सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 13: आदेश 5 नियम 2 से 19 तक के प्रावधान

Shadab Salim

27 Nov 2023 9:26 AM IST

  • सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 13: आदेश 5 नियम 2 से 19 तक के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 5 समन के निकाले जाने से लेकर समन की तामील तक के सभी प्रावधानों को स्पष्ट करता है। किसी भी वाद के संस्थित होने के ठीक बाद प्रतिवादियों को समन निकाला जाता है। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 5 के नियम 2 से लेकर अंतिम नियम तक सभी प्रावधानों पर चर्चा की जा रही है।

    नियम 2. समनों से उपाबद्ध वादपत्र की प्रति प्रत्येक समन के साथ वाद-पत्र की एक प्रति होगी।

    दिनांक 1-7-2002 से प्रत्येक समन के साथ वादपत्र की एक प्रति संलग्न करना अनिवार्य हो गया है। पहले संक्षिप्त कथन से ही काम चल जाता था, परन्तु अब दिनांक 1-7-2002 से वादपत्र की प्रति ही लगानी होती है।

    अब समन आधुनिक यंत्रों से भी भेजे जावेंगे अत: उन समनों के साथ भी वाद-पत्र को प्रति प्रसारित करनी होगी।

    वादपत्र के साथ शपथ पत्र उसमें दिये तथ्यों को साबित करने के लिए दिया जायेगा तथा वाद-पत्र का सत्यापन करने वाला वादी भी एक शपथ पत्र देगा।

    इस प्रकार वादपत्र में 1999 व 2002 के संशोधनों द्वारा महत्वपूर्ण नयी व्यवस्था की गई है।

    समन की तामील जब समुचित नहीं हो-

    वादपत्र की प्रति समन के साथ भेजने में असफल रहने पर उस समन की तामील को सम्यक् (समुचित) नहीं कहा जा सकता। यदि किसी समन के साथ वादपत्र की प्रतिलिपि नहीं है तो ऐसे समन की तामील नियमों की अपेक्षाओं के अनुसार तामील नहीं मानी जाएगी। समन के साथ वादपत्र की प्रति न होने पर ऐसा समन वैध नहीं है।

    न्यायालय का दायित्व-जब न्यायालय प्रतिवादी को तलब करने के लिए समन भेजता है तब न्यायालय को चाहिए कि वह वादपत्र के साथ संलग्न दस्तावेजों को प्रति भी प्रतिवादी को भेजे।

    नियम-3 न्यायालय प्रतिवादी या वादी को स्वयं उपसंजात होने के लिए आदेश दे सकेगा - (1) जहां न्यायालय के पास प्रतिवादी की स्वीय उपसंजाति अपेक्षित करने के लिए कारण हो वहां समन द्वारा यह आदेश किया जाएगा कि समन में विनिर्दिष्ट तारीख को वह न्यायालय में स्वयं उपसंजात हो।

    (2) जहां न्यायालय के पास वादी की उसी दिन स्वीय उपसंजाति अपेक्षित करने के लिए कारण हो वहां वह ऐसी उपसंजाति के लिए आदेश करेगा।

    नियम-4 किसी भी पक्षकार को स्वयं उपसंजात होने के लिए तब तक आदेश नहीं किया जाएगा जब तक कि वह किन्हीं निश्चित सीमाओं के भीतर निवासी न हो- किसी भी पक्षकार को स्वयं उपसंजात होने के लिए केवल तभी आदेश किया जाएगा जब वह - (क) न्यायालय की मामूली आरंभिक अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर निवास करता है, अथवा

    (ख) ऐसी सीमाओं के बाहर किन्तु ऐसे स्थान में निवास करता है जो न्यायसदन से पचास मील से कम या (जहां उस स्थान के जहां वह निवास करता है और उस स्थान के जहां न्यायालय स्थित है, बीच पंचषष्ठांश दूरी तक रेल या स्टीमर संवार या अन्य स्थापित लोक प्रवहन है वहां) दो सौ मील से कम दूर है।

    आदेश 5, नियम 3 व 4 में प्रतिवादी या वादी (पक्षकारों) को स्वयं उपसंजात होने का आदेश देने की व्यवस्था की गई है।

    उपसंजाति के लिए आदेश (नियम 3)- यदि ऐसे कारण हो कि वादी या प्रतिवादी की उपस्थिति व्यक्तिगत रूप से न्यायालय में आवश्यक है, तो इसके लिए न्यायालय नियत तिथि को समन द्वारा प्रतिवादी या वादी को स्वयं उपस्थित होने का आदेश दे सकेगा।

