सेक्स वर्कर का ग्राहक तस्करी के लिए उत्तरदायी नहीं, जब तक कि वह किसी अन्य व्यक्ति के लिए महिलाओं की खरीद में भूमिका नहीं निभाता: उड़ीसा हाइकोर्ट

Amir Ahmad

13 Feb 2024 11:26 AM GMT

  • सेक्स वर्कर का ग्राहक तस्करी के लिए उत्तरदायी नहीं, जब तक कि वह किसी अन्य व्यक्ति के लिए महिलाओं की खरीद में भूमिका नहीं निभाता: उड़ीसा हाइकोर्ट

    उड़ीसा हाइकोर्ट ने माना कि यौनकर्मियों की तस्करी और यौन शोषण के लिए ग्राहकों पर आईपीसी की धारा 370(3) और 370A(2) के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। जब रिकॉर्ड पर कोई सबूत उपलब्ध नहीं है कि ऐसे व्यक्तियों की तस्करी ग्राहकों द्वारा की गई, या उन्हें ऐसी तस्करी के बारे में जानकारी थी।

    जस्टिस सिबो शंकर मिश्रा की एकल पीठ ने यौन-ग्राहकों के दायित्व को स्पष्ट करते हुए कहा,

    “यद्यपि अधिनियम, 1956 के तहत ग्राहकों को दोषमुक्त करने की न्यायिक प्रवृत्ति के अपवाद सीमित हैं, लेकिन कमजोर साक्ष्य के आधार पर ग्राहक पर अनैतिक व्यापार रोकथाम अधिनियम,1956 (Immoral Traffic (Prevention) Act, 1956) की धाराओं के तहत प्रावधानों के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, जब ग्राहक दूसरे के लिए महिलाओं को खरीदने की अपनी भूमिका निभाता है तो आईपीसी की धारा 370ए के तहत अपराध को ग्राहक के खिलाफ कार्रवाई में नियोजित किया जा सकता।"

    संक्षिप्त तथ्य

    याचिकाकर्ता एक स्पा में गए जहां स्पा सेंटर चलाने की आड़ में वेश्यालय चलाया जा रहा था। 19-05-2018 को स्पा में छापेमारी की गई, जहां से आठ युवतियां मिलीं। इसके अलावा, उनमें से सात लड़कियों को वर्तमान याचिकाकर्ताओं सहित कुछ ग्राहकों के साथ यौन गतिविधियां करते हुए आपत्तिजनक स्थिति में पाया गया।

    पासपोर्ट और वीजा की जांच करने पर पता चला कि सभी लड़कियां थाईलैंड की थीं और उनकी उम्र 27 से 35 साल के बीच थी। जांच के बाद पुलिस ने याचिकाकर्ताओं सहित आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम 1956 की धारा 3, 4, 5, 6 और 7 और आईपीसी धारा 370 (3) और 370 ए (2) के तहत आरोप पत्र दायर किया।

    याचिकाकर्ता अपने खिलाफ आईपीसी की धारा 370(3) और 370ए(2) जोड़े जाने से परेशान थे। इसलिए उन्होंने उपरोक्त धाराओं के तहत उनके खिलाफ निचली अदालत द्वारा लिए गए संज्ञान रद्द करने की मांग करते हुए हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    पक्षकारों का तर्क

    याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी गई कि वे न तो स्पा के मालिक हैं और न ही प्रबंधक, बल्कि वे महज ग्राहक थे। उन्हें लड़कियों की पहचान के बारे में कोई सुराग नहीं था और वे लड़कियों की उम्र और क्या पीड़ितों की तस्करी की गई। इसके बारे में भी जानकारी नही थी।

    इसलिए यह प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया नहीं बनाए गए। इस प्रकार यह प्रार्थना की गई कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आईपीसी की धारा 370(3) और 370ए(2) के तहत संज्ञान को रद्द कर दिया जाए।

    हालांकि, राज्य के वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ संज्ञान सही लिया गया, क्योंकि उपरोक्त दंडात्मक प्रावधानों के तहत अपराध प्रथम दृष्टया उनके खिलाफ बनता।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    कोर्ट ने शुरुआत में कहा कि आईपीसी की धारा 370(3) एक से अधिक व्यक्तियों की तस्करी से जुड़े अपराध के लिए सजा का प्रावधान करती है। इसी तरह धारा 370ए(2) ऐसे व्यक्ति के लिए सजा का प्रावधान करती, जो जानबूझकर या यह विश्वास करने का कारण रखता है कि किसी व्यक्ति की तस्करी की गई। ऐसे व्यक्ति को किसी भी तरीके से यौन शोषण में शामिल करता है।

