सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 143: आदेश 22 नियम 5 के प्रावधान

Shadab Salim

29 Feb 2024 8:20 AM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 143: आदेश 22 नियम 5 के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 22 वाद के पक्षकारों की मृत्यु, विवाह और दिवाला है। किसी वाद में पक्षकारों की मृत्यु हो जाने या उनका विवाह हो जाने या फिर उनके दिवाला हों जाने की परिस्थितियों में वाद में क्या परिणाम होगा यह इस आदेश में बताया गया है। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 22 के नियम 5 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

    नियम-5 विधिक प्रतिनिधि के बारे में प्रश्न का अवधारण- जहां इस सम्बन्ध में प्रश्न उद्भूत होता है कि कोई व्यक्ति मृत वादी या मृत प्रतिवादी का विधिक प्रतिनिधि है या नहीं वहां ऐसे प्रश्न का अवधारण न्यायालय द्वारा किया जाएगा : [परन्तु जहां ऐसा प्रश्न अपील न्यायालय के समक्ष उद्भूत होता है वहां वह न्यायालय प्रश्न का अवधारण करने के पूर्व किसी अधीनस्थ न्यायालय को यह निदेश दे सकेगा कि वह उस प्रश्न का विचारण करे और अभिलेखों को, जो ऐसे विचारण के समय अभिलिखित किए गए साक्ष्य के, यदि कोई हो, अपने निष्कर्ष के और उसके कारणों के साथ वापस करे, और अपील न्यायालय उस प्रश्न का अवधारण करने में उन्हें ध्यान में रख सकेगा।

    विधिक प्रतिनिधि के बारे में प्रश्न का निर्धारण करने का तरीका नियम 5 में बताया गया है। इस नियम में 1976 में एक "परन्तुक" जोड़कर अपील न्यायालय को मामला अधीनस्थ न्यायालय को निर्णय के लिए भेजने की शक्ति प्रदान की गई है।

    न्यायालय का कर्त्तव्य-आदेश 22 नियम 5 न्यायालय का कर्त्तव्य बताता है कि-जब कभी यह प्रश्न उठे कि-कोई व्यक्ति मृतक का विधिक प्रतिनिधि है या नहीं? तो वह इस प्रश्न का निर्णय करे। इससे वाद का स्वरूप बदल जाने के आधार पर वह इस प्रश्न का निर्णय करने से मना नहीं कर सकता। विभाजन का वाद अपीलार्थी वसीयत में हितग्राही होने के नाते मृतक के वारिस के रूप में अभिलेख पर आना चाहते थे। प्रत्यर्थी वसीयत को विवादित बता रहे थे। अपीलार्थी का आवेदन पत्र खारिज कर दिया गया। कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा इसे त्रुटिपूर्ण ठहराया गया क्योंकि खारिज करने से पूर्व कोई जाँच नहीं की गई थी।

    आदेश 22 नियम 5 का स्वरूप आज्ञापक - एक वाद में प्रत्यर्थियों की ओर से यह दलील दी गई को सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 22 नियम 5 के उपबंध आज्ञापक स्वरूप के नहीं है तथा यह कि वर्तमान मामले जैसे समुचित मामलों में न्यायालय पक्षकारों को यह निदेश दे सकता है कि वे वास्तविक विधिक प्रतिनिधियों के सम्बन्ध में प्रश्न को पृथक् कार्यवाहियों द्वारा विनिश्चित करवा ले तथा यह कि पूर्ववर्ती आदेश स्वयं हो आदेश 22 नियम 5 के अधीन पारित अन्तिम आदेश है और इसके आधार पर उस आदेश को पुनः वापस नहीं लिया जा सकता या पश्चात्वर्ती आदेश द्वारा उसमें उपान्तरण नहीं किया जा सकता।

    उक्त अपील में विचारण के लिए मुख्य दो प्रश्न हैं-प्रथम क्या न्यायालय अपने पूर्ववर्ती आदेश को पुनः वापस ले सकता है और द्वितीय क्या सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 22 नियम 5 के उपबंधों का स्वरूप आज्ञापक है और क्या न्यायालय आदेश 22 नियम 5 के अधीन मृतक पक्षकार के वास्तविक विधिक प्रतिनिधियों के प्रश्न का विनिश्चय करने के लिए आबद्धकर है, तथा क्या न्यायालय आदेश 22 के अधीन इस प्रश्न का विनिश्चय न करने और पक्षकारों को पृथक् कार्यवाही करने का आदेश देने के लिए स्वतंत्र है।

