सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 131: आदेश 21 नियम 89 के प्रावधान

Shadab Salim

20 Feb 2024 5:05 AM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 131: आदेश 21 नियम 89 के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 21 का नाम डिक्रियों और आदेशों का निष्पादन है। इस आलेख के अंतर्गत नियम 89 पर प्रकाश डाला जा रहा है।

    नियम-89 निक्षेप करने पर विक्रय को अपास्त कराने के लिए आवेदन (1) जहां स्थावर सम्पत्ति का किसी डिक्री के निष्पादन में विक्रय किया गया है।

    [ वहां डिक्रीत सम्पत्ति में विक्रत्र्य के समय या आवेदन करने के समय किसी हित का दावा करने वाला अथवा ऐसे व्यक्ति के लिए या उसके हित में कार्य करने वाला कोई व्यक्ति ]-

    (क) क्रयधन के पांच प्रतिशत के बराबर रकम क्रेता को संदत्त किए जाने के लिए, तथा था,

    (ख) विक्रय की उ‌द्घोषणा में ऐसी रकम के रूप में जिसकी वसूली के लिए विक्रय का आदेश दिया गया विनिर्दिष्ट रकम उसमें से वह रकम घटाकर जो विक्रय की उ‌द्घोषणा की तारीख से लेकर तब तक डिक्रीदार को प्राप्त हो चुकी है, डिक्रीदार को संदत्त किए जाने के लिए, न्यायालय में निक्षिप्त करने पर विक्रय को अपास्त कराने के लिए आवेदन कर सकेगा।

    (2) जहां कोई व्यक्ति अपनी स्थावर सम्पत्ति के विक्रय को अपास्त कराने के लिए आवेदन नियम 90 के अधीन करता है वहां, जब तक कि वह अपना आवेदन लौटा न ले, वह इस नियम के अधीन आवेदन देने का या उसको आगे चलाने का हकदार नहीं होगा।

    (3) इस नियम की कोई भी बात निर्णीतऋणी को ऐसे किसी दायित्व से अवमुक्त नहीं करेगी जिसके अधीन वह उन खर्चों और ब्याज के सम्बन्ध में हो जो विक्रय की उद्घोषणा के अन्तर्गत नहीं आते।

    आदेश 21 का नियम 89 महत्वपूर्ण है, जिसमें रकम का निक्षेप करने पर नीलामी विक्रय को अपास्त कराने के लिए व्यवस्था की गई

    उपनियम (1) में बताया गया है कि हितबद्ध व्यक्ति खण्ड (क) और (ख) में बताई गई राशि न्यायालय में जमा करवाकर उस नीलामी को रद्द करवाने का आवेदन कर सकता है। उसे यह राशि विक्रय के दिनांक से तीस दिन के भीतर जमा करानी होगी।

    ऐसा आवेदन नियम 45 तथा नियम 10 दोनों के अधीन नहीं किया जा सकता। नियम 45 में कार्यवाही करने पर नियम का आवेदन वापस लेना होगा।

    निर्णीत-ऋणी को विक्रय की उ‌द्घोषणा में नहीं आने वाले अन्य खचों से यह नियम मुक्त नहीं करता है। वे खर्चे उसे देने होंगे।

    नियम का उद्देश्य और लागू होना यह नियम केवल साधन प्रदान करता है, जिससे निर्णीत-ऋणी सम्यक् (सही) रूप से किये गये विक्रय (नीलामी) से अपना पिण्ड छुड़ा सकता है। उस समय डिक्री का समायोजन नहीं किया जा सकता जब किसी पर व्यक्ति अर्थात् क्रेता का हित बीच में आ पंसता है। यह नियम उस मामले में लागू नहीं होता है, जहां विक्रय के दिनांक के बाद परन्तु उसकी पुष्टि के पहले, निर्णीत ऋणी एक कृषि-जन जाति का सदस्य हो जाता है, जिसकी भूमि को बेचा नहीं जा सकता।

