जानिए क्या होती है कोर्ट मैरिज और कैसे की जा सकती है
Shadab Salim
8 Feb 2020 9:34 PM IST
भारत में विवाह के लिए अलग-अलग धार्मिक समुदायों को अलग-अलग अधिकार और दायित्व दिए गए हैं। पर्सनल लॉ सभी धर्म के लोगों को अलग अलग उपलब्ध कराया गया है, जैसे हिंदुओं के लिए हिंदू विवाह अधिनियम 1955 एवं हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम तथा मुसलमानों के लिए शरियत का कानून है। यह कानून मुसलमानों की पर्सनल विधि का काम करता है, जैसे विवाह, उत्तराधिकार, तलाक, भरण पोषण दत्तक ग्रहण इत्यादि विषयों पर यह विधि होती है।
विवाह एक मानव अधिकार है कोई भी समुदाय या विधि विवाह करने से व्यक्ति को रोक नहीं सकती है।
पर्सनल लॉ की विधियां बहुत सारे मामलों में व्यक्तियों में विभेद करती है तथा विवाह करने से रोकती है। जैसे मुसलमानों पर लागू शरीयत का कानून केवल दो मुसलमानों से विवाह संबंधित है, परंतु कोई एक मुसलमान है और कोई एक अन्य धर्म से है तो यह कानून विवाह को मान्यता नहीं देता है।
1954 में भारत की संसद में एक क्रांतिकारी कदम उठाया है। एक ऐसा कानून पारित किया गया है, जिसके माध्यम से कोई भी दो लोग जो भिन्न धर्मों से आते है, भिन्न जाति से आते है तथा जिनके बीच में उम्र बंधन भी हो सकते हैं। वह व्यक्ति बगैर किसी बंधन के विवाह कर सकते हैं। भारत का विधान इन व्यक्तियों को इस अधिनियम के अंतर्गत एक कोर्ट मैरिज का विकल्प उपलब्ध कराता है।
विशेष विवाह अधिनियम 1954
इस विवाह अधिनियम को बनाने का उद्देश्य अंतरजाती एवं अंतर धार्मिक विवाह को मान्यता देना है। कोई भी दो बालिग लोग यदि वह प्रतिषिद्ध नातेदारी के अंतर्गत नहीं आते है और वह किसी भी धर्म या पंथ यह जाति के हो यदि वापस में विवाह करना चाहते है तो भारत का यह उदार संविधान उन लोगों को विवाह करने की पूर्ण सहमति प्रदान करता है। यहां तक विवाह में किए जाने वाले किसी कर्मकांड को किए जाने की बाध्यता भी नहीं रखी गई है।
विशेष विवाह अधिनियम 1954 के अंतर्गत विवाह करने के लिए शर्तें
इस अधिनियम के अंतर्गत विवाह अनुष्ठान किये जाने के लिए कुछ शर्तें रखी गई है। कोई भी व्यक्ति जो भारत की सीमा के भीतर रह रहा है। यदि शर्तो को पूरा कर देता है तो विवाह कर सकता है। यह विवाह केवल एक स्त्री और पुरुष के बीच ही होगा, अभी इस अधिनियम के माध्यम से समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं मिली है वह स्त्री और पुरुष आपस में विवाह कर सकते हैं जो निम्न शर्तों को पूरा करते हैं।
अधिनियम की धारा 4 के अनुसार,
किसी भी पक्षकार की पूर्व पति और पत्नी जीवित नहीं होना चाहिए। इस शर्त का अर्थ यह है कि किसी भी पक्षकार की कोई पूर्व पति पूर्व पत्नी इस विवाह को अनुस्थापित करते समय जीवित नहीं होना चाहिए। यह धारा पति या पत्नी के होते हुए दूसरे विवाह को करने को रोकती है। इस शर्त को अधिनियम में रखे जाने का अर्थ यही है की कोई भी पक्षकार पति या पत्नी के जीवित होते हुए कोई दूसरा विवाह नहीं कर पाए।
किसी भी पक्षकार को बार-बार उन्मत्ता के दौरे नहीं आना चाहिए