    अभिनिर्धारित हुआ कि- यदि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 22 नियम 3 और 5 के उपबंध किसी पक्षकार को ऐसे विधिक प्रतिनिधि को अभिलेख पर लाने के लिए अनुज्ञात करते हैं जो न्यायालय के किसी पूर्ववर्ती आदेश द्वारा अभिलेख पर नहीं लाए गए हैं, अथवा पूर्ववर्ती आदेश द्वारा अभिलेख पर लाए गए विधिक प्रतिनिधियों के स्थान पर विधिक प्रतिनिधि के रूप में अभिलेख पर किसी व्यक्ति को लाने के लिए अनुज्ञात कर दे तो अपीलार्थी द्वारा फाइल किए गए दोनों आवेदन विबन्ध के नियम द्वारा वर्जित नहीं होंगे क्योंकि कानून के विरुद्ध कोई विबन्ध नहीं होता।

    यदि इस प्रकार की जांच करने के पश्चात् न्यायालय का यह समाधान हो जाए कि वादी के आवेदन पर पहले ही अभिलेख पर लाए गए व्यक्ति वास्तविक विधिक प्रतिनिधि नहीं थे और वे व्यक्ति जिन्होंने वाद में आवेदन फाइल किया है उसके वास्तविक प्रतिनिधि हैं तो उस दशा में न्यायालय को न केवल यह स्वतन्त्रता होती है अपितु न्यायालय का यह कर्तव्य हो जाता है कि वह अपने पूर्ववर्ती आदेश को वापस ले ले और उन व्यक्तियों के स्थान पर प्रतिस्थापित करे जो मृतक वादी के विधिक प्रतिनिधियों के रूप में पहले हो सम्मिलित किए जा चुके थे।

    मृतक प्रतिवादी के विधिक प्रतिनिधियों को अभिलेख पर लाने के लिए किए गए आवेदनों के मामले में यह स्थिति भिन्न नहीं होगी। न्यायालय का प्रथम आदेश ऐसा आदेश होगा जो नियम 3 के अधीन पारित किया गया है जब कि न्यायालय का द्वितीय आदेश ऐसा आदेश होगा जो नियम 5 के अधीन पारित किया गया है क्योंकि पूर्ववर्ती आदेश पारित करते समय इस बात पर विवाद नहीं था कि क्या कोई व्यक्ति मृतक वादी का विधिक प्रतिनिधि है या नहीं जबकि द्वितीय आदेश करते समय यह विवाद उद्भूत हुआ था जिसे न्यायालय को नियम 5 के उपबंधों के अधीन अवधारित करना था।

    मृतक के विधिक प्रतिनिधि कौन हैं इस प्रश्न को न्यायालय निश्चित रूप से अवधारित कर सकता है और नए सिरे से आदेश पारित कर सकता है, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि पूर्ववर्ती आदेश सही आदेश नहीं था। आदेश 22 नियम 5 की भाषा स्पष्ट रूप से इस बात को दर्शित करती है कि यह उपबंध आज्ञापक स्वरूप का है और जब यह प्रश्न उठाया जाता है कि क्या कोई व्यक्ति किसी मृतक प्रतिवादी या वादी का विधिक प्रतिनिधि है तो न्यायालय इस प्रश्न का अवधारण करने से इन्कार नहीं कर सकता और इस प्रश्न का अवधारण करने के लिए आबद्ध होता है और न्यायालय इस प्रश्न का अवधारण करने के लिए पक्षकारों को पृथक कार्यवाहियां करने का निर्देश नहीं दे सकता। अपील स्वीकार की गई।

    आदेश 22 नियम 5 के प्रावधान आज्ञापक (Mandatory) प्रकृति का है। जब अपील में प्रत्यर्थी की मृत्यु हो जाती है, न्यायालय द्वारा प्रकरण में आगे की कार्यवाही करने से पूर्व प्रत्यर्थी के विधिक प्रतिनिधि को अभिलेख पर प्रतिस्थापित करने होते हैं, जहाँ यह विवाद उत्पन्न होता है। मृत का विधिक प्रतिनिधि कौन है ऐसे विवाद पर न्यायालय को निर्णय करना होगा। इसकी जांच के लिए उच्च न्यायालय अधीनस्थ न्यायालय को निर्देश दे सकेगा। ऐसी जांच का निष्कर्ष प्राप्त होने पर न्यायालय को यह निर्णय करना होगा कि मृत व्यक्ति के कौन प्रतिनिधि है। आदेश 22 नियम 4 एवं 11 स्पष्ट करते है कि विधिक प्रतिनिधियों को अभिलेख पर प्रतिस्थापित हो जाने के बाद ही अपील का निस्तारण किया जायेगा।

    मृत व्यक्ति के प्रतिनिधियों को अभिलेख पर प्रतिस्थापित करने के प्रार्थना पत्र को निस्तारण (Decide) करने से पूर्व न्यायालय अपील का निस्तारण नहीं कर सकता एवं ऐसे प्रार्थना पत्र को मामले के गुणावगुण के साथ निर्णित करने के लिए स्थगित नहीं कर कर सकता। नियम 5 विशिष्ट रूप से यह व्यवस्था नहीं करता है कि अपील की गुणावगुणों पर सुनवाई के पूर्व न्यायालय मृत व्यक्ति के वेधिक प्रतिनिधियों के बारे में प्रश्न का निपटारा करे, परन्तु नियम 4 सपठित नियम 11 यह व्यवस्था करता है कि वेधिक प्रतिनिधि को अभिलेख पर लेने के उपरान्त ही अपील की सुनवाई की जा सकती है।

