राज्य सरकार द्वारा अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष का नियत कार्यकाल पूरा होने से पहले नामांकन रद्द करना मनमाना नहीं: कर्नाटक हाइकोर्ट

Amir Ahmad

29 May 2024 9:40 AM GMT

  • राज्य सरकार द्वारा अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष का नियत कार्यकाल पूरा होने से पहले नामांकन रद्द करना मनमाना नहीं: कर्नाटक हाइकोर्ट

    कर्नाटक हाइकोर्ट ने कर्नाटक राज्य अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष अब्दुल अज़ीम द्वारा दायर याचिका खारिज की। उक्त याचिका में आयोग के अध्यक्ष के रूप में याचिकाकर्ता के नामांकन रद्द करने के सरकार के फैसले पर सवाल उठाया गया था।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने कहा,

    "याचिकाकर्ता नामित व्यक्ति है, जिसे अधिनियम की धारा 4 के तहत नामित किया गया। धारा 4 में ही संकेत मिलता है कि यह राज्य की इच्छा पर निर्भर है। इसका प्रयोग किया जाता है और उसे नामित किया जाता है। नामित व्यक्ति के इस तरह के नामांकन पर इस आधार पर सवाल नहीं उठाया जा सकता कि यह मनमाना है।"

    वर्ष 2019 में याचिकाकर्ता को कर्नाटक राज्य अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1994 की धारा 3 और 4 के अनुसार तीन वर्ष की अवधि के लिए आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था। पहला कार्यकाल पूरा होने पर याचिकाकर्ता को आयोग के अध्यक्ष के रूप में तीन साल की एक और अवधि के लिए जारी रखने का आदेश पारित किया जाता है जो 15-10-2025 को समाप्त हो जाएगा।

    2023 में राज्य सरकार के बदलने के बाद 22-05-2023 को मुख्यमंत्री के कार्यालय से टिप्पणी निकलती है, जिसे मुख्य सचिव द्वारा सभी विभागों को सूचित किया जाता है। सन्देश यह था कि पिछली सरकार द्वारा किए गए नामांकन रद्द करना होगा। उपरोक्त संचार/टिप्पणी के आगे 22-05-2023 को अधिसूचना जारी की जाती है, जिसके द्वारा याचिकाकर्ता/द्वितीय कार्यकाल का निरंतर नामांकन रद्द कर दिया जाता है।

    याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी/राज्य के समक्ष 24-05-2023 को उक्त अधिसूचना को वापस लेने की मांग की। अभ्यावेदन के कारण 24-05-2023 को एक अधिसूचना जारी की जाती है, जिसमें 22-05-2023 की अधिसूचना को वापस लिया जाता है, जिसके द्वारा याचिकाकर्ता के दूसरे कार्यकाल के लिए नामांकन को रद्द करने वाली अधिसूचना वापस ले ली जाती है।

    याचिकाकर्ता ने दिनांक 22-05-2023 और 24-05-2023 के बीच 23-05-2023 को अभ्यावेदन प्रस्तुत किया था, जिसमें अध्यक्ष के रूप में कार्यकाल को अगले 2 वर्ष और 5 महीने तक पूरा करने के लिए उक्त अभ्यावेदन पर विचार करने की मांग की गई। जब उक्त अभ्यावेदन पर विचार करने में देरी हुई तो उन्होंने 05-08-2023 को इसे दायर करके विषय याचिका में इस न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। इस न्यायालय ने शुरू में प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया। याचिका के लंबित रहने के दौरान सरकार ने 15-12-2023 को एक अधिसूचना जारी कर याचिकाकर्ता का आयोग के अध्यक्ष के रूप में नामांकन रद्द कर दिया।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता की नियुक्ति कुछ शर्तों पर तीन साल के निश्चित कार्यकाल के लिए थी। इसे उन्हीं शर्तों पर तीन साल की अवधि के लिए जारी रखा गया। इसलिए यह निश्चित कार्यकाल वाली नियुक्ति बन जाती है और नामांकन या नियुक्ति को वापस लेने या रद्द करने वाला आदेश मनमाना है। राज्य को किसी भी नामित व्यक्ति को हटाने के लिए उपलब्ध शक्ति का दुरुपयोग है।

    सरकार ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता का नामांकन भले ही कार्यकाल के लिए हो लेकिन नामांकन अधिनियम की धारा 4 के अनुसार है। अधिनियम की धारा 4 में ही संकेत दिया गया कि आयोग का अध्यक्ष सरकार की इच्छा के अधीन कार्य करेगा।

    यह कहा गया कि सरकार की इच्छा होगी कि यह अगले आदेश तक ही रहेगा। अब उन्हें मनोनीत और पदच्युत कर दिया गया तथा याचिकाकर्ता के दूसरे कार्यकाल रद्द करने के आदेश में कोई दोष नहीं पाया जा सकता।

    पीठ ने अधिनियम की धारा 4 (1) का हवाला दिया, जो इस प्रकार है: अध्यक्ष और सदस्यों की पदावधि तथा सेवा की शर्तें सरकार की इच्छा के अधीन हैं। आयोग के अध्यक्ष और सदस्य अपने पदभार ग्रहण करने की तिथि से तीन वर्ष की अवधि तक पद पर बने रहेंगे।

    इसके बाद उसने कहा,

    “धारा 4 की उपधारा (1) स्पष्ट रूप से इंगित करती है कि अध्यक्ष या अन्य सदस्य सरकार की इच्छा के अधीन तीन वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करेंगे। इसलिए क़ानून स्वयं सरकार के अधिकार को मान्यता देता है कि वह नामांकन की समाप्ति से पहले उसमें फेरबदल कर सकता है, क्योंकि यह सरकार की इच्छा के अधीन है। इस बात का कोई अनुमान लगाने की आवश्यकता नहीं है कि यह सरकार की इच्छा पर निर्भर है या नहीं क्योंकि क़ानून स्वयं संकेत देता है कि यह सरकार की इच्छा पर निर्भर है।”

    इसके अलावा कहा गया,

    “धारा 5 सदस्यता के पद के लिए अयोग्यता से संबंधित है। ऐसी अयोग्यता का कारण धारा 5 की उपधारा (1) के खंड 63 (ए) से (जी) में पाया जाता है और यदि उन खंडों को लागू किया जाना है और पदधारी को हटाया जाना है, तो उसे सुनवाई का उचित अवसर दिया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता किसी भी आधार पर अयोग्य नहीं है। उन्हें नामांकित किया गया है और यह अधिनियम की धारा 4 के तहत राज्य के अधिकार का प्रयोग करते हुए नामांकन को सरलता से निरस्त करना है। याचिकाकर्ता के सीनियर वकील का यह तर्क, इस आधार पर भी स्वीकार करने योग्य नहीं है।”

    उसके बाद इसने याचिका को खारिज कर दिया।

    केस टाइटल- अब्दुल अजीम और कर्नाटक राज्य

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