सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 79: आदेश 17 (स्थगन) के नियम 2 के प्रावधान

Shadab Salim

11 Jan 2024 7:07 AM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 79: आदेश 17 (स्थगन) के नियम 2 के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 17 किसी वाद में स्थगन के अर्थ को स्पष्ट करते हुए यह बताता है कि अदालत किन किन परिस्थितियों में स्थगन आदेश दे सकती है। आदेश 17 का नियम-2 स्थगित दिनांक को उपसंजात होने में असफल रहने पर अपनायी जाने वाली प्रक्रिया से संबंधित है।

    नियम-2 यदि पक्षकार नियत दिन पर उपसंजात होने में असफल रहते है तो प्रक्रिया-वाद की सुनाई जिस दिन के लिए स्थगित हुई है, यदि उस दिन पक्षकार या उनमें से कोई उपसंजात होने में असफल रहते हैं, तो न्यायालय आदेश 9 द्वारा उस निमित्त निदिष्ट ढंगों में से एक से वाद का निपटारा करने के लिए अग्रसर हो सकेगा या ऐसा अन्य आदेश कर सकेगा जो वह ठीक समझे। [स्पष्टीकरण-जहाँ किसी पक्षकार का साक्ष्य या साक्ष्य का पर्याप्त भाग पहले ही अभिलिखित किया जा चुका है और ऐसा पक्षकार किसी ऐसे दिन जिस दिन के लिए वाद की सुनवाई स्थगित की गई है, उपसंजात होने में असफल रहता है वहाँ न्यायालय स्वविवेकानुसार उस मामले में इस प्रकार अग्रसर हो सकेगा, मानो ऐसा पक्षकार उपस्थित हो।]

    आदेश 17 का नियम 2 बहुत महत्त्वपूर्ण है, जिसमें पक्षकार की अनुपस्थिति का परिणाम दिया है।

    अनुपस्थिति- वाद की सुनवाई जिस दिन के लिए स्थगित हुई (अर्थात्-स्थगित पेशी) उस दिन यदि कोई पक्षकार या दोनों पक्षकार अनुपस्थित रहता है तो,

    इस स्थिति में न्यायालय के सामने दो मार्ग हैं- (क) वह आदेश 9 में दिए गए किसी तरीके में से एक द्वारा वाद का निपटारा करने के लिए अग्रसर हो सकेगा - अर्थात् कार्यवाही आगे चलेगी या (ख) कोई अन्य आदेश कर सकेगा जो वह ठीक समझे।

    (स्पष्टीकरण) - (1) जहाँ किसी पक्षकार का साक्ष्य उपस्थिति मान लेना (प्रकल्पित उपस्थिति) या साक्ष्य का पर्याप्त भाग लेखबद्ध कर लिया गया है और (2) वह स्थगित पेशी पर अनुपस्थित रहता है, (3) तो न्यायालय उस पक्षकार को उपस्थित मान लेगा और (4) स्वविवेक से उस मामले में आगे कार्यवाही करेगा।

    आदेश 9, नियम 6(1) (क) 7, आदेश, नियम तथा आदेश 17, नियम लागू होना-

    प्रतिवादी की अनुपस्थिति का परिणाम आदेश 9, नियम (9) (क) किसी वाद की पहली सुनवाई (फर्स्ट हियरिंग) तक सीमित है और यह दृश्यतः वाद की सुनवाई को लागू नहीं होता। पहली सुनवाई या तो विवाद को बनाने के लिए होती है, या अन्तिम सुनवाई के लिए। यदि यह केवल विवाद्यकों को तय करने के लिए है तो उस दिन न्यायालय एकपक्षीय डिक्री आदेश 15 के नियम 3(1) के परन्तुक के कारण पारित नहीं कर सकता।

    एकपक्षीय का केवल यह अर्थ है कि दूसरे पक्षकार की अनुपस्थिति में जब प्रतिवादी को तामील हो गई और उसे उपस्थित होने का एक अवसर दिया गया, फिर भी यदि वह उपस्थित नहीं होता है, तो न्यायालय उसकी अनुपस्थिति में कार्य कर सकेगा, परन्तु न्यायालय को एकपक्षीय आदेश करने का निर्देश नहीं है। नियम (9) (क) एक बाधा को हटाने के अलावा अधिक कुछ नहीं करता। यह न्यायालय को केवल एक पक्षकार की अनुपस्थिति में आगे कार्यवाही करने के लिए प्राधिकृत करता है।