    आदेश 22 नियम 5 के अधीन जांच का स्वरूप संक्षिप्त-अपील नहीं होगी- जब गवाहों की परीक्षा के बाद आदेश दिया गया, तो भी यह जांच संक्षिप्त प्रकृति की ही है। अत: ऐसा आदेश अपीलनीय नहीं है। क्या किसी व्यक्ति को चालू कार्यवाही को जारी रखने के लिए विधिक प्रतिनिधि के रूप में अभिलेख पर लाने को अनुमति दी जाये या नहीं, यह प्रश्न वाद का आनुषंगिक है।

    अतः इस प्रश्न का निर्णय पूर्व न्याय के रूप में लागू नहीं होता। इस मामले में, आदेश 22 नियम 5 के अधीन जांच में क को विधिक प्रतिनिधि के रूप में प्रतिस्थापित किया गया। क उस आदेश के आधार पर यह दावा नहीं कर सकता कि वह ग के साथ वाद-सम्पत्तियों का सह-स्वामी था, जबकि- (1) ग वाद-सम्पत्ति के कब्जे में केवल अविभाजित आधे भाग के स्वामी के रूप में हो नहीं, वरन् उस सम्पत्ति वाले परिवार के एक सदस्य के रूप में भी था, जब कि क यद्यपि ख से उसकी बहन के पुत्र (बहिन जा) के रूप में संबंधित था, परन्तु वह उस परिवार के लिए पर व्यक्ति था।

    अतः क यह दावा नहीं कर सकता कि- वह सह-स्वामी है, जब तक कि वह स्वतंत्र रूप से कानून के अधीन उन सम्प्तियों पर अपने अधिकार स्थाप्ति नहीं कर दें। अतः ग स्थायी व्यादेश पाने का हकदार होगा कि क को उसके कब्जे के आधे भाग में हस्तक्षेप करने से रोका जाय, परन्तु यह क द्वारा अपने अधिकार (यदि कोई हो) स्थाप्ति करने के अध्यधीन होगा। जहां विधिक प्रतिनिधि होने का दावा एक वसीयतदार के रूप में या एक रजिस्टर्ड गोदनामा (दत्तक पुत्र) पर आधारित हो, तो इच्छापत्र (विल) या दत्तक की वैधता के बारे में विस्तार से विचार करना आवश्यक नहीं है।

    पूर्व-न्याय लागू (निर्णय) किसी मामले में उन्हीं पक्षकारों या उनके हित-उत्तराधिकारियों या उनके संबंधियों के बीच अगली किसी कार्यवाही में पूर्व न्याय के रूप में लागू नहीं होगा, चाहे उक्त पक्षकारों को प्रश्न का विवाद करने व उसमें साक्ष्य देने का अवसर क्यों न दे दिया गया हो। संहिता की धारा 11 में जोड़े गये नये स्पष्टीकरण 7 और 8 का इस प्रश्न पर कोई प्रभाव नहीं है।

    इच्छापत्र द्वारा वारिस - एक वाद में स्थायी व्यादेश मांगा गया था, उसमें एक वादी की मृत्यु हो गई। इच्छापत्र के आधार पर प्रार्थी ने मृतक के विधिक प्रतिनिधि के रूप में पक्षकार बनाने के लिए आवेदन किया। न्यायालय ने इस आधार पर कि उक्त इच्छापत्र (विल) को साबित नहीं किया गया है, आवेदन को खारिज कर दिया। अभिनिर्धारित कि- वाद के लम्बित रहते प्रार्थी के पक्ष में हित का कोई समनुदेशन, सृजन या न्यागमन नहीं होता है। यहां प्रार्थी केवल विधिक प्रतिनिधि बनना चाहता है। अतः यह मामला आदेश 22, नियम 3 से आवृत होता है और इसलिए आदेश 22, नियम 5 आकर्षित होगा, परिणाम स्वरूप आवेदन की खरिजी के आदेश के विरुद्ध अपील नहीं होगी, क्योंकि आदेश 22, नियम 5 अपील योग्य नहीं है।

    दत्तक पुत्र का प्रतिस्थापन-अपील- एक मामले में वादी की मृत्यु पर उसके दत्तक पुत्र ने प्रतिस्थापित करने का आवेदन किया, तो प्रतिवादी ने अतिरिक्त लिखित कथन फाइल कर दत्तक की वैधता को चुनौती दी। उस पर विवाद्यक नहीं बनाया गया और दत्तक को वैध मानकर उसे प्रतिस्थापित कर दिया गया। अपील में दत्तक की वैधता को चुनौती दी गई। अभिनिर्धारित किया कि अपील- न्यायालय को दत्तक की वैधता के प्रश्न का निर्णय करने की अधिकारिता है।

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