सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 89: आदेश 19 नियम 2 के प्रावधान

Shadab Salim

18 Jan 2024 4:32 AM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 89: आदेश 19 नियम 2 के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 19 शपथपत्र से संबंधित है। शपथपत्र का उदगम सीपीसी के इस ही आदेश के अंतर्गत हुआ है, यही आदेश शपथपत्र की जननी है। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 19 के नियम 2 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

    नियम-2 अभिसाक्षी की प्रतिपरीक्षा के लिए हाजिरी कराने का आदेश देने की शक्ति

    (1) किसी भी आवेदन पर साक्ष्य शपथपत्र द्वारा दिया जा सकेगा, किन्तु न्यायालय दोनों पक्षकारों में से किसी की भी प्रेरणा पर अभिसाक्षी को आदेश दे सकेगा कि वह प्रतिपरीक्षा के लिए हाजिर हो।

    (2) जब तक कि अभिसाक्षी न्यायालय में स्वीय उपसंजाति से छूट न पाया गया हो या न्यायालय अन्यथा निदेश न करे, ऐसी हाजिरी न्यायालय में होगी।

    प्रतिपरीक्षा के लिए अभिसाक्षी (शपथकर्ता) की हाजिरी कराने का आदेश- (आदेश 19, नियम 2)-उपरोक्त नियम दो निम्न प्रावधान स्पष्ट किये गए हैं-

    किसी भी आवेदन पर साक्ष्य दिया जा सकेगा- इस प्रकार आवेदन पर साक्ष्य देने के लिए शपथपत्र पेश करने के लिए न्यायालय की अनुमति की आवश्यकता नहीं है। किन्तु न्यायालय को यह आदेश देने की शक्ति (विवेकाधिकार) दी गई है कि-(क) वह "दोनों पक्षकारों में से किसी की भी प्रेरणा पर" (ख) अभिसाक्षी (शपथकर्ता) को आदेश दे सकेगा कि वह प्रतिपरीक्षा के लिए हाजिर हो।

    इस प्रकार एक पक्षकार द्वारा आवेदन के साथ साक्ष्य के रूप में संतम शपथपत्र पेश करने पर प्रतिपक्षी अपनी प्रेरणा से (अर्थात्-मौखिक या लिखित आवेदन करके) उस शपथकर्ता अभिसाक्षी की प्रतिपरीक्षा करने का निवेदन कर सकता है। ऐसी स्थिति में न्यायालय उस अभिसाक्षी को प्रतिपरीक्षा के लिए हाजिर होने का आदेश दे सकेगा। इसके लिए समन भी जारी किया जा सकता है, या पक्षकार हाजिर कर सकता है।

    (3) उपनियम (2) के अनुसार यदि किसी अभिसाक्षी को न्यायालय में स्वीय उपसंजाति (स्वयं उपस्थिति) से छूट प्राप्त नहीं हैं, या न्यायालय कोई अन्य निदेश नहीं देता है तो ऐसे अभिसाक्षी को न्यायालय में हाजिरी देनी होगी।

    नियम 1 व 2 में अन्तर- कर्नाटक उच्च न्यायालय के मतानुसार नियम 1 और नियम 2 में अन्तर है। नियम 1 ने अपेक्षित सबूत (प्रमाण) अंतिम प्रमाण है, न कि प्रथम दृष्ट्या प्रमाण। इसी कारण से यह परन्तुक दिया गया है कि-यदि कोई पक्षकार गवाह की प्रतिपरीक्षा करना चाहता है, तो शपथपत्र के रूप में दी गई साक्ष्य को स्वीकार नहीं किया जाएगा। इसके विपरीत नियम 2 में न्यायालय को शपथपत्र द्वारा साक्ष्य लेने और शपथकर्ता की उपस्थिति दोनों का विवेकाधिकार दिया गया है। फिर नियम 2 अन्तरिम अनुतोष के आवेदन के पक्ष या विशेष में शपथपत्र की अपेक्षा करता है। अतः आदेश 39 के अधीन आवेदन पर शपथपत्र के आधार पर कार्यवाही की जा सकती है।