    ऋणविधि का प्रभाव -अपने राज्य की ऋणविधि का यही ध्यान रखना होगा, जिसमे कृषक (Agriculturist) अनुसूचित जनजाति या अनुसूचित जाति के कृषक की भूमि को बेचा नहीं जा सकता है और डिक्रीत-ऋण को वापस खोला जा सकता है और उसके चुकाने की योजना बनाकर किश्ते तय की जाती है।

    स्थावर (अचल) सम्पत्ति होना आवश्यक यह नियम केवल स्थावर सम्पत्ति के विक्रयों को लागू होता है। साधारण बन्धक-पत्र एक जंगम (चल) सम्पत्ति मानी जाती है, न कि स्थावर सम्पति। अतः एक डिक्री के निष्पादन में ऐसे बन्धक-पत्र के विक्रय को यह नियम लागू नहीं होता। भोग-बन्धक में बन्धकी का हित इस नियम के अर्थ में एक स्थावर सम्पत्ति है अतः ऐसे मामले में, यह नियम लागू होगा।

    बंधक डिक्रियों को यह नियम लागू एक बंधकदार जिसकी सम्पति बंधक डिक्री के निष्पादन में आदेश अ नियम 5 के अधीन बेच दी गई, इस नियम के अधीन उसे अपास्त कराने के लिए आवेदन कर सकता है। इस नियम में नियत अवधि समाप्त हो जाने पर भी, आदेश 34 नियम 5 के अनुसार विक्रय की पुष्टि हो जाने से पहले उस बंधककर्ता को राशि निविदत (टेण्डर) करने का भी अधिकार है।

    प्रापक (रिसीवर) द्वारा विक्रय को यह नियम लागू नहीं ऐसे विक्रय में आदेश 21, नियम के अधीन विक्रय की उद्‌घोषणा का प्रश्न नहीं उठता, न विक्रीदार द्वारा उसमें बताई गई धनराशि जमा कराने का। अतः प्रापक द्वारा किए गए विक्रय को यह नियम लागू नहीं होता यदि वह सम्पत्ति भागीदारी की हो, तो भी प्रापक द्वारा उसके विक्रय को यह नियम लागू नहीं होगा।

    आवेदन कोन कर सकेगा। (उपनियम -1) किसी हित का दावा करने वाला अथवा ऐसे व्यक्ति के लिए या उसके हित में कार्य करने वाला कोई व्यक्ति का अर्थ इस नियम के अधीन आवेदन करने के लिए विक्रय की जाने वाली सम्पत्ति में अपना हित दर्शित करना होगा-जैसे एक निर्णीत ऋणी की सम्पति का अन् प्रापक, उसका पट्टेदार, कुर्की के बाद का क्रेता (खरीददर) यहाँ तक कि कुर्की की कार्यवाही लम्बित रहे पर विक्रय की संविदा करने वाला व्यक्ति एक संयुक्त हिन्दू के एक सदस्य का अंश (हिस्सा) बिक जाने पर अन्य सदस्य ऐसा आवेदन कर सकता है, परन्तु नीलामी में बिक्री होने के बाद का खरीददार ऐसा आवेदन नहीं कर सकता है।

    इलाहाबाद और कलकत्ता उच्च न्यायालयों के मतानुसार इस नियम के अधीन औपचारिक आवेदन पत्र देना आवश्यक नहीं है और उस राशि को प्रस्तुत (टेडा) करना या चालान पेश करना पर्यात्र मान लिया गया, परन्तु पटना उच्च न्यायालय अलग से आवेदन करना आवश्यक मानता है। इस कार्यवाही में नीलामी के क्रेता को नोटिस देना पर्याप्त है, उसे पक्षकार बनाना आवश्यक नहीं है।

