृत किसी अन्य व्यक्ति स्वर हस्ताक्षरित है।
(2) हर ऐसी नियुक्ति [न्यायालय में फ़ाइल की जाएगी और उपनियम (1) के प्रयोजनों के लिए] तब तक प्रवृत्त समझी जाएगी जब तक वह न्यायालय की इजाजत से ऐसे लेख द्वारा पर्यवसित न कर दी गयी हो जो, यथास्थिति, मुवक्किल या प्लीडर द्वारा हस्ताक्षरित है और न्यायालय में फ़ाइल कर दिया गया है या जब तक मुवक्किल या प्लीडर की मृत्यु न हो गयी हो या जब तक वाद में उस मुवक्किल से सम्बंधित समस्त कार्यवाहियों का अंत न हो गया हो।
अंत में, इस लेख में हमने देखा कि आमतौर पर वकील को बदलने के लिए मौजूदा अधिवक्ता से 'नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट' प्राप्त करने की आवश्यकता होती है। हालांकि, वकील बदलने का कार्य अदालत की leave (यानी अनुमति) के साथ भी किया जा सकता है, जो आम तौर पर दे दी जाती है (यदि मौजूदा वकील अपनी सहमति देने से इनकार करता है या मुवक्किल की ऐसी मांग की उपेक्षा करता है)।