सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 85: आदेश 18 नियम 16 के प्रावधान
Shadab Salim
16 Jan 2024 7:24 AM GMT
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 18 वाद की सुनवाई और साक्षियों की परीक्षा है। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 18 के नियम 16 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।
नियम-16. साक्षी की तुरन्त परीक्षा करने की शक्ति-
(1) जहाँ साक्षी न्यायालय की अधिकारिता से बाहर जाने वाला है या इस बात का पर्याप्त कारण न्यायालय को समाधानप्रद रूप में दर्शित कर दिया जाता है कि उसका साक्ष्य तुरन्त क्यों लिया जाना चाहिए वहाँ न्यायालय वाद के संस्थित किए जाने के पश्चात् किसी भी समय ऐसे साक्षी का साक्ष्य किसी भी पक्षकार या उस साक्षी के आवेदन पर उसी रीति से ले सकेगा जो इसमें इसके पूर्व उपबन्धित है।
(2) जहाँ ऐसा साक्ष्य तत्क्षण ही और पक्षकारों की उपस्थिति में न लिया जाए वहाँ परीक्षा के लिए नियत दिन की ऐसी सूचना, जो न्यायालय पर्याप्त समझे, पक्षकारों को दी जाएगी।
(3) ऐसे लिया गया साक्ष्य साक्षी को पढ़कर सुनाया जाएगा और यदि वह स्वीकार करता है कि वह शुद्ध है तो वह उसके द्वारा हस्ताक्षरित किया जाएगा और न्यायाधीश उसे यदि आवश्यक हो तो शुद्ध करेगा और हस्ताक्षरित करेगा और तब उस वाद की किसी भी सुनवाई में वह पढ़ा जा सकेगा।
यह नियम न्यायालय को कुछ परिस्थितियों में किसी साक्षी की तुरन्त परीक्षा करने की शक्तियाँ प्रदान करती है।
(1) जब साक्षी-(क) न्यायालय की अधिकारिता से बाहर जाने वाला हो, या पक्षकार द्वारा आवेदन में (ख) उसका तुरन्त साक्ष्य लेने के लिए समाधानप्रद रूप से पर्याप्त-कारण बताये गये हों, तो उस साक्षी की तुरन्त परीक्षा की जा सकेगी, जो पीछे बताये गये तरीके से की जायेगी।
एक वाद में वृद्ध व्यक्ति गंभीर बीमारी से पीड़ित वादी ने तुरन्त परीक्षा की जाने हेतु आवेदन प्रस्तुत किया। आदेश 18 नियम 16 के अधीन आवेदन स्वीकार किया गया।
यदि तत्क्षण (तुरन्त) साक्ष्य लेखबन्द नहीं की जा सके तो इसके लिए दिन नियत कर पक्षकारों को सूचना दी जावेगी। यह इस नियम का आवश्यक प्रावधान है।
वाद संस्थित किये जाने के बाद किसी भी समय उपरोक्त कार्यवाही की जा सकेगी। साक्षी के साक्ष्य को उसे पढ़कर सुनाया जावेगा। आवश्यकता हो, तो उसे शुद्ध किया जा सकेगा और उस पर फिर साक्षी व न्यायाधीश हस्ताक्षर करेंगे। इस साक्ष्य को उस वाद की सुनवाई में पढ़ा जा सकेगा।
कमीशन पर साक्षी के बयानों पर हस्ताक्षर -
एक वाद में तथ्य थे कि संहिता के आदेश 18, नियम 16 के अधीन लेखबद्ध किए गए बयानों के अतिरिक्त न्यायालय में रिकार्ड किए बयानों पर साक्षी के हस्ताक्षर लेने का कोई उपबन्ध नहीं है। यह प्रतीत होता है कि-कमीशन पर लेखबद्ध बयानों पर साक्षी के हस्ताक्षर न्यायालय को विश्वास दिलाने के लिए लेने होते हैं। अतः यह नहीं कहा जा सकता कि-बयानों पर गवाह के हस्ताक्षर नहीं लेने से ऐसे बयान अपूर्ण रह जाते हैं। यदि कमीशन पर लेखबद्ध किये गये गवाह के बयानों की शुद्धता और असत्यता पर कोई विवाद नहीं है, तो ऐसे बयान अधूरे या अवैध नहीं हैं। नियमों में गवाह के हस्ताक्षर लेने की अपेक्षा निर्देशात्मक है, आज्ञापक नहीं। अतः अभिनिर्धारित किया गया कि कमीशन पर लिए गए गवाह के बयानों पर उसके हस्ताक्षर न लेने का दोष घातक नहीं है और उसके बयानों को साक्ष्य में ग्रहण किया जा सकता है।
आदेश 18, नियम 16 के अधीन गवाह की तुरन्त परीक्षा करने का आदेश पारित किया गया, यह निर्णीत मामले में नहीं आता। अतः इसका पुनरीक्षण नहीं हो सकता, क्योंकि यह पुनरीक्षण की अधिकारिता में नहीं आता।
गवाह की तुरन्त परीक्षा करना-यह न्यायालय का विवेकाधिकार है कि वह निष्कर्ष पर पहुँचे कि क्या गवाह की तुरन्त परीक्षा करने के लिए कोई पर्याप्त कारण है या नहीं। इसकी मांग पक्षकरो द्वारा अधिकारपूर्वक नहीं की जा सकती है।
जब न्यायालय का ऐसा समाधान हो जाए और वह गवाह की तुरन्त परीक्षा करने के पक्ष में अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करे तो उस आदेश में कोई हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है।
न्यायालय साक्षी को पुनः बुला सकेगा और उसकी परीक्षा कर सकेगा-न्यायालय वाद के किसी भी प्रक्रम में ऐसे किसी भी साक्षी को पुनः बुला सकेगा जिसकी परीक्षा की जा चुकी है और (तत्समय प्रवृत्त साक्ष्य की विधि के अधीन रहते हुए) उससे ऐसे प्रश्न पूछ सकेगा जो न्यायालय ठीक समझे।