सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 58: आदेश 11 नियम 6 से 11 तक के प्रावधान

Shadab Salim

28 Dec 2023 11:30 AM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 58: आदेश 11 नियम 6 से 11 तक के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 11 परिप्रश्न एवं प्रकटीकरण से संबंधित है। इस आलेख के अंतर्गत संयुक्त रूप से नियम 6,7,8,9,10 एवं 11 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

    नियम-6 परिप्रश्नों के सम्बन्ध में उत्तर द्वारा आक्षेप किसी भी परिप्रश्न का उत्तर देने की बाबत इस आधार पर कि वह परिप्रश्न कलंकात्मक या विसंगत है या वाद के प्रयोजन के लिए सद्‌भावपूर्वक प्रदर्शित नहीं किया गया है या वे विषय जिनके बारे में पूछताछ की गई है, उस प्रक्रम में पर्याप्त रूप से तात्विक नहीं है या विशेषाधिकार के आधार पर या किसी अन्य आधार पर कोई भी आक्षेप उत्तर में दिए गए शपथपत्र में किया जा सकेगा।

    नियम-7 परिप्रश्नों का अपास्त किया जाना और काट दिया जाना कोई भी परिप्रश्न इस आधार पर अपास्त किए जा सकेंगे कि वे अयुक्तियुक्तः या तंग करने के लिए प्रदर्शित किए गए हैं या इस आधार पर काट दिए जा सकेंगे कि वे अतिविस्तृत, पीड़ा पहुंचाने वाले, अनावश्यक या कलंकात्मक है और इस प्रयोजन के लिए कोई भी आवेदन परिप्रश्नों की तामील के पश्चात् सात दिन के भीतर किया जा सकेगा।

    नियम-8 उत्तर में दिए गए शपथ-पत्र का फाइल किया जाना-परिप्रश्नों का उत्तर शपथ-पत्र द्वारा दिया जाएगा। जो दस दिन के भीतर या ऐसे अन्य समय के भीतर जो न्यायालय अनुज्ञात करे, फाइल किया जाएगा।

    नियम-9 उत्तर में दिए गए शपथ-पत्र का प्ररूप-परिप्रश्नों के उत्तर में दिया गया शपथपत्र परिशिष्ट ग के प्ररूप के संख्यांक 3 में ऐसे फेरफार के साथ होगा जो परिस्थितियों में अपेक्षित हो।

    नियम-10 कोई आक्षेप नहीं किया जाएगा-उत्तर में दिए किसी शपथपत्र पर कोई भी आक्षेप नहीं किए जाएंगे। किन्तु किसी शपथपत्र के अपर्याप्त होने का आक्षेप किए जाने पर उसका अपर्याप्त होना या न होना न्यायालय द्वारा अवधारित किया जाएगा।

    नियम-11 उत्तर देने के या अतिरिक्त उत्तर देने के लिए आदेश - जहां-जहां कोई व्यक्ति जिससे परिप्रश्न किया गया है उत्तर देने का लोप करता है या अपर्याप्त उत्तर देता है वहां परिप्रश्न करने वाला पक्षकार न्यायालय से इस आदेश के लिए आवेदन कर सकेगा कि उस पक्षकार से यह अपेक्षा की जाए कि वह, यथास्थिति, उत्तर दे या अतिरिक्त उत्तर दे और उससे यह अपेक्षा करने वाला आदेश लिया जा सकेगा कि वह, न्यायालय द्वारा जैसा भी निदेश दिया जाए, या तो शपथपत्र द्वारा उत्तर दे या अतिरिक्त उत्तर दे।

    परिप्रश्नों के बारे में आक्षेप (एतराज) उत्तर देने वाले पक्षकार परिप्रस्नों के बारे में दो प्रकार से आक्षेप उठा सकता है-

    (क) नियम 7 के अधीन- पक्षकारों की तामील होने के बाद सात दिन के भीतर परिप्रश्नों में से निम्न में से कोई एक आधार पर काट दिये जाने के लिए एक आवेदन दिया जा सकेगा-

