धारा 29A संशोधन अधिनियम 2015 से पहले शुरू हुई मध्यस्थता कार्यवाही पर लागू नहीं होगी: दिल्ली हाइकोर्ट

Amir Ahmad

2 March 2024 9:42 AM GMT

  • धारा 29A संशोधन अधिनियम 2015 से पहले शुरू हुई मध्यस्थता कार्यवाही पर लागू नहीं होगी: दिल्ली हाइकोर्ट

    दिल्ली हाइकोर्ट की एकल पीठ के जस्टिस मनोज कुमार ओहरी ने कहा कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 (Arbitration and Conciliation Act, 1996) की धारा 29A, जो मध्यस्थ अवार्ड जारी करने के लिए समय सीमा निर्धारित करती है, 2015 संशोधन अधिनिय से पहले शुरू की गई मध्यस्थता कार्यवाही पर लागू नहीं होगी। यह माना गया कि मध्यस्थता की कार्यवाही उस तारीख से शुरू होती है, जब प्रतिवादी को मध्यस्थता के संदर्भ के लिए अनुरोध प्राप्त होता है। धारा 29A ट्रिब्यूनल को दलीलें पूरी होने की तारीख से बारह महीने की अवधि के भीतर निर्णय देने का आदेश देती है।

    संक्षिप्त तथ्य

    ज़िलियन इंफ्राप्रोजेक्ट्स प्रा. लिमिटेड (याचिकाकर्ता) को ब्रिज एंड रूफ इंडिया लिमिटेड द्वारा आशय पत्र के माध्यम से कार्य कॉन्ट्रैक्ट दिया गया। इसके बाद याचिकाकर्ता ने फैब-टैक वर्क्स एंड कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड (प्रतिवादी) को बैक-टू-बैक आधार पर सहायक कार्यों के साथ-साथ भंडारण यार्ड से कार्य स्थल तक सामग्री के परिवहन के लिए आशय पत्र जारी किया। पक्षकारों के बीच विवाद उत्पन्न हो गया, जिसके कारण प्रतिवादी को मध्यस्थता का आह्वान करना पड़ा। दलीलें पूरी होने के बाद 30-11- 2016 को मध्यस्थ न्यायाधिकरण का पुनर्गठन किया गया और मध्यस्थ कार्यवाही जारी रही

    जैसे ही मामला अपने निष्कर्ष पर पहुंचा, इसे 14-12- 2023 को अंतिम बहस के लिए सूचीबद्ध किया गया। इस समय याचिकाकर्ता, जो मध्यस्थ कार्यवाही में प्रतिवादी थाने मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 की धारा 29A (4) के तहत याचिका दायर करने का इरादा व्यक्त करते हुए स्थगन के लिए आवेदन प्रस्तुत किया, दिल्ली हाइकोर्ट मध्यस्थ न्यायाधिकरण के जनादेश के विस्तार की मांग कर रहा है। प्रतिवादी ने पहले के प्रक्रियात्मक आदेश का हवाला देते हुए इस अनुरोध का विरोध किया और तर्क दिया कि मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) अधिनियम, 2015 लागू होने से पहले मध्यस्थता शुरू होने के बाद से कोई विस्तार आवश्यक नहीं था। बहरहाल याचिकाकर्ता ने हाइकोर्ट में धारा 29A (4) के तहत एक आवेदन दायर किया।

    हाइकोर्ट की टिप्पणियां

    हाइकोर्ट ने कहा कि संशोधन अधिनियम की धारा 26 में स्पष्ट रूप से कहा गया कि संशोधन चल रही मध्यस्थ कार्यवाही पर लागू नहीं होंगे, जो संशोधन अधिनियम के शुरू होने से पहले मध्यस्थता अधिनियम की धारा 21 के अनुसार शुरू हुई, जब तक कि पक्ष सहमत न हों। संक्षेप में संशोधन अधिनियम की प्रयोज्यता को तब तक संभावित बनाया गया, जब तक कि पूर्वव्यापी आवेदन के लिए आपसी सहमति न हो। हाइकोर्ट के समक्ष महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या धारा 29A और इसकी निर्धारित समय सीमा संशोधन अधिनियम के लागू होने से पहले शुरू की गई मध्यस्थ कार्यवाही पर लागू होगी।

    हाइकोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता अधिनियम ने मध्यस्थ अवार्ड जारी करने के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की। 2015 में संशोधन अधिनियम के माध्यम से धारा 29A को जोड़ने के माध्यम से ही पहली बार ऐसी समय सीमा लागू की गई। यह माना गया कि मध्यस्थता कार्यवाही की शुरुआत मध्यस्थता अधिनियम की धारा 21 के अनुरूप है। आमतौर पर किसी विशिष्ट विवाद से संबंधित मध्यस्थता की कार्यवाही उस तारीख से शुरू होती है, जब प्रतिवादी को मध्यस्थता के संदर्भ के लिए अनुरोध प्राप्त होता है, जब तक कि पक्ष अन्यथा सहमत न हों। इसलिए यह माना गया कि संशोधन अधिनियम के लागू होने से पहले मध्यस्थता कार्यवाही शुरू की गई।

    नतीजतन हाइकोर्ट ने माना कि न तो धारा 29A और न ही उसमें निर्दिष्ट समय सीमा चल रही मध्यस्थ कार्यवाही पर लागू होगी।

    आवेदन खारिज कर दिया गया।

    केस टाइटल- ज़िलियन इंफ्राप्रोजेक्ट्स प्रा. लिमिटेड अनंत सक्सेना बनाम फैब-टैक वर्क्स एंड कंस्ट्रक्शंस प्राइवेट लिमिटेड के माध्यम से।

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