सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 25: आदेश 6 नियम 13, 14,14(क) के प्रावधान

LiveLaw News Network

9 Dec 2023 8:45 AM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 25: आदेश 6 नियम 13, 14,14(क) के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 6 अभिवचन से संबंधित है जहां अभिवचन के साधारण नियम दिए गए हैं। आदेश 6 का नियम 10,11 एवं 12 अभिवचनों के सिद्धांतों से संबंधित है। इस आलेख के अंतर्गत संयुक्त रूप से नियम 13,14,14(क) पर विवेचना प्रस्तुत की जा रही है।

    नियम-13 विधि की उपधारणाएँ-किसी तथ्य की बात को, जिसकी [उपधारणा] विधि किसी पक्षकार के पक्ष में करती है या जिसके सबूत का भार प्रतिपक्ष पर है, पक्षकारों में से किसी के द्वारा किसी भी अभिवचन में अभिकथित करना तब तक आवश्यक न होगा जब तक कि पहले ही उसका प्रत्याख्यान विनिर्दिष्ट रूप से न कर दिया गया हो (उदाहरणार्थ जहाँ वादी दावे के सारभूत आधार के रूप में विनिमय-पत्र पर न कि उसके प्रतिफल के लिए वाद लाता है, वहाँ विनिमय-पत्र का प्रतिफल)।

    विधि की उपधारणाओं का अभिवचन- साक्ष्य अधिनियम की धारा 4 में "उपधारणाओं" का वर्णन किया गया हैं। इसमें "उपधारित करेगा" (shall presume) के अन्तर्गत विधि की अवधारणाएँ आती हैं, जिनका धाराएँ 79, 80, 81, 82, 83, 85, 89 तथा 104 में और जो 'निश्चायक सबूत' के अन्तर्गत आती हैं, उनका धाराएँ 41, 112 व 113 में विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है।

    इनमें "उपधारित करेगा" के अन्तर्गत विधि की खण्डनीय उपधारणायें हैं, जो तभी तक मान्य होती हैं, तब तक उनको प्रतिकूल साबित नहीं किया जाता; परन्तु "निश्चायक सबूत" के अन्तर्गत विधि की अखण्डनीय उपधारणाएँ होती हैं। परन्तु विधि तथा तथ्य की मिश्रित उपधारणाओं या प्रश्नों के बारे में अभिवचन में तात्विक तथ्य देने होंगे और उन्हें प्रमाणित भी करना होगा।

    ऐसी विधि की उपधारणा का यदि पहले ही किसी अभिवचन से प्रत्याख्यान (अस्वीकार) कर दिया गया हो, तो उत्तर में दिये गये अभिवचन में उस उपधारणा सम्बन्धी तात्विक तथ्य भी देने होंगे, अन्यथा साधारण रूप से विधि की उपधारणाओं के मामले में तात्विक तथ्य देने की कोई आवश्यकता नहीं है। यदि एक वचनपत्र पर वाद लाया जाता है, तो उसके प्रतिफल का कथन करना आवश्यक नहीं है, क्योंकि परिक्राम्य लिखित अधिनियम की धारा 118 वादी के पक्ष में उपधारणा करती है कि वचनपत्र प्रतिफल के लिए लिखा गया था।

    ऐसा वचनपत्र बिना किसी नशे, बहकावे या दबाव के लिखा गया था, ऐसा कथन भी उचित नहीं है, क्योंकि उस वचनपत्र की अवैधता को साबित करने का भार प्रतिवादी पर होता है। किसी पर्दानशीन महिला द्वारा लिखे गये बन्धपत्र के आधार पर वाद किया जाता है तो उसके लिए वादपत्र में यह कथन करना होगा कि यह वचनपत्र उसको पढ़कर सुना दिया और समझा दिया गया था और उसने अपनी स्वेच्छा से इसे निष्पादित किया था। क्योंकि इन तथ्यों को विधि के अनुसार वादी को साक्ष्य द्वारा साबित करना होगा।" परन्तु जहां एक निरक्षर व्यक्ति (अशिक्षित व्यक्ति) द्वारा लिखे गये वचनपत्र और रसीद पर वह व्यक्ति (प्रतिवादी) अपना अंगुष्टचिन्ह स्वीकार करता है, इससे उसके प्रतिफल को सिद्ध करने का भार उस प्रतिवादी पर नहीं आ जाता।