    (1) कोई परिप्रश्न अयुक्तियुक्त या तंग करने वाले हैं- इनका उद्देश्य युक्तियुक्त नहीं है और ये दुर्भावना, कपट आदि से प्रेरित हैं। इस आधार पर ऐसे प्रश्नों को न्यायालय अपास्त कर सकेगा अधवा- (a) वे परिप्रश्न अतिविस्तृत, पीड़ा पहुंचाने वाले, अनावश्यक या कलंकात्मक (कोई दोष, आरोप या कंलक लगाने वाले हैं) इन आक्षेपों पर न्यायालय विचार कर उनको काट सकेगा।

    इस प्रकार इस प्रारम्भिक प्रक्रम पर ही अनुचित परिप्रश्नों के विरुद्ध एतराज करने पर न्यायालय द्वारा उनको हटाया या काटा जा सकता है।

    (ख) नियम 6 के अधीन नियम के अनुसार दस दिन के भीतर उत्तर में एक शपथपत्र दिया जाएगा, जिसमें नियम 6 के अधीन एतराज उठाये जा सकेंगे।

    यह उत्तर- शपथपत्र नियम 9 के अनुसार परिशिष्ट "ग" के प्ररूप संख्यांक 3 में आवश्यकतानुसार फेरफार करके दिया जायेगा। इसमें निम्नांकित पांच में से कोई भी आक्षेप उठाये जा सकते हैं।

    (1) वह परिप्रश्न कलंकात्मक या विसंगत (असंगत) है- अर्थात् उस परिप्रश्न में अपमानजनक, भद्दे या कलंक (दोष) या आरोप लगाने वाली बातें हैं- या वह इस वाद के विवाद के विषय से संबंधित नहीं है, असंगत है-

    (2) यह परिप्रश्न वाद के प्रयोजन के लिए स‌द्भावपूर्वक नहीं पूछा गया है। इस प्रश्न के पीछे पक्षकार की दुर्भावना, कपट, दुरभिसंधि आदि छिपी हुई है।

    (3) इस प्रक्रम (स्टेज) पर ऐसे प्रश्न पूछना तात्विक नहीं है- अर्थात् अपरिपक्व प्रक्रम पर ये प्रश्न पूछे गये हैं-या-

    नियम 10 के अनुसार उत्तर में दिये गये प्रतिपक्षी के शपथपत्र पर कोई आक्षेप अर्थात्- प्रतिआक्षेप या आक्षेप का आक्षेप नहीं किया जावेगा।

    परन्तु शपथपत्र पर अपर्यान होने का आक्षेप किया जा सकेगा, जिस पर न्यायालय यह निर्णय लेगा कि वह शपथपत्र अपर्यात है या नहीं।

    उत्तर या अतिरिक्त उत्तर के लिए आदेश- नियम 2 के अनुसार-

    (1) जहां किसी उत्तरदाता ने उत्तर देने का लोप किया है या अपर्याप्त उत्तर दिया है, तो

    (2) प्रश्नकर्ता पक्षकार न्यायालय में आवेदन कर सकेगा कि ऐसे पक्षकार से अपेक्षा (मांग) की जाए कि वह लोप किए गये प्रश्न का उत्तर दे या अपर्यान उत्तर का अतिरिक्त उत्तर दे।

    (3) इस पर न्यायालय निदेश दे सकेगा कि वह उत्तर दाता पक्षकार या तो शपथपत्र द्वारा, या मौखिक परीक्षा द्वारा उत्तर या अतिरिक्त उत्तर दे।

    (4) प्रकटीकरण के आदेश की अनुपालना न करने पर नियम 21 के अधीन कार्यवाही दोषी पक्षकार के विरुद्ध की जावेगी। दोषी पक्षकार से गलत व अनुचित परिप्रश्नों के बारे में खर्चे वसूल करने का उपबंध पीछे नियम 3 में किया गया है।