    नियम 9 कहता है कि- यदि एक स्थगित की गई सुनवाई पर प्रतिवादी उपस्थित होता है और अपनी पिछली अनुपस्थिति को कोई अच्छा कारण दर्शित करता है, तो उसे वाद के उत्तर के लिए सुना जा सकता है, मानो वह उस दिन उपस्थित था। यदि पक्षकार वाद की स्थगित सुनवाई पर उपस्थित हो जाता है, तो उसे केवल इसलिए कार्यवाही में भाग लेने से मना नहीं किया जा सकता कि वह पहली या किसी अन्य सुनवाई पर उपस्थित नहीं था। यदि प्रतिवादी पहली सुनवाई पर उपस्थित नहीं होता है, तो बिना किसी लिखित कथन के न्यायालय एकपक्षीय कार्यवाही कर सकता है।

    आदेश 9 विषय यह स्पष्ट करता है कि बिना अच्छा कारण बताये उपस्थित हुआ प्रतिवादी अपनी उसी स्थिति को प्राप्त नहीं कर सकता। वह लिखित कथन लेख नहीं कर सकता, जब तक उसे अनुमति न दे दी जाए और यदि न्यायालय यह समझे कि उस मामले में लिखित कथन प्रस्तुत किया जाना चाहिए था, तो उसे आदेश 8 नियम 10 के परिणाम भुगतने होंगे। वे परिणाम क्या होने चाहिए, यह किसी विशेष मामले में, न्यायिक विवेकाधिकार का प्रयोग करते हुए, न्यायालय द्वारा न्याय के हित में तय किये जाए, अर्थात् केवल प्रतिवादी को ही न्याय नहीं, अपितु दूसरे पक्ष को भी और गवाहों को भी जिन्हें असुविधा हुई।

    यदि प्रतिवादी स्थगित सुनवाई पर उपस्थित नहीं होता है, तो आदेश 17, नियम 2 लागू होगा और न्यायालय को यथासंभव व्यापक विवेकाधिकार दिया गया है कि वह या तो उस वाद का आदेश 9 में बताये गये तरीकों में से एक द्वारा निपटारा करे या ऐसा कोई आदेश को, जो वह उचित समझे।

    स्पष्टीकरण का लागू होना-पक्षकारों की अनुपस्थिति (आदेश 17, नियम 2 का स्पष्टीकरण) यदि कोई भी पक्षकार मुकदमे की सुनवाई पर अनुपस्थित रहता है, तो उक्त नियम 2 के अनुसार ही कार्यवाही करने का विकल्प बचता है। उक्त नियम 2 का स्पष्टीकरण तब लागू होता है, जब अनुपस्थित पक्षकार का पर्यात साक्ष्य लेखबद्ध हो चुका हो।

    अभिनिर्धारित कि-जिन मामलों में पक्षकार अनुपस्थित होता है, उनमें जैसा कि आदेश 17(3) (ख) में वर्णित है, नियम 2 के अधीन कार्यवाही करने का मार्ग शेष रह जाता है। अतः यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी की अनुपस्थिति में न्यायालय के पास नियम 2 के अधीन कार्यवाही करने के सिवाय कोई चारा नहीं था। इस प्रकार वर्तमान नियम 2 की भाषा से भी वह स्पष्ट पता चलता है कि यदि कोई सा भी पक्षकार हाजिर नहीं हो पाता है, तो न्यायालय को आदेश 9 के अन्तर्गत दिए गये ढंगों में से एक ढंग से बाद का निपटारा करने के लिए अग्रसर होना होगा।

    नियम 2 का स्पष्टीकरण के अधीन कार्यवाही करने का विवेकाधिकार प्रदान करता है भले ही कोई पक्षकार अनुपस्थित हो। किन्तु वह विवेकाधिकार केवल उन लोगों तक सीमित है जिनमें अनुपस्थित पक्षकार ने कोई साक्ष्य दिया है या उसके साक्ष्य का पर्याप्त भाग लेखबद्ध किया जा चुका है। अत: यह स्पष्ट है कि यदि नियत तारीख को कोई सा पक्षकार अनुपस्थित रहता है और उस पक्षकार की ओर से उस तारीख तक कोई साक्ष्य नहीं दिया गया है।