    आदेश कब नहीं दिया जाएगा (नियम-4) - नियन 3 के अधीन पक्षकारों की स्वयं की उपस्थिति का आदेश देने के लिए नियम 4 में निम्न शर्त लगाई गई है-

    (क) वह पक्षकार न्यायालय की साधारण प्रारंभिक अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं में रहता है या (ख) ऐसी सीमाओं के बाहर रहता है, परन्तु उस स्थान की दूरी न्यायालय के स्थान से 50 मील से कम है, यदि दोनों स्थानों के बीच की दूरी का पंचषष्टांग (5/6) भाग रेल, स्टीमर आदि से पार किया जा सकता हो, तो यह दूरी 200 मील से कम होगी।

    नियम-5 समन या तो विवाद्यकों के स्थिरीकरण के लिए या अंतिम निपटारे के लिए होगा।

    न्यायालय समन निकालने के समय यह अवधारित करेगा कि क्या वह केवल विवाद्यकों के स्थिरीकरण के लिए होना या वाद के अन्नितन निपटारे के लिए होगा और समन में तदनुसार निदेश अन्तर्विष्ट होगा परन्तु लघुवाद न्यायालय द्वारा सुने जाने वाले हर वाद में समन वाद के अंतिम निपटारे के लिए होगा।

    हालांकि नियम 5 की शर्त आज्ञापक है, पर इसे निदेशात्मक माना गया है। अतः इस नियम में बताये विवरण के अनुसार न चलने पर समन अवैध नहीं होगा और संयुक्त रूप से जारी रिट-समन को सम्यक तामील माना जायेगा।

    नियम-6 प्रतिवादी की उपसंजाति के लिए दिन नियत किया जाना-प्रतिवादी की उपसंजाति के लिए नियम 1 के उपनियम (1) के अधीन दिन, न्यायालय के चालू कारबार, प्रतिवादी के निवास स्थान और समन की तामील के लिए आवश्यक समय के प्रति निर्देश से नियत किया जाएगा और वह दिन ऐसे नियत किया जाएगा कि प्रतिवादी को ऐसे दिन उपसंजात होने और उत्तर देने को समर्थ होने के लिए पर्याप्त समय मिल जाए।

    नियम-7 समन प्रतिवादी को यह आदेश देगा कि यह वे दस्तावेजें पेश करे जिन पर यह निर्भर करता है- उपसंजाति और उत्तर के लिए समन में प्रतिवादी को आदेश होगा कि यह कब्जे या शक्ति में की ऐसी आदेश 8 के नियम 1-क में विनिर्दिष्ट सब दस्तावेजों या उनकी प्रतियों को पेश करे जिन पर अपने मामले के समर्थन में निर्भर करने का उसका आशय है।

    नियम-8 अंतिम निपटारे के लिए समन निकाले जाने पर प्रतिवादी को यह निदेश होगा कि यह अपने साक्षियों को पेश करे-जहां समन वाद के अंतिम निपटारे के लिए है यहां उसमें प्रतिवादी को यह निदेश होगा कि जिन साक्षियों के साक्ष्य पर अपने मामले के समर्थन में निर्भर करने का उसका आशय है उन सब को उसी दिन पेश करे जो उसकी उपसंजाति के लिए नियत है।

    नियम-9 न्यायालय द्वारा रामन का परिदान

    (1) जहां प्रतिवादी उस न्यायालय की अधिकारिता के भीतर निवास करता है, जिसमें वाद संस्थित किया गया है या उस अधिकारिता के भीतर निवास करने वाला उसका ऐसा अभिकर्ता है, जो समन की तामील का प्रतिग्रहण करने के लिए सशक्त है, वहां समन जब तक की न्यायालय अन्यथा निदेश न करे उचित अधिकारी को, उसके द्वारा या उसके अधीनस्थों में से एक या ऐसी कूरियर सेवा द्वारा, जो न्यायालय द्वारा अनुमोदित हो, तामील किए जाने के लिए परिदत्त किया या भेजा जाएगा।

    (2) उचित अधिकारी उस न्यायालय से भिन्न जिसमें वाद संस्थित किया गया है, किसी न्यायालय का अधिकारी हो सकेगा और जहां वह ऐसा अधिकारी है वहां समन उसे ऐसी रीति से भेजा जा सकेगा जो न्यायालय निदेश दे।