यदि कोई व्यक्ति मानसिक रूप से ठीक नहीं रहता है तथा उसको बार-बार मत्ता के दौरे आते हैं या ऐसे मानसिक रोग से पीड़ित है तो ऐसी स्थिति में वह पक्षकार इस अधिनियम के अंतर्गत विवाह नहीं कर पाएगा।
कोई भी पक्षकार मानसिक रूप से विकृत चित्त नहीं होना चाहिए
यदि पक्षकार मानसिक रूप से विकृत चित्त है कोई भी निर्णय ले पाने में असमर्थ है ऐसे पक्षकारों को इस अधिनियम के अंतर्गत विवाह करने की मान्यता नहीं दी गई है।
पक्षकार प्रतिषिद्ध नातेदारी के अंतर्गत नहीं होना चाहिए
अधिनियम की अनुसूची में कुछ प्रतिषिद्ध नातेदारी बताई गई है। यह नातेदारी सामाजिक नैतिकता को ध्यान में रखते हुए प्रतिषिद्ध की गई है। कोई पक्षकार यदि आपस में ऐसे नातेदार है जो समाज में ऐसे रिश्ते होते हैं जिन्हें पवित्र समझा जाता है तथा उन रिश्तो के आपस में संभोग किए जाने को अत्यंत बुरा काम समझा जाता है।इस नातेदारी को आपस में विवाह करने से इस अधिनियम के अंतर्गत रोका गया है।
विवाह अधिकारी
अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत विवाह अधिकारी जैसा पद निर्मित किया गया है। विवाह अधिकारी अपने पास आए विवाह के आवेदनों पर विचार करने के बाद पक्षकारों के विवाह अनुष्ठापित करवाने की जिम्मेदारी रखता है। यह अधिनियम की अत्यंत महत्वपूर्ण कड़ी है। ऐसे अधिकारी की नियुक्ति राज्य सरकार इस अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत राजपत्र में अधिसूचना के माध्यम से करती है।
विवाह का पंजीकरण
इस अधिनियम की विशेषता यह है कि इस अधिनियम के अंतर्गत दो पक्षकारों के बीच किए गए किसी वैध विवाह को राज्य सरकारों द्वारा रजिस्ट्रीकृत कर मान्यता प्रदान की जाती है,तथा एक प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया जाता है जो विवाह के अनुष्ठान के परिणामस्वरूप विवाह के पक्षकारों को दिया जाता है।
व्यक्ति इस अधिनियम में विवाह को करने के लिए किसी भी तरह से विवाह का अनुष्ठान कर सकता है। जैसे कोई दो पक्षकार केवल एक दूसरे को माला डाल कर विवाह अनुष्ठापित कर सकता है।
विवाह के पंजीकरण की प्रक्रिया
यदि कोई दो पक्षकार इस अधिनियम के अंतर्गत अपना कोई विशेष विवाह पंजीकरण करवाना चाहते हैं तो अधिनियम के अंतर्गत ऐसे विवाह के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया दी गई है। प्रक्रिया को अपनाकर कोई भी व्यक्ति अपने विवाह को रजिस्टर करवा सकते है।
विवाह अधिकारी को लिखित सूचना देना
अधिनियम की धारा 5 के अंतर्गत विवाह अधिकारी को एक लिखित सूचना देनी होती है। पक्षकार यदि एक माह तक किसी ऐसे जिले में रह रहे हैं जिसमें उन्हें विवाह अधिकारी को सूचना देनी है, तो उस जिले के विवाह अधिकारी को ऐसी लिखित सूचना किसी आवेदन के माध्यम से करेंगे तथा अधिकारी के समक्ष यह पक्षकार आपस में विवाह स्थापित करने की इच्छा रखेंगे तथा पक्षकार आवेदन में बताएंगे की हम यह विवाह आपसी सहमति एवं स्वतंत्र सहमति से कर रहे है।
विवाह सूचना का प्रकाशन