    नियम- 14 अभिवचन का हस्ताक्षरित किया जाना - हर अभिवचन पक्षकार द्वारा और यदि उसका कोई प्लीडर है तो उसके द्वारा हस्ताक्षरित किया जाएगा : परन्तु जहां अभिवचन करने वाला पक्षकार अनुपस्थिति के कारण या किसी अन्य अच्छे हेतुक से अभिवचन पर हस्ताक्षर करने में असमर्थ है वहां वह ऐसे व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित किया जा सकेगा जो उसकी ओर से उसे हस्ताक्षरित करने के लिए या वाद लाने या प्रतिरक्षा करने के लिए उसके द्वारा सम्यक् रूप से प्राधिकृत है।

    नियम का उद्देश्य - इस नियम का उद्देश्य यह है कि जिस व्यक्ति ने अभिवचन पर हस्ताक्षर किए हैं, वह बाद में यह नहीं कह सके कि यह वाद उसके द्वारा नहीं किया गया या अभिवचन में दिये कथनों का उसे पता नहीं था। इस नियम के अनुसार पक्षकार और वकील दोनों को हस्ताक्षर करने होंगे। हस्ताक्षर में अंगुठे का चिन्ह सम्मिलित माना गया है। कोरे कागज पर पहले हस्ताक्षर करवाकर उस पर अभिवचन तैयार करना इस नियम की अनुपालना नहीं मानी जाती। अनेक वादी होने पर किसी एक वादी के हस्ताक्षर पर्याप्त हैं।

    किसी निगम या कम्पनी के मामले में उसका संचालक, सचिव या मुख्य अधिकारी वादपत्र पर हस्ताक्षर कर सकता है। वादपत्र पर वादी के हस्ताक्षर होना आवश्यक है "परन्तुक" के अधीन जब कोई अन्य व्यक्ति हस्ताक्षर करता है, इसके लिये अच्छा कारण (हेतुक) बताना होगा।

    इसके लिये साधारणतया अलग से आवेदन करना चाहिए व शपथपत्र भी देना चाहिये। ऐसा आवेदन देने का संहिता में कोई उल्लेख नहीं है। परन्तु फिर भी पक्षकार द्वारा स्वयं हस्ताक्षर नहीं करने के कारण देना आवश्यक है। इसके लिए अभिवचन में एक पैरा अलग से या अन्त में एक टिप्पणी भी दी जा सकती है।

    नियम 14 व 15 में दी गई यह अध्यपेक्षा (मांग) कि एक वादपत्र पक्षकार द्वारा हस्ताक्षरित और साचाचित होना चाहिये, शुद्धरूप से प्रक्रियात्मक है और पक्षकार इस कमी को बाद में दूर कर सकता है। अतः इस आधार पर वाद को खारिज करना वैध नहीं होगा कि उस पर वादी या उसके मुखतियार ने हस्ताक्षर व सत्यापन नहीं किया, व उसके अभिवक्ता ने ऐसा किया।

    न्यायालय के लिए उचित मार्ग यही होगा कि वह उस वादी या उसके मुखतियार को वादपत्र पर हस्ताक्षर करने और उसे सत्यापित करने का एक अवसर दे। कर्म द्वारा किये गये वाद में वादपत्र पर भागीदार ने हस्ताक्षर किए। इस कारण से वाद को खारिज नहीं किया जा सकता।

    बिना हस्ताक्षर के अभिवचन- वादपत्र पर हस्ताक्षर करना केवल प्रक्रिया का मामला है। यदि वादी द्वारा या उसके द्वारा प्राधिकृत व्यक्ति द्वारा वादपत्र पर हस्ताक्षर नहीं किये गये हो, तो इस दोष का निर्णय से पहले जब भी पता लग जावे, न्यायालय वादी के हस्ताक्षर करवाकर वादपत्र को संशोधित कर सकता है। यह दोष अपील में भी ठीक किया जा सकता है, क्योंकि यह कोई ऐसा दोष नहीं है, जो न्यायालय की अधिकारिता या मामले के गुणावगुण पर प्रभाव डालता हो। वाद फाइल करने की परिसीमा की अवधि निकल जाने के बाद भी इस त्रुटि या दोष को ठीक किया जा सकता है। यह एक प्रक्रिया की भूल है, जिसे धारा 10 के अधीन ठीक किया जा सकता है।

    जब एक बालक मस्तिष्क से कमजोर था, तो उसके पिता द्वारा किसी व्यक्ति को वादपत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए प्राधिकृत करना वैध माना गया। आदेश के नियम 14 प्रक्रिया का मामला है। हस्ताक्षर किसी भी प्रक्रम पर प्राप्त किये जा सकते हैं। वादियों में से किसी एक द्वारा हस्ताक्षर न करने पर वादपत्र को नामंजूर करना अनुशेष नहीं है।