    (3) समन की तामील, प्रतिवादी या तामील का प्रतिग्रहण करने के लिए सशक्त किए गए उसके किसी अभिकर्ता को सम्बोधित रसीदी रजिस्ट्री डाक द्वारा अथवा स्पीड पोस्ट द्वारा अथवा ऐसी कूरियर सेवा द्वारा, जो उच्च न्यायालय या उपनियम (1) में निर्दिष्ट न्यायालय द्वारा अनुमोदित हो, अथवा उच्च न्यायालय द्वारा बनाये गये नियमों में यथा उपबंधित दस्तावेजों (जिसके अन्तर्गत फैक्स संदेश या इलेक्ट्रोनिक डाक सेवा भी है) के पारेषण के किसी अन्य साधन द्वारा उसकी एक प्रति के परिदान या पारेषण द्वारा की जा सकेगी परन्तु यह कि इस उपनियम के अधीन समन की तामील वादी के खर्च पर की जाएगी।

    (4) उप नियम (1) में किसी बात के होते हुए भी, जहां कोई प्रतिवादी उच्च न्यायालय की अधिकारिता के बाहर निवास करता है, जिसमें वाद संस्थित किया गया है और न्यायालय यह निर्देश देता है कि उस प्रतिवादी को समनों की तामील ऐसे माध्यम से की जाए, जैसा कि उपनियम (3) में निर्दिष्ट है (रसीदी रजिस्ट्रीकृत डाक से भिन्न), वहां नियम 21 के उपबंध लागू नहीं होंगे।

    (5) जब कोई अभिस्वीकृति या अन्य पावती, जिस पर प्रतिवादी या उसके अभिकर्ता द्वारा हस्ताक्षर होने तात्पर्थित है, न्यायालय द्वारा प्राप्त की जाती है अथवा डाक वस्तु, जिसमें समन अंतर्विष्ट है, न्यायालय द्वारा वापस प्राप्त किए जाते हैं जिस पर डाक कर्मचारी या कूरियर सेवा द्वारा प्राधिकृत किसी व्यक्ति द्वारा किया गया इस आशय का पृष्ठांकन तात्पर्थित है कि प्रतिवादी या उसके अभिकर्ता ने जब समन उसे भेजे गये या पारेषित किए गये थे तो उस डाक वस्तु का परिदान लेने से इन्कार कर दिया है जिसमें समन अन्तर्विष्ट थे अथवा उपनियम (3) में विनिर्दिष्ट किसी अन्य साधन से लेने से इन्कार कर दिया है, तो समन निकालने वाला न्यायालय यह घोषणा करेगा की सम्यक रूप से प्रतियादी पर तामील कर दिये गये है।

    परन्तु जहां समन उचित रूप में पता लिखकर, उस पर पूर्व संदाय करके और रसीदी रजिस्ट्री डाक द्वारा सम्यक रूप से भेजा गया था, यहां इस उपनियन में निर्दिष्ट घोषना इस तथ्य के होते हुए भी की जाएगी कि अभिस्वीकृति खो जाने या इधर-उधर हो जाने या किसी अन्य कारण से समन निकालने की तारीख से तीस दिन के भीतर न्यायालय द्वारा प्राप्त नहीं हुई है।

    (6) यथास्थिति, उच्च न्यायालय या जिला न्यायाधीश, उपनियन (1) के प्रयोजनों के लिए कूरियर अभिकरणों का एक पैनल तैयार करेगा।

    नियम-9(क)) तामील के लिए वादी को समन का दिया जाना (1) न्यायालय, नियम १ के अधीन समन को तामील के अतिरिक्त, वादी के आवेदन पर, प्रतिवादी के उपसंजात होने के लिए समन जारी करने के लिए ऐसे वादी को ऐसे प्रतिवादी पर ऐसे समनों को तामील करने के लिए अनुज्ञात कर सकेगा और ऐसे किसी मामले में ऐसे वादी को तामील के लिए समन का परिदान करेगा।

    (2) न्यायालय के न्यायाधीश या ऐसे अधिकारी द्वारा, जो यह इस निमित्त नियुक्त करे हस्ताक्षरित और न्यायालय की मुद्रा से मुद्रांकित ऐसे समनों की तामील, ऐसे वादी द्वारा उसकी ओर से उसकी एक प्रति वैयक्तिक रूप से प्रतिवादी को देकर या निविदान करके की जाली या तामील की ऐसी पद्धति से की जाएगी जो नियम 9 के उपनियम (3) में उल्लेखित है।

    (3) नियम 16 और नियम 18 के उपबंध इस नियम के अधीन वैयक्तिक रूप से तामील किए गए समनों पर उसी प्रकार लागू होंगे मानों तामील करने वाला व्यक्ति एक तामील करने वाला अधिकारी था।

