मध्य प्रदेश हाइकोर्ट ने 'झूठी डोमिसाइल' शिकायत के साथ सीनियर सिटीजन को परेशान करने के लिए राजस्व अधिकारी और RTI एक्टिविस्ट पर 2 लाख रुपये का जुर्माना लगाया

Amir Ahmad

8 March 2024 10:23 AM GMT

  • मध्य प्रदेश हाइकोर्ट ने झूठी डोमिसाइल शिकायत के साथ सीनियर सिटीजन को परेशान करने के लिए राजस्व अधिकारी और RTI एक्टिविस्ट पर 2 लाख रुपये का जुर्माना लगाया

    मध्य प्रदेश हाइकोर्ट ने कानून के दायरे से परे कार्यवाही के माध्यम से बुजुर्ग दंपति को परेशान करने के लिए SDO (राजस्व), सेंधवा और RTI एक्टिविस्ट (शिकायतकर्ता) पर संयुक्त रूप से 2 लाख रुपये का जुर्माना लगाया।

    अदालत के अनुसार इस तरह का उत्पीड़न इस बहाने से किया गया कि याचिकाकर्ता, सेवानिवृत्त कॉलेज प्रिंसिपल ने 2013 में बीएड के लिए अपनी पत्नी के पक्ष में गलत डोमिसाइल सर्टिफिकेट जारी किया था।

    इंदौर में बैठी पीठ ने कहा,

    “इस याचिका को याचिकाकर्ता को प्रतिवादी नंबर 3 (व्यक्तिगत रूप से, प्रासंगिक समय पर पोस्ट किया गया) और प्रतिवादी नंबर 5 संयुक्त रूप से और अलग-अलग द्वारा किए गए उत्पीड़न के लिए देय 2,00,000/- रुपये की लागत के साथ स्वीकार किया जाता है। प्रतिवादी नंबर 3 और 5 से लागत राशि वसूल की जाए और याचिकाकर्ता को भुगतान किया जाए। तदनुसार सरकार के वर्तमान प्रिंसिपल को निर्देशित करते हुए एसडीओ द्वारा पारित 2023 के आदेश को रद्द कर दिया। कॉलेज याचिकाकर्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराएगा।”

    जस्टिस विवेक रूसिया की एकल पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता सेंधवा सरकार के प्रभारी प्राचार्य उस समय पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज ने केवल यह प्रमाणित किया कि बीएड अभ्यर्थी उसकी पत्नी थी और वह उसके साथ रह रही थी। केवल यह कहना कि उम्मीदवार-पत्नी 1980 से मध्य प्रदेश राज्य की अधिवासी है, उसको अधिवास प्रमाण पत्र जारी करने के बराबर नहीं किया जा सकता। इसलिए अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा एसडीओ के अधिकार को हड़पने का कोई प्रयास नहीं किया गया।

    अदालत ने RTI एक्टिविस्ट के कृत्यों पर भी दया नहीं की, जिन्होंने SDO (राजस्व) की सहायता से जानबूझकर सेवानिवृत्त प्रोफेसर को परेशान किया।

    अदालत ने आदेश में बताया,

    “यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी नंबर 5 को याचिकाकर्ता के प्रति कुछ व्यक्तिगत शिकायत है। कोई भी RTI एक्टिविस्ट किसी भी उम्मीदवार का प्रवेश बीएड के दस्तावेज प्राप्त करने के लिए इस हद तक नहीं जा सकता।”

    अदालत ने इस बात पर भी अविश्वास व्यक्त किया कि SDO (राजस्व) को कैसे लगा कि कानून के तहत उन्हें बीएड में प्रवेश से संबंधित मामले की जांच करने का अधिकार है। अधिकारी को इस तरह की तुच्छ शिकायत पर विचार नहीं करना चाहिए। खासकर इसलिए, क्योंकि याचिकाकर्ता कभी भी उनका कर्मचारी/अधीनस्थ नहीं था, अदालत ने स्पष्ट किया कि यह मामला राजस्व अधिकारी की शक्ति और अधिकार का सरासर दुरुपयोग है।

    अदालत ने कहा कि प्रवेश के लिए इस बात की कोई आवश्यकता नहीं है कि उम्मीदवार मध्य प्रदेश का मूल निवासी हो। इसलिए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि याचिकाकर्ता ने कभी भी सर्टिफिकेट को डोमिसाइल सर्टिफिकेट के रूप में प्रस्तुत करके उसका अनुचित लाभ उठाने का इरादा नहीं किया। यदि जारी किए गए उक्त सर्टिफिकेट को डोमिसाइल सर्टिफिकेट के रूप में लिया जाता है तो भी इसे बी.एड. की काउंसलिंग के समय सक्षम प्राधिकारी द्वारा अस्वीकार किया जा सकता है। वैसे भी निवास सहित विवरण सटीक होने के कारण जारी दस्तावेज में सेवानिवृत्त प्रोफेसर द्वारा कोई गलत घोषणा नहीं की गई।

    “अब, सात साल बाद RTI एक्टिविस्ट यानी प्रतिवादी नंबर 5 की शिकायत के आधार पर इस सीनियर सिटीजन याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी दोनों को प्रतिवादी नंबर 3 द्वारा अनावश्यक रूप से परेशान किया गया। ऐसा प्रतीत होता है कि उत्तरदाताओं नंबर 3 और 5 के कहने पर अब स्वामी विविकांत शिक्षा महाविद्यालय निर्मला वर्मा बी.एड. पाठ्यक्रम में सेंधवा का प्रवेश रद्द करने जा रहा है, जो वर्ष 2012-13 में हुआ था।

    अदालत ने इसे SDO (राजस्व) द्वारा शक्तियों और अधिकार के दुरुपयोग की पराकाष्ठा करार दिया।

    उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए अदालत ने राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव को SDO (राजस्व) के आचरण की जांच करने और यदि आवश्यक हो तो उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने के लिए भी कहा। अदालत ने बताया कि यहां तक ​​कि 2020 में शिकायतकर्ता के अनुरोध पर SDO (पुलिस) द्वारा पुलिस अधीक्षक, बड़वानी को सौंपी गई रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि याचिकाकर्ता द्वारा कोई अपराध या जालसाजी नहीं की गई।

    अन्य नोट पर अदालत ने उल्लेख किया कि RTI एक्टिविस्ट ने SDO (राजस्व) को दी गई अपनी शिकायत में उस प्रावधान के बारे में स्पष्ट नहीं किया, जिसके तहत वह याचिकाकर्ता के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। यहां तक ​​कि SDO भी ऐसी शिकायत पर विचार करने के अपने अधिकार की जांच करने में विफल रहे। इसके बजाय तीन सदस्यीय समिति का गठन किया, जिसने मामले में प्रभावी ढंग से पुलिस की भूमिका निभाई। इसके बाद कमेटी की रिपोर्ट एसडीओ को सौंपी गयी।

    अदालत ने जोर दिया,

    “समिति ने पुलिस के रूप में काम किया और गवाहों के बयान दर्ज किए, रिकॉर्ड तलब किया। याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी का बयान भी दर्ज किया गया, जो सीनियर सिटीजन के उत्पीड़न के अलावा कुछ नहीं है।

    केस टाइटल- डॉ. अशोक वर्मा बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य।

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