अधिनियम की धारा 6 बताती है कि यदि किसी जिले के विवाह अधिकारी को विवाह के इच्छुक पक्षकारों से कोई आवेदन प्राप्त होता है तो ऐसे आवेदन प्राप्त होने के बाद विवाह की सूचना का प्रकाशन करेगा। इस प्रकाशन में वह विवाह की नियत की गई दिनांक लिखेगा तथा जनसाधारण से आपत्तियां मांगेगा तथा या मालूम करेगा कि कोई पक्षकार किसी अन्य व्यक्ति के अधिकारों का अतिक्रमण तो नहीं कर रहा है,या फिर विवाह प्रतिषिद्ध नातेदारी के अंतर्गत तो नहीं है।
विवाह पर आपत्ति या लेना
इस अधिनियम के अंतर्गत अनुष्ठापित किए जाने वाले विवाह पर कोई व्यक्ति जिसके अधिकारों का अतिक्रमण हो रहा है वह आपत्ति लेता है तो जिस दिन से विवाह की सूचना का प्रकाशन किया गया है। उस दिन से 30 दिन के भीतर कोई भी व्यक्ति इस तरह के विवाह पर आपत्ति ले सकता है। यदि वह आपत्ति लेता है तो जांच हेतु विवाह को रोक दिया जाता है। यदि कोई आपत्ति नहीं आती है तो विवाह अधिकारी विवाह को अनुष्ठापित करने के लिए नियत तारीख पर रख देता है।
विवाह का अनुष्ठान तथा गवाह
अधिनियम की धारा 11 के अंतर्गत इस विवाह को अनुष्ठान करने के लिए तीन साक्षी की आवश्यकता होती है।यह साक्षी विवाह में गवाह बनेंगे तथा इस विवाह की घोषणा अधिनियम में दिए गए प्रारूप के अंतर्गत करेंगे।पक्षकार जो तारीख विवाह अधिकारी द्वारा नियुक्त नियत की गई है उस तारीख को विवाह अनुष्ठापन करेंगे तथा जिस तरह की इच्छा से विवाह करना चाहते है उस तरह से विवाह कर सकेंगे।
विवाह का प्रमाणपत्र
इस अधिनियम के अंतर्गत यदि नियत तारीख को विवाह संपन्न कर दिया जाता है तो विवाह अधिकारी द्वारा एक प्रमाण पत्र विवाह के पक्षकारों को दे दिया जाता है तथा विवाह को विवाह अधिकारी अपने रजिस्टर में अंकित कर लेगा।इस रजिस्टर और इस प्रमाण पत्र पर तीन साक्षी होंगे उन तीन साक्षी की हस्ताक्षर होगी तथा यह विवाह इस प्रमाण पत्र के माध्यम से इस अधिनियम के अंतर्गत प्रमाणित हो जाएगा।
अन्य रूपों से अनुष्ठापित विवाह भी इस अधिनियम के अंतर्गत रजिस्टर हो सकते है
इस अधिनियम के अंतर्गत केवल विशेष विवाहों को ही रजिस्ट्रीकृत नहीं किया जाता है अपितु ऐसे विवाहों को भी रजिस्टर कर कर दिया जाता है जो किसी अन्य रीति से हो गए हैं। पक्षकार चाहे तो वह अपना विवाह इस अधिनियम के अंतर्गत रजिस्टर करवा सकते हैं। इसके लिए एक आवेदन जिले के विवाह अधिकारी को देना होगा और जो नियत फीस तय की गई है उस फीस को जमा करना होगा।
विवाह अधिकारी इस अधिनियम के अंतर्गत उन पक्षकारों को विवाह का प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर देगा। यदि विवाह इस अधिनियम के अंतर्गत रजिस्टर हो गया तो उत्तराधिकार भी भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के अंतर्गत लागू होंगे, पर यदि हिंदू सिख बौद्ध जैन का विवाह हिंदू सिख बौद्ध जैन इत्यादि से होता है तो ऐसी परिस्थिति में उत्तराधिकार उनकी पर्सनल लॉ का ही लागू होगा पर तलाक और भरण पोषण की विधि विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत लागू होगी।