    नियम 1 केवल किसी तथ्य या किन्हीं भी विशिष्ट तथ्यों को शपथपत्र द्वारा साबित करने से संबंधित है। किसी भी समय किसी सिविल कार्यवाही में शपथपत्र द्वारा साबित करने का आदेश दिया जा सकता है, जब कि नियम-2 किसी भी आवेदन पर की जाने वाली कार्यवाही से सम्बन्धित है, न कि वाद की कार्यवाही से। अतः दोनों नियमों का परिक्षेत्र अलग अलग है और इसलिए विधायिका ने दो नियम अलग अलग अधिनियमित किये हैं।

    शब्द किसी भी आवेदन का अर्थ नियम 2 में प्रयुक्त शब्द किसी भी आवेदन को कुछ न्यायालय अन्तर्वर्ती आवेदन (जैसे-अस्थाई व्यादेश, निर्णय-पूर्व कुर्की, प्रापक, रिसीवर की नियुक्ति आदि) तक सीमित मानते हैं। जब कि दूसरे न्यायालय इसमें सभी प्रकार के आवेदन सम्मिलित मानते हैं।

    प्रतिपरीक्षा के लिए आवेदन-

    विपक्षी द्वारा प्रस्तुत शपथपत्र पर शपथकों की प्रतिपरीक्षा करने के लिए मौखिक निवेदन किया जा सकता है, लिखित आवेदन की आवश्यकता नहीं है। नियम 2 के परन्तुक में शब्द चाहता है का प्रयोग किया गया है, जब कि नियम 2 में दोनों पक्षकारों में से किसी की प्रेरणा पर शब्दावली है। अतः ऐसे लिखित आवेदन की आवश्यकता नहीं है।

    किसी आवेदन पर बिना न्यायालय के आदेश के शपथपत्र पर साक्ष्य दिया जा सकता है, हालांकि दूसरे पक्षकार के ऐसा चाहने पर न्यायालय प्रतिपरीक्षा के लिए अभिसाक्षी के हाजिर होने का आदेश दे सकता है। ऐसे मामले में, जिसमें शपथपत्र फाइल किया गया है, किसी साक्षी को सत्यवादिता या विश्वसनीयता को परख तब तक नहीं हो सकती है, जब तक उसकी प्रतिपरीक्षा नहीं की जाती है। अतः यदि दूसरे पक्षकार द्वारा ऐसी अपेक्षा की जाती है, तो प्रतिपरीक्षा का अनुरोध अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।

    न्यायालय का विवेकाधिकार- अन्तरिम व्यादेश के लिए प्रस्तुत आवेदन के साथ संलग्न शपथपत्र के शपथ-ग्रहता की प्रतिपरीक्षा के लिए उपस्थित करने का आदेश न्यायालय के विवेकाधीन होता है।

    शपथग्रहीता की प्रतिपरीक्षा की अनुमति-एक विभाजन-वाद में प्रतिवादी ने आवेदन किया कि इस वाद में फाइल किए गए शपथपत्र में जो कथन शपथ ग्रहीता ने दिये हैं, वे उस शपथपत्र के कथनों के विपरीत हैं, जो उसने भूमि को सीलिंग की कार्यवाही में दिया था। अतः शपथ ग्रहीता की प्रतिपरीक्षा आवश्यक है। इस प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया गया। अभिनिर्धारित किया गया-प्रतिपरीक्षा के अवसर के लिए मना नहीं किया जा सकता।

    इस सीमित प्रश्न पर प्रतिपरीक्षा की अनुमति दी गई। धारा 144 के अधीन प्रतिस्थापना हेतु प्रस्तुत आवेदन का निर्णय साक्ष्य के अधिमूल्यन के उपरांत किया जा सकता है। ऐसे आवेदन का आदेश 39 के समकक्ष नहीं माना जा सकता। प्रतिस्थापना हेतु प्रस्तुत आवेदन के समर्थन में प्रस्तुत शपथ पत्र को आदेश 19 नियम 2 के प्रयोजनार्थ साक्ष्य मान कर उस पर प्रतिपरीक्षा की अनुमति अनुज्ञेय है।

    जब पुनरीक्षण संभव नहीं - शपथपत्र के शपथ ग्रहीता की प्रतिपरीक्षा चाहने के आवेदन को नामंजूर कर देना विनिश्चय नहीं है। अतः पुनरीक्षण नहीं हो सकता।

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