संवैधानिक न्यायालय स्पीकर पर विधायकों के इस्तीफों को स्वीकार या अस्वीकार करने के लिए समयसीमा नहीं थोप सकते: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
Amir Ahmad
18 Jun 2024 6:33 PM IST
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि न्यायालय विधानसभा के सदस्यों (विधायकों) द्वारा दिए गए इस्तीफों पर निर्णय लेने के लिए विधानसभा स्पीकर पर कोई विशिष्ट समयसीमा नहीं थोप सकते।
अदालत ने कहा,
“संवैधानिक न्यायालय द्वारा विधानसभा के सदस्यों द्वारा दिए गए इस्तीफों के मुद्दे पर निर्णय लेने के लिए स्पीकर के लिए कोई समयसीमा तय नहीं की जा सकती है यदि कोई हो।"
जस्टिस संदीप शर्मा ने इस बात पर जोर दिया कि संवैधानिक पदाधिकारी के रूप में स्पीकर संवैधानिक न्यायालयों के बराबर का दर्जा रखते हैं। एक बार जब खंडपीठ ने यह स्थापित कर दिया कि मामला स्पीकर के अधिकार क्षेत्र में आता है तो न्यायिक रूप से समयसीमा तय करने का कोई आधार नहीं है।
न्यायालय ने कहा,
“विधानसभा सदस्य द्वारा त्यागपत्र स्वीकार करने के लिए की गई प्रार्थना यदि कोई हो तो उसको स्वीकार करते समय स्पीकर राज्य विधानमंडल के एक अधिकारी के रूप में कार्य करता है। इस क्षमता में स्पीकर संवैधानिक प्राधिकरण के रूप में संवैधानिक न्यायालय के समतुल्य है। ऐसी स्थितियों में संवैधानिक न्यायालय संविधान के तहत उन्हें विशेष रूप से सौंपी गई भूमिकाओं के संबंध में अन्य संवैधानिक अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र का सम्मान करते है। एक बार जब माननीय जस्टिस दुआ, माननीय चीफ जस्टिस द्वारा दिए गए निष्कर्ष से सहमत हो गईं कि स्वैच्छिकता या वास्तविकता के संबंध में निर्णय यदि कोई हो, स्पीकर द्वारा अपने कर्तव्य के निर्वहन में लिया जाना है, जहां कोई समय सीमा तय नहीं की गई है तो उन्हें स्पीकर द्वारा इस मुद्दे पर निर्णय लेने के लिए समय सीमा तय नहीं करनी चाहिए।”
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत स्पीकर की भूमिका जो विधायकों की अयोग्यता से संबंधित है। त्यागपत्र स्वीकार करने या अस्वीकार करने की उनकी भूमिका से काफी भिन्न है। दसवीं अनुसूची के तहत कार्य करते समय स्पीकर न्यायाधिकरण के रूप में कार्य करता है, जो त्यागपत्र पर निर्णय लेते समय राज्य विधानमंडल के भीतर उसकी प्रशासनिक भूमिका से अलग है। इसलिए दसवीं अनुसूची के मामलों में समय-सीमा के बारे में स्पीकर को दिए गए सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को इस्तीफे के मामलों पर लागू नहीं किया जा सकता, जहां स्पीकर राज्य विधानमंडल के एक अधिकारी के रूप में कार्य करता है।
न्यायालय तीन निर्दलीय विधायकों- होशियार सिंह, आशीष शर्मा और केएल ठाकुर द्वारा दायर रिट याचिका पर विचार कर रहा था, जिन्होंने अपने इस्तीफे दिए और न्यायालय से स्पीकर को उन्हें तुरंत स्वीकार करने के निर्देश मांगे, क्योंकि वे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए।
मामले की पृष्ठभूमि
दिसंबर 2022 में निर्वाचित याचिकाकर्ताओं ने 22 मार्च, 2024 को हिमाचल प्रदेश विधानसभा के स्पीकर को अपना इस्तीफा सौंप दिया और 23 मार्च, 2024 को भाजपा में शामिल हो गए। स्पीकर ने तुरंत उनके इस्तीफे स्वीकार नहीं किए, जिसके कारण उन्हें राज्यपाल से संपर्क करना पड़ा और बाद में हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर करनी पड़ी, जिसमें तर्क दिया गया कि उनके इस्तीफे स्वैच्छिक और वास्तविक थे। इस प्रकार स्पीकर को उन्हें तुरंत स्वीकार करना चाहिए।
खंडपीठ की राय में अंतर
इस मामले की सुनवाई शुरू में चीफ जस्टिस एम.एस. रामचंद्र राव और जस्टिस ज्योत्सना रेवल दुआ की खंडपीठ ने की थी। दोनों न्यायाधीश इस बात पर सहमत थे कि न्यायालय स्पीकर को तत्काल इस्तीफा स्वीकार करने का निर्देश नहीं दे सकता। हालांकि खंडपीठ ने राय में अंतर व्यक्त किया, जिसमें जस्टिस दुआ ने स्पीकर को दो सप्ताह के भीतर इस्तीफे पर निर्णय लेने का निर्देश देने की मांग की, जबकि चीफ जस्टिस राव ने समयसीमा निर्धारित करने संबंधी निर्देश देने से इनकार किया।
एकल जज का फैसला