    (4) यदि ऐसे समनों को, उनके निविदत किए जाने पर, प्राप्त करने से इन्कार किया जाता है या तामील किया गया व्यक्ति तामील की अभिस्वीकृति पर हस्ताक्षर करने से इन्कार करता है या किसी कारणवश ऐसा समन व्यक्तिगत रूप से तामील नहीं किया जा सकता है तो न्यायालय, पक्षकार के आवेदन पर, न्यायालय द्वारा प्रतिवादी को तामील की जाने बाली रीति से तामील किए जाने के लिये समनों को पुनः जारी करेगा।

    नियम-10 तामील का ढंग- समन की तामील उसकी ऐसी प्रति के परिदान या निविदान द्वारा की जाएगी जो न्यायाधीश या ऐसे अधिकारी द्वारा जो यह इस निमित्त नियुक्त करे, हस्ताक्षरित हो और जिस पर न्यायालय की मुद्रा लगी हो।

    नियम-11 अनेक प्रतिवादियों पर तामील-अन्यथा विहित के सिवाय जहां एक से अधिक प्रतिवादी है. यहां समन की तामील हर एक प्रतिवादी पर की जाएगी।

    नियम-12 जब साध्य हो तब समन की तामील स्वयं प्रतिवादी पर, अन्यथा उसके अभिकर्ता पर की जाएगी जहां कहीं भी यह साध्य हो वहां तामील स्वयं प्रतिवादी पर की जाएगी किन्तु यदि तामील का प्रतिग्रहण करने के लिए सशक्त उसका कोई अभिकर्ता है तो उस पर उसकी तामील पर्याप्त होगी।

    नियम-13 उस अभिकर्ता पर तामील जिसके द्वारा प्रतिवादी कारबार करता है- (1) किसी कारबार या काम से संबंधित किसी ऐसे वाद में जो किसी ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध है, जो उस न्यायालय की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर निवास नहीं करता है जिसने समन निकाला है, किसी भी ऐसे प्रबन्धक या अभिकर्ता पर तामील ठीक तामील समझी जागी जो तामील के समय ऐसी सीमाओं के भीतर ऐसे व्यक्ति के लिए स्वयं ऐसा कारबार या काम करता है। (2) पोल के मास्टर के बारे में इस नियम के प्रयोजन के लिए यह समझा जाएगा कि यह स्थानी या भाड़े पर लेने वाले व्यक्ति का अभिकर्ता है।

    नियम-14 स्थावर सम्पत्ति के वादों में भारसाधक अभिकर्ता पर तामील-जहां स्थावर सम्पत्ति की बाबत अनुतोष या उसके प्रति किए गए दोष के लिए प्रतिकर अभिप्राप्त करने के वाद में तामील स्वयं प्रतिवादी पर नहीं की जा सकती और प्रतिवादी का उस तामील का प्रतिग्रहण करने के लिए सशक्त कोई अभिकर्ता नहीं है यहां तामील प्रतिवादी के किसी ऐसे अभिकर्ता पर की जा सकेगी जो उस सम्पत्ति का भारसाधक है।

    नियम-15 जहां तामील प्रतिवादी के कुटुम्ब के वयस्क सदस्य पर की जा सकेगी जहां किसी वाद में प्रतिवादी अपने निवास स्थान से उस समय अनुपस्थित है जब उस पर समन की तामील उसके निवास स्थान पर की जानी है और युक्तियुक्त समय के भीतर उसके निवास स्थान पर पाए जाने की संभावना नहीं है और समन की तामील का उसकी ओर से प्रतिग्रहण करने के लिए सशक्त उसका कोई अभिकर्ता नहीं है वहां तामील प्रतिवादी के कुटुम्ब के ऐसे किसी वयस्क सदस्य पर, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, की जा सकेगी जो उसके साथ निवास कर रहा है।

    स्पष्टीकरण- इस नियम के अर्थ में सेवक कुटुम्ब का सदस्य नहीं है।

    उच्च न्यायालय संशोधन इलाहाबाद - आदेश 5 के नियम 15 में शब्द "जहाँ किसी वाद में प्रतिवादी नहीं मिलता है" के स्थान पर शब्द" जब प्रतिवादी अनुपस्थिति हो, या उस पर व्यक्तिगत तामीली नहीं हो सकती हो" प्रतिस्थापित किया जावे।