    (5) परिप्रश्नों के उत्तरों का विचारण में उपयोग किया जा सकता है।

    एक वाद में कहा गया है कि परिप्रश्न, जिनके लिए अनुमति नहीं दी जा सकती- निम्न प्रकार के मामलों में परिप्रश्न पूछने के अनुमति नहीं दी जानी चाहिये-

    1. उन तथ्यों को प्रक्ट करने के लिये जो प्रतिपक्षी के साक्ष्य का गठन करते हैं- अर्थात् सास्थिक तथ्यों के बारे में।

    2. जो प्रश्न किसी गवाह से प्रतिपरीक्षा में पूछे जा सकते हो उन्हें परिप्रश्न द्वारा पूछने की अनुमति नहीं दी जा सस्ती।

    3. वाद के बारे में विवादग्रस्त प्रश्न या विवाद्यक से असंगत प्रश्न नहीं पूछे जा सकते।

    4. परिप्रश्नों का स्वरूप दबाव डालने वाला, अनावश्यक और उलझन भरा हो, या अपमानजनक व अपशब्दों से भरा हो।

    5. जब प्रश्न में विपि के तथ्यों से सम्बन्धित हों।

    6. भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 121 में 129 में वर्णित व्यक्तियों को प्रश्नों के उत्तर देने से मुक्त किया गया है। अतः ऐसे प्रश्न नहीं पूछे जा सकते, जो इन धाराओं से आवृत होते हैं।

    इस प्रकार उपरोक्त मामलों में परिप्रश्नों के लिए न्यायालय द्वारा अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। फिर भी यदि न्यायालय ऐसे परिप्रश्नों की अनुमति दे देता है, तो व्यथित पक्षकार द्वारा आदेश 11, नियम 6 के अधीन उत्तर द्वारा आक्षेप किया जा सकेगा, जिसे नियम 1 के अधीन न्यायालय अपास्त कर सकेगा।

    उससे उत्तर देने की अपेक्षा करने वाला आदेश का अर्थ- आदेश का प्ररूप- केवल परिप्रश्न देने की अनुज्ञा देने का आदेश उससे उत्तर देने की अपेक्षा करने वाला आदेश नहीं होता। आदेश 11, नियम 11 के अधीन पारित किये जाने वाले आदेश का कोई विशेष प्ररूप निश्चित नहीं है। जहां प्रतिवादी निश्चित समय के भीतर परिप्रश्नों का उत्तर प्रस्तुत नहीं कर सका और न्यायालय ने इस पर यह निर्देश दिया कि उसे किसी निश्चित दिनांक को या उससे पहले परिप्रश्नों का उत्तर देने के लिए एक और अवसर दिया जाता है तो यह अभिनिर्धारित किया गया कि उक्त आदेश 11 के नियम 11 के अधीन एक आदेश था।

    परिप्रश्न देने की अनुमति मात्र देने से यह नहीं होता कि विरोधी पक्षकार से उनका उत्तर चाहा गया है। येनकेन, ऐसा कोई विशेष प्ररूप (फार्म) नहीं है, जिसमें आदेश 11 के नियम 11 के अधीन आदेश दिया जाए। प्रतिवादी निश्चित समय में उसे दिए गए परिप्रश्नों का उत्तर देने में असफल रहा।

    न्यायालय ने इस पर निदेश दिया कि प्रतिवादी को परिप्रश्नों का उत्तर किसी निश्चित तारीख तक देने का अवसर दिया जाता है। अभिनिर्धारित कि यह आदेश आदेश 11 नियम 11 के अधीन परिप्रश्नों का उत्तर देने का आदेश है। यदि किसी परिप्रश्न का उत्तर देने से उत्तरदाता को किसी अपराध में फंसने की आशंका हो, तो वह उसका उत्तर देने से मना करने का हकदार है।

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