    हालांकि, पीठ ने कहा कि पुलिस द्वारा सीआरपीसी की धारा 161 के तहत किसी भी पीड़ित लड़की का बयान दर्ज नहीं किया गया। उन्हें अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में भी उद्धृत नहीं किया गया।

    यह जोड़ा गया,

    “इसलिए यह आरोप कि लड़कियों की तस्करी की गई और उसके बाद उनका यौन शोषण किया गया आरोप पत्र के वर्णन में उल्लेखित मामला है, लेकिन कोई सबूत एकत्र नहीं किया गया और अदालत के सामने रखा गया। रिकॉर्ड पर आने वाले ऐसे सबूतों के अभाव में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ दोषसिद्धि सुनिश्चित करना असंभव है।”

    अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता केवल उस स्पा के ग्राहक थे, जहां अन्य आरोपी कथित तौर पर वेश्यालय चला रहे थे। इसलिए यह माना गया कि यौन शोषण के लिए महिलाओं की तस्करी में याचिकाकर्ताओं की भूमिका सबूतों से सामने नहीं आती है।

    रिकॉर्ड से यही पता चला और यह कहा गया,

    “सभी कथित पीड़ित लड़कियां थाईलैंड की हैं और वे वयस्क हैं। ऐसा कुछ भी रिकॉर्ड पर नहीं आया, जिससे यह पता चले कि उनका यौन शोषण किया गया, बल्कि वे अपनी इच्छा से वेश्यावृत्ति में थी।”

    इसके बाद न्यायालय ने चंद्रू एस बनाम राज्य मल्लेश्वरम पीएस और श्री रूपेंद्र सिंह बनाम कर्नाटक राज्य मामले में कर्नाटक हाइकोर्ट के दो फैसलों पर भरोसा किया जिसमें यह माना गया था कि आईपीसी की धारा 370(3) और 370ए(2) जहां तक ​​ग्राहकों का सवाल है वे आकर्षित नहीं हैं।

    जस्टिस मिश्रा ने कहा,

    “अनैतिक तस्करी रोकथाम अधिनियम, 1956 के तहत विचारार्थ संभोग का कार्य स्वयं अवैध नहीं है। लेकिन कानून का इरादा केवल यह सुनिश्चित करना है कि वेश्यावृत्ति के उद्देश्य से महिलाओं/लड़कियों की अवैध तस्करी न की जाए और उनका शोषण न किया जाए। वेश्यावृत्ति के लिए आग्रह करना प्रेरित करना या बहकाना गैरकानूनी है, लेकिन वेश्यावृत्ति अपने आप में अवैध नहीं है।”

    वर्तमान मामले में न्यायालय ने माना किसी भी यौनकर्मियों ने यह नहीं कहा कि उनका यौन शोषण किया गया, या यौन दुर्व्यवहार किया गया, या उनकी तस्करी की गई। यौन शोषण में शामिल होने के उद्देश्य से महिलाओं की तस्करी की गई सामग्री के अभाव में ग्राहक के खिलाफ आईपीसी की धारा 370 ए (2) के तहत अपराध नहीं किया जाएगा।

    यह भी माना गया कि यह दिखाने के लिए कोई सामग्री प्रस्तुत नहीं की गई कि ग्राहकों के पास यह विश्वास करने का कारण था कि पीड़ितों की तस्करी यौन शोषण के लिए की गई। इस प्रकार, न्यायालय ने आईपीसी की धारा 370(3) और 370A(2) के तहत अपीलकर्ताओं के खिलाफ मामला रद्द करना उचित समझा।

    केस टाइटल- बिकास कुमार जैन और अन्य बनाम ओडिशा राज्य।

    केस नंबर- 2023 का सीआरएलएमसी नंबर 3390।

    फैसले की तारीख- 09 फरवरी, 2024

    याचिकाकर्ताओं के वकील- अमित प्रसाद बोस।

    राज्य के वकील- बी.के. रगड़ा

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