    नियम-16 वह व्यक्ति जिरा पर तामील की गई है, अभिस्वीकृति हस्ताक्षरित करेगा जहां तामील करने वाला अधिकारी समन की प्रति स्वयं प्रतिवादी को, या उसके निमित्त अभिकर्ता को या किसी अन्य व्यक्ति को, परिदत्त करता है या निविदत्त करता है वहां जिस व्यक्ति को प्रति ऐसे परिदत्त या निविदत्त की गई है उससे वह यह अपेक्षा करेगा मूल समन पर पृष्ठांकित तामील की अभिस्वीकृति पर अपने हस्ताक्षर करे।

    नियम-17 जब प्रतिवादी तामील का प्रतिग्रहण करने से इंकार करे या न पाया जाए, तब प्रक्रिया जहां प्रतिवादी कि वह या उसका अभिकर्ता या उपरोक्त जैसा अन्य व्यक्ति अभिस्वीकृति पर हस्ताक्षर करने से इंकार करता है, या जहां तामील करने वाला अधिकारी सभी सम्यक् और युक्तियुक्त तत्परता बरतने के पश्चात ऐसे प्रतिवादी को न पा सके. [जो अपने निवास स्थान से उस समय अनुपस्थित है, जब उस पर समन की तामील उसके निवास स्थान पर की जानी है और युक्तियुक्त समय के भीतर उसके निवास स्थान पर पाए जाने की संभावना नहीं है।

    ऐसा कोई अभिकर्ता नहीं है जो समन की तामील का प्रतिग्रहण उसकी ओर से करने के लिए सशक्त है और न कोई ऐसा अन्य व्यक्ति है जिस पर तामील की जा सके वहां तामील करने वाला अधिकारी उस गृह के, जिसमें प्रतिवादी मामूली तौर से निवास करता है या कारबार करता है या अभिलाभ के लिए स्वयं काम करता है, बाहरी द्वार पर या किसी अन्य सहजदृश्य भाग पर समन की एक प्रति लगाएगा और तब वह मूल प्रति को उस पर पृष्ठांकित या उससे उपाबद्ध ऐसी रिपोर्ट के साथ, जिसमें यह कथित होगा कि उसने प्रति को ऐसे लगा दिया है और वे कौनसी परिस्थितियां थी जिनमें उसने ऐसा किया, कथित होंगी और जिसने उस व्यक्ति का (यदि कोई हो) नाम और पता कथित होगा जिसने गृह पहचाना था और जिसकी उपस्थिति में प्रति लगाई गई थी, उस न्यायालय को लौटाएगा जिसने समन निकाला था।

    मध्यप्रदेश - आदेश 5 नियम 17 में के अन्त में निम्न परन्तुक जोड़ा जावे-

    "परन्तु यह जब विशेष तामीली जारी की गई है, और प्रतिवादी अभिस्वीकृति पर हस्ताक्षर करने से इन्कार करता है, यह आवश्यकन होगा कि निर्देशित किये अनुसार समन की प्रति चस्पा की जावे।" (उच्च न्यायालय की अधिसूचना क्रमांक 5283- क दिनांक 8-8-1960 एवं मध्यप्रदेश राजपत्र भाग 4 (घ) में दिनांक 16-9-1960 के पृष्ठ पर प्रकाशित)

    नियम-18 तामील करने के समय और रीति का पृष्ठांकन- तामील करने वाला अधिकारी उन सभी दशाओं में, जिनमें समन की तामील नियन 16 के अधीन की गई है उस समय को जब और उस रीति को जिससे समन की तामील की गई थी और यदि ऐसा कोई व्यक्ति है जिसने उस व्यक्ति को, जिस पर तामील की गई है. पहचाना था और जो समन के परिदान या निविदान का साक्षी रहा था तो उसका नाम और पता दर्ज़ करने वाली विवरणी मूल समन पर पृष्ठांकित करेगा या कराएगा या मूल समन से उपाबद्ध करेगा या कराएगा।

    (19) तामील करने वाले अधिकारी की परीक्षा- जहां समन नियम 17 के अधीन लौटा दिया गया है यहां तामील करने वाले अधिकारी की परीक्षा उसकी अपनी कार्यवाहियों की बाबत न्यायालय स्वयं या किसी अन्य न्यायालय द्वारा उक्त दशा में करेगा या कराएगा जिसने उस नियम के अधीन विवरणी तामील करने वाले अधिकारी द्वारा शपथपत्र द्वारा सत्यापित नहीं की गई है और उत्त दशा में कर सकेगा या करा सकेगा जिसमें वह ऐसे सत्यापित की गई है और उस मामले में ऐसी अतिरिक्त जांच कर सकेगा जो वह ठीक समझे और या तो यह घोषित करेगा कि समन की तामील सम्यक् रूप से हो गई है या ऐसी तामील का आदेश करेगा जो वह ठीक समझे।

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