    नियम-14(क) सूचना की तामील के लिए पता (1) पक्षकार द्वारा फाइल किए जाने वाले हर अभिवचन के साथ पक्षकार के पते के बारे में विहित प्ररूप में कथन, नियम 14 में उपबन्धित रूप में हस्ताक्षरित करके देना होगा।

    (2) ऐसे पते को, न्यायालय में सम्यक रूप से भरे गए प्ररूप और सत्यापित याचिका के साथ पक्षकार के नए पते का कथन दाखिल करके, समय-समय पर परिवर्तित किया जा सरेगा।

    (3) उपनियम (1) के अधीन किए गए कथन में दिए गए पते को पक्षकार का रजिस्ट्रीकृत पता कहा जाएगा और जब तक पूर्वोक्त रूप से सम्यकृतः परिवर्तित न किया गया हो तब तक वह वाद में या उसमें दी गई किसी डिक्री या किए गए किसी आदेश की किसी अपील में सभी आदेशिकाओं की तामील के प्रयोजनों के लिए और निष्पादन के प्रयोजन के लिए पक्षकार का पता समझा जाएगा और पूर्वोक्त के अधीन रहते हुए इस मामले या विषय के अन्तिम निर्धारण के पश्चात् दो वर्षों की अवधि के लिए वही पता माना जाएगा।

    (4) किसी आदेशिका की तामील पक्षकार पर सभी बातों के बारे में उसके रजिस्ट्रीकृत पते पर इस प्रकार की जा सकेगी मानो वह पक्षकार वहां निवास करता रहा हो।

    (5) जहां न्यायालय को गृह पता चलता है कि किसी पक्षकार का रजिस्ट्रीकृत पता अधूरा, मिथ्या या काल्पनिक है वहां न्यायालय या तो स्वप्रेरणा से या किसी पक्षकार के आवेदन पर-

    (क) ऐसे मामले में जहां ऐसा रजिस्ट्रीकृत पता वादी द्वारा दिया गया था वहां वाद के रोके जाने का आदेश सकेगा अथवा दे (ख) ऐसे मामले में जहां ऐसा रजिस्ट्रीकृत पता प्रतिवादी द्वारा दिया गया था वहां उसकी प्रतिरक्षा काट दी जाएगी और वह उसी स्थिति में रखा जाएगा मानो उसने कोई प्रतिरक्षा पेश नहीं की हो।

    (6) जहा उपनियम (5) के अधीन किसी वाद को रोक दिया जाता है या प्रतिरक्षा काट दी जाती है वहां, यथास्थिति, वादी या प्रतिवादी अपना सही पता देने के पश्चात् न्यायालय से, यथास्थिति, रोक-आदेश या प्रतिरक्षा काटने के आदेश को अपास्त करने वाले आदेश के लिए आवेदन कर सकेगा।

    (7) यदि न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि पक्षकार उचित समय पर अपना सही पता फाइल करने में किसी पर्याप्त कारण से रोक दिया गया था, तो वह रोक-आदेश या प्रतिरक्षा के आदेश को खर्चा और अन्य बातों के बारे में ऐसे निबन्धनों पर जो वह ठीक समझे, अपास्त कर सकेगा और, यथास्थिति, वाद या प्रतिरक्षा की कार्यवाही के लिए दिन नियत करेगा।

    (8) इस नियम की कोई बात न्यायालय को आदेशिका की तामील किसी अन्य पते पर किए जाने का निदेश देने से, यदि वह किसी कारण से ऐसा करना ठीक समझे तो, नहीं रोकेगी।

    रजिस्ट्रीकृत पता - नियम 14क के अनुसार पक्षकार को विहित-प्ररूप में नियम 14 के अनुसार हस्ताक्षर करने के बाद न्यायालय में अपना पता देना होगा, जिसमें उपनियम (2) के अनुसार समय-समय पर परिवर्तन किया जा सकता है। यह रजिस्ट्रीकृत पता तामील आदि के लिए है।

    रजिस्ट्रीकृत पता अधूरा, मिथ्या या काल्पनिक पाया जाने पर न्यायालय उपनियम (5) के अनुसार कार्यवाही कर सकेगा और वाद को रोक सकेगा या प्रतिरक्षा काट सकेगा। इसे अपास्त कराने के लिए उपनियम (6) (7) में आवेदन किया जा सकेगा। न्यायालय उपनियम (8) के अनुसार किसी अन्य पते पर तामील करा सकेगा।

    Tags
    Next Story