कोई दो पक्षकारों का विवाह मुस्लिम विवाह की पद्धति से हुआ है और अगर वह पक्षकार इस अधिनियम के अंतर्गत अपने विवाह को रजिस्टर करवाना चाहते हैं तो यह अधिनियम उन्हें ऐसे विवाह के रजिस्ट्रीकरण के लिए आज्ञा देता है।
विवाह विच्छेद एवं विवाह शून्यकरण एवं शून्य विवाह
इस अधिनियम के अंतर्गत यदि कोई विवाह प्रमाणित करवाया गया है तो ऐसे विवाह का शून्यकरण, ऐसे विवाह को शून्य घोषित किया जाना तथा इस विवाह के पक्षकारों को विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त किए जाने की अर्जी जिला न्यायालय में इस अधिनियम के अंतर्गत ही दी जाएगी। यदि विवाह इस अधिनियम के अंतर्गत हो रहा है तो तलाक भी इस अधिनियम के अंतर्गत ही होगा।
इस अधिनियम के अंतर्गत तलाक लेने की प्रक्रिया अधिनियम की धारा 24 से लेकर 30 तक दी गई है। इन धाराओं में किन प्रक्रियाओं से तलाक लिया जाएगा और किन प्रक्रियाओं के अंतर्गत किसी विवाह को शून्य घोषित करवाया जा सकेगा।
विवाह विच्छेद की डिक्री जिला न्यायालय द्वारा प्रदान की जाएगी या फिर विवाह को शून्य घोषित करना, जिला न्यायालय द्वारा किया जाएगा।शून्यकरण की डिक्री जिला न्यायालय द्वारा ही दी जाएगी।अब भले आपसी सहमति से तलाक की डिक्री क्यों नहीं हो।
विवाह के प्रमाण पत्र से 1 वर्ष के भीतर तलाक नहीं लिया जा सकता
कोई भी पक्षकार विवाह की दिनांक से 1 वर्ष के भीतर इस अधिनियम के अंतर्गत विवाह विच्छेद के लिए कोई ऐसी अर्जी जिला न्यायालय में नहीं दे सकेगा। एक वर्ष के बाद ही विवाह विच्छेद के लिए कोई अर्जी जिला न्यायालय में दी जा सकेगी, परंतु यदि संकट अधिक है और तलाक नितांत जरूरी है तो ऐसी परिस्थिति में यदि जिला न्यायाधीश को यह संतोष हो जाए की अर्ज़ी स्वीकार करना अत्यंत आवश्यक है तो ही अर्ज़ी को स्वीकार किया जाएगा।
तलाक की अर्जी किस जिले में दी जाएगी
पक्षकार तलाक की अर्जी निम्न चार जगहों पर प्रस्तुत कर सकते है।
जिले में जहां विवाह अनुष्ठापित किया गया है, विवाह का प्रमाण पत्र जिस जिले के विवाह अधिकारी से प्राप्त किया गया है,उस जिले के जिला न्यायालय में तलाक की अर्जी लगाई जा सकती है।
जिस जिले में पक्षकार अंतिम समय रहे थे उस जिले में भी तलाक की अर्जी लगाई जा सकती
जिस जिले मैं प्रत्यार्थी रह रहा है उस जिले में भी तलाक की अर्जी लगाई जा सकती है। यदि तलाक की अर्जी स्त्री द्वारा लगाई जा रही है तो वहां अर्जी लगाते समय जिस जिले में रह रही है उस जिले में अर्जी लगा सकती है।
यदि कोई दो मुस्लिम आपस में विवाह करते हैं और विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत अपने विवाह को रजिस्टर करवाते हैं तो ऐसी परिस्थिति में उन दोनों पर मुस्लिम विवाह के बाद मुस्लिम उत्तराधिकार, तलाक, भरण पोषण के नियम नहीं बल्कि विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत बताया गया भरण-पोषण और तलाक की विधि लागू होगी।
यदि व्यक्ति पर्सनल लॉ के किन्हीं नियमों से संतुष्ट नहीं है तो वह विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत भी अपना विवाह रजिस्टर करवा सकता है।