    हितबद्ध कोई भी व्यक्ति शब्दों का विस्तार किसी वाद में निर्णय के पहले कुर्की कराने वाला वादी ऐसा हितबद्ध व्यक्ति है जो अन्य डिक्री के निष्पादन में हुए उस सम्पत्ति के नीलाम-विक्रय को अपास्त कराने के लिए आवेदन करने और रकम जमा कराने का हकदार है।

    निक्षेप करने पर निक्षेप की राशि इस नियम के अधीन विक्रय को अपास्त कराने के लिए आवेदन करने वाले व्यक्ति को उपनियम (1) के खण्ड (क) तथा (ख) में बताई गई राशि निक्षित (जमा) करानी होगी, जो इस प्रकार है:

    (क) क्रयधन (नीलामी मूल्य) की पांच प्रतिशत राशि क्रेता को देने के लिए, और

    (ख) डिक्रीदार को पहले दी जा चुकी रकम को काट कर (कम करके), विक्रय की उद्‌घोषणा में वसूली-योग्य बताई गई रकम डिक्रीदार को देने के लिए न्यायालय में जमा कराई जावेगी)

    कम राशि जमा करवाने का प्रभाव-यदि रकम की गढ़ना में कार्यालय की गलती से कम राशि जमा कराई गई, तो प्रार्थी को उसे पूरा करने का अवसर दिया जाना चाहिये, परन्तु प्रार्थी की स्वयं की गणना सम्बन्धी भूल को क्षमा नहीं किया जा सकता। केवल कुछ रुपयों की गलत गणना के लिये बम्बई उच्च न्यायालय ने आवेदन पत्र खारिज कर दिया।

    न्यायालय में नियत समय के भीतर खर्च सहित क्रय की रकम जमा करा दी गई और मात्र 25 पैसे की नगण्य रकम समय बीत जाने पर जमा कराई गई। निष्पादन न्यायालय वैवेकिक अधिकार का प्रयोग करके ऐसे विलम्ब को माफ कर सकता है या परिसीमा अधिनियम 1963 की धारा 5 के अधीन भी ऐसे विलम्ब को माफ किया जा सकता है। यह उच्चतम न्यायालय का अभिमत है।

    प्रार्थना-ऐसे आवेदन में विक्रय को अपास्त कराने की प्रार्थना होनी चाहिये, यद्यपि ऐसी प्रार्थना का उल्लेख नहीं करने से आवेदन पत्र अवैध नहीं होगा।

    प्राप्त हुए का अर्थ-इस शब्दावली का अर्थ डिक्रीदार इस धनराशि को वास्तव में प्राप्त करने से हैं, परंतु यह अभिनिर्धारित किया गया है कि इस नियम की अपेक्षायें पूरी हो जाती हैं, यदि धन राशि न्यायालय में जमा करा दी जाती है और उसे डिक्रीदार द्वारा प्राप्त करने में कोई बाधा नहीं है। इसी प्रकार ऐसी राशि के पक्षकारों के बीच समायोजन द्वारा भी भुगतान किया जा सकता है, जैसे निर्णीत ऋणी उस राशि के लिए एक बंधक निष्पादित कर दे।

    जब तक विक्रय की दिनांक से तीस दिन के भीतर उपनियम (1) में वर्णित पूरी धनराशि जमा नहीं हो जाती है, तब तक इस नियम के अधीन विक्रय अपास्त नहीं किया सकता, चाहे सही राशि गणना करने वाले पक्षकत्र की गलती से और यहां तक कि न्यायालय के किसी अधिकारी की गलती से राशि जमा कराने में असफल रहे हो या जब तक उस अधिकारी को (गलत) सूचना देने के लिए आरोपित नहीं किया गया हो।

    अनेक निर्णीत-ऋणियों में से किसी एक द्वारा निक्षेप (जमा) कराना विधिमान्य अन्य निर्णीत-ऋणियों को भी इसका लाभ मिलेगा। नियम 90 के अधीन निर्णीत-ऋणी या अन्य निर्णीत-ऋणी नियम 89 के अधीन आवेदन करने में वर्जित नहीं है।

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