    न्यायालय के पास सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 9 में विहित किसी एक ढंग से आदेश 17, नियम 2 के अनुसार मामले का निपटारा करने के लिए अग्रसर होने के सिवाय कोई दूसरा चारा नहीं होगा अतः यह स्पष्ट है कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 17, नियम 2 और 3 में इस संशोधन के बाद इसमें कोई संदेह नहीं है और इसलिए किसी संविवाद को संभावना भी नहीं है। यह प्रकट है कि जब प्रतिवादी अनुपस्थित था तो आदेश 17, नियमम 2 न्यायालय को आदेश 9 में दिए गए किसी एक ढंग के मामले का निपटारा करने के लिए अनुज्ञात करता था।

    सुनवाई के दिन प्रतिवादी उपस्थित होने में विफल रहा। न्यायालय आदेश 17 नियम 2 के अन्तर्गत आदेश परित करते हुए प्रतिवादी के विरुद्ध आदेश 9 के अन्तर्गत एकपक्षीय डिक्री पारित की। प्रतिवादी एकपक्षीय डिक्री को अपास्त करवाने हेतु आदेश 9 नियम 13 के अन्तर्गत आवेदन कर सकता है।

    वादी की अनुपस्थिति में वाद खारिज करना उचित आदेश 17 के नियम 2 व 3 में अन्तर-

    अनुपस्थिति होने पर नियम 2 लागू होना, न कि नियम 3 - यह स्पष्ट है कि आदेश 17, नियम 2 विनिर्दिष्ट (विशेष) रूप से पक्षकारों को अनुपस्थिति का वर्णन करता है और उपबन्ध करता है कि यदि पक्षकार स्थगित सुनवाई की तारीख पर उपस्थित न हो सके, तो न्यायालय आदेश 9 के अधीन उपबंधित (बताए गए) ढंग से वाद को निपटाने के लिए अग्रसर हो सकेगा और ऐसा आदेश कर सकेगा, जिसे वह उपयुक्त समझे। नियम 2 का स्पष्टीकरण यह भी उपबंध करता है कि जहां किसी पक्षकार के साक्ष्य या साक्ष्य का पर्याप्त भाग पहले ही अभिलिखित किया जा चुका है और ऐसा पक्षकार उस तारीख को जिसके लिए सुनवाई हेतु वाद स्थगित किया गया है, उपसंजात होने में असफल रहता है तो न्यायालय स्वविवेकानुसार मामले में अग्रसर हो सकेगा, मानो ऐसा पक्षकार उपसंजात हो।

    पक्षकारों की अनुपस्थिति का प्रभाव- एक मामले अन्तिम सुनवाई की तारीख को प्रतिवादी ने स्थगन के लिए आवेदन किया और उसे स्वीकार कर लिया गया। स्थगित तारीख को प्रतिवादी के अधिवक्ता ने फिर एक और स्थगन के लिए प्रार्थना की, जिसे अस्वीकार कर दिया गया और अधिवक्ता ने आगे कोई निर्देश नहीं कहकर अपने को मामले से हटा लिया। न्यायालय ने आदेश 17, नियम 3 के अधीन कार्यवाही की और निर्णय सुना दिया।

    इस पर प्रतिवादी ने आदेश 9, नियम 13 के अधीन एकपक्षीय डिक्री को अपास्त कराने के लिए आवेदन किया। न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि आदेश 17 का नियम 2 लागू नहीं होता है और आदेश 17, नियम 3 लागू होता है। अतः आदेश 9, नियम 13 लागू नहीं होता और प्रतिवादी का उपचार अपील करने में है।

    एक वाद में प्रश्न उठा कि एक मामले में जहां प्रतिवादी एक स्थगन लेकर स्थगित तारीख को उपस्थित नहीं होता है, तो क्या वह मामला आदेश 17 के नियम 2 द्वारा आवृत होगा और क्या न्यायालय को आदेश 17, नियम 3 के अधीन आदेश पारित करने को अधिकारिता है। प्रश्न पूर्णपीठ के विचारार्थ भेजा गया।

    पूर्णपीठ ने बहुमत से निर्णय दिया कि ऐसा मामला आदेश 17 के नियम 2 में आवृत होता था और आदेश 9 नियम 13 के अधीन आवेदन किया जा सकेगा; चाहे न्यायालय नियम 3 के अधीन कार्यवाही करने का कथन करे। नियम 3 उस समय लागू होता है, जब पक्षकार उपस्थित हो या उपस्थित समझे गये हों और नियम 3 में बताये गये कार्यों में चूक कर दी गई हो।

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