इसके बाद मामले को मतभेद को सुलझाने के लिए तीसरे जज जस्टिस संदीप शर्मा के पास भेज दिया गया। मुख्य मुद्दा यह था कि क्या हाईकोर्ट स्पीकर को समयबद्ध तरीके से इस्तीफे की स्वैच्छिकता और वास्तविकता पर निर्णय लेने का निर्देश दे सकता है।
अपने निर्णय में जस्टिस शर्मा ने चीफ जस्टिस राव के दृष्टिकोण से सहमति जताते हुए संवैधानिक शक्तियों के पृथक्करण तथा त्यागपत्रों की स्वैच्छिकता और प्रामाणिकता के मूल्यांकन में स्पीकर की स्वायत्त भूमिका पर जोर दिया।
उन्होंने कहा,
“त्यागपत्र की स्वैच्छिकता या वास्तविकता के संबंध में प्रश्न, कानून के उपर्युक्त प्रावधान के अनुसार, केवल स्पीकर द्वारा ही विचार किया जा सकता है। इसलिए रिट न्यायालय को इस पहलू पर विचार करने से रोक दिया गया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा दिया गया त्यागपत्र वास्तविक है या स्वैच्छिक। कहने की आवश्यकता नहीं है कि रिट न्यायालय याचिकाकर्ताओं के त्यागपत्रों की वैधता पर स्पीकर के कार्यों का अतिक्रमण नहीं कर सकता।”
न्यायालय ने कहा कि संविधान के प्रक्रियात्मक नियम कुछ शर्तों के तहत त्यागपत्रों को तत्काल स्वीकार करने की अनुमति देते हैं, लेकिन यदि साक्ष्य अनैच्छिक त्यागपत्र का संकेत देते हैं तो स्पीकर के पास विवेकाधीन शक्तियां बनी रहती हैं।
न्यायालय ने कहा,
"उक्त प्रावधान (संविधान के अनुच्छेद 190(3)(बी)) के अनुसार, राज्य विधानमंडल के किसी सदन के सदस्य द्वारा प्रस्तुत त्यागपत्र यदि कोई हो, उसको स्पीकर द्वारा तत्काल स्वीकार नहीं किया जा सकता, बल्कि त्यागपत्र के स्वैच्छिक या वास्तविक न होने के संबंध में उन्हें सूचना मिलने के कारण यदि कोई हो तो वे जांच कर सकते हैं। ऐसे त्यागपत्र को स्वीकार नहीं कर सकते।"
न्यायालय ने कहा कि जब याचिकाकर्ता जो कि निर्दलीय विधायक थे, उन्होंने स्पीकर को अपना त्यागपत्र सौंपा उस समय भाजपा विधायकों की उपस्थिति ने स्पीकर के मन में संदेह पैदा किया।
"यदि 22.3.2024 को याचिकाकर्ता भाजपा विधायकों के साथ स्पीकर के कार्यालय नहीं गए होते तो याचिकाकर्ताओं का यह कहना सही होता कि स्पीकर को उनके त्यागपत्रों को तत्काल स्वीकार कर लेना चाहिए था, लेकिन क्योंकि भाजपा विधायकों की उपस्थिति ने ही स्पीकर के मन में त्यागपत्रों की स्वैच्छिकता और वास्तविकता के संबंध में संदेह पैदा कर दिया। इसलिए स्पीकर द्वारा त्यागपत्रों को तत्काल स्वीकार करने की कोई आवश्यकता नहीं थी।"
न्यायालय ने कहा कि हिमाचल प्रदेश विधानसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियमों के नियम 287(2) में "हो सकता है" शब्द का प्रयोग किया गया है, जो दर्शाता है कि स्पीकर के पास विधायक के त्यागपत्र को प्राप्त होने पर तुरंत स्वीकार या अस्वीकार करने का निर्णय लेने का विवेकाधिकार है। यह विवेकाधिकार त्यागपत्र की स्वैच्छिक और वास्तविक प्रकृति के बारे में स्पीकर की संतुष्टि पर निर्भर करता है, जिसमें कोई दबाव या दबाव न हो।
नियम में कहा गया कि यदि कोई विधायक व्यक्तिगत रूप से स्पीकर को त्यागपत्र सौंपता है, जिसमें बिना किसी दबाव के इसकी स्वैच्छिक प्रकृति का दावा किया गया हो, और यदि स्पीकर के पास कोई विरोधाभासी जानकारी न हो, तो वह तुरंत त्यागपत्र स्वीकार कर सकता है। न्यायालय ने कहा कि हो सकता है का प्रयोग ऐसे मामलों में स्पीकर को विवेकाधिकार प्रदान करने के विधायी इरादे को रेखांकित करता है, जो उस परिदृश्य के विपरीत है, जहां होगा निर्दिष्ट शर्तों के तहत तत्काल स्वीकृति को अनिवार्य करता है।
जस्टिस शर्मा ने निष्कर्ष निकाला कि स्पीकर के पास त्यागपत्र की स्वैच्छिकता और वास्तविकता की जांच करने का विवेकाधिकार है। न्यायालय ने माना कि हाईकोर्ट के लिए स्पीकर को विशिष्ट समय सीमा के भीतर त्यागपत्र पर निर्णय लेने का निर्देश जारी करना स्वीकार्य नहीं है।
अंततः कानूनी विचार-विमर्श के बावजूद, तीनों विधायकों के इस्तीफे को 3 जून, 2024 को स्पीकर द्वारा स्वीकार कर लिया गया, जिससे याचिकाकर्ताओं द्वारा मांगी गई तत्काल राहत निरर्थक हो गई।
केस टाइटल - होशियार सिंह चंब्याल एवं अन्य बनाम माननीय अध्यक्ष एवं अन्य।