न्यायालय निष्पादन याचिकाओं में ट्रेडमार्क उल्लंघन की जांच कर सकते हैं, नए मुकदमे की जरूरत नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

Amir Ahmad

29 Jun 2024 12:20 PM IST

  • न्यायालय निष्पादन याचिकाओं में ट्रेडमार्क उल्लंघन की जांच कर सकते हैं, नए मुकदमे की जरूरत नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस जसमीत सिंह की एकल पीठ ने वैक्सीन के उत्पादन में लगी बायोफार्मा कंपनी ग्लैक्सो ग्रुप लिमिटेड के ट्रेडमार्क के उल्लंघन में शामिल प्रतिवादियों के खिलाफ निष्पादन याचिका को अनुमति दी।

    हाईकोर्ट ने माना कि निष्पादन न्यायालय प्रतिवादियों को रोकने के लिए स्थायी निषेधाज्ञा प्रदान करने वाले मूल आदेश के उल्लंघन का न्याय करने के लिए उल्लंघन के गुणों पर विचार कर सकता है।

    पूरा मामला:

    ग्लैक्सो ग्रुप लिमिटेड ("ग्लैक्सो") ने अपने रजिस्टर्ड ट्रेडमार्क का उपयोग करने से रोकने के लिए स्थायी निषेधाज्ञा की मांग करने के लिए प्रतिवादियों के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में मुकदमा दायर किया। ग्लैक्सो ने जेंटेल, ओट्रिविन और एम्बिरिक्स जैसे टीकों के लिए ट्रेडमार्क रजिस्टर्ड किए थे और प्रतिवादी सोंटेल, एटोरिविन और एरिब्रिक्स जैसे भ्रामक रूप से समान शब्दों का उपयोग कर रहे थे।

    ग्लैक्सो के अनुसार, यह प्रतिवादियों द्वारा स्वामित्व प्रत्यय रिक्स का दुरुपयोग करने के लिए अपनाई गई रणनीति थी। हाईकोर्ट ने ग्लैक्सो के पक्ष में डिक्री पारित की, जिसमें ग्लैक्सो और प्रतिवादियों के बीच समझौता करने का अधिकार दिया गया। डिक्री के अनुसार प्रतिवादियों को निर्देश दिया गया था कि वे विवादित ट्रेडमार्क वाले किसी भी अधूरे उत्पाद या सामग्री को नष्ट कर दें।

    डिक्री के बावजूद प्रतिवादियों ने ग्लैक्सो के ट्रेडमार्क का उल्लंघन करना जारी रखा। प्रतिवादियों पर विशेष रूप से ग्लैक्सो के ट्रेडमार्क बेटनेसोल के समान पैकेजिंग के साथ बेटनेविन ट्रेडमार्क का उपयोग करने का आरोप लगाया गया। इस निरंतर उल्लंघन ने ग्लैक्सो को हाईकोर्ट के समक्ष मूल डिक्री को लागू करने के लिए निष्पादन याचिका दायर करने के लिए प्रेरित किया।

    प्रतिवादियों का तर्क:

    प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि यदि हाईकोर्ट यह जांच करता है कि उनके उत्पाद ग्लैक्सो के ट्रेडमार्क का उल्लंघन करते हैं या नहीं तो यह डिक्री की शर्तों का उल्लंघन होगा और उल्लंघन के मामले में गहराई से जाएगा। यह नए मुकदमे के दायरे में आता है, जिसे ग्लैक्सो को दायर करना चाहिए। स्नैपडील (पी) लिमिटेड बनाम गोडैडीकॉम एलएलसी [(2022) 4 एचसीसी (डेल) 335] पर भरोसा किया गया, जहां दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि कोई अदालत विशिष्ट उल्लंघनकारी डोमेन नामों की पहचान किए बिना पहले से ही व्यापक निषेधाज्ञा जारी नहीं कर सकती। प्रत्येक कथित उल्लंघन को जांच और राहत के लिए व्यक्तिगत रूप से अदालत में प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

    इस सिद्धांत ने रेखांकित किया कि उल्लंघन के मुकदमे में संभावित भविष्य के उल्लंघनों के खिलाफ एक व्यापक आदेश मांगने के बजाय उल्लंघन के विशिष्ट उदाहरणों को संबोधित करना चाहिए।

    हाईकोर्ट द्वारा अवलोकन:

    हाईकोर्ट ने माना कि प्रतिवादियों के तर्क एक ऐसे मामले पर आधारित थे, जो एक अंतरिम आदेश था न कि निष्पादन याचिका। इस मामले में निष्पादन याचिका ग्लैक्सो और प्रतिवादियों दोनों द्वारा हस्ताक्षरित समझौते पर आधारित थी, जिसे उनके संबंधित वकीलों ने समर्थन दिया और उसके बाद समझौते की शर्तों के आधार पर डिक्री जारी की गई।

    हाईकोर्ट ने एस्स्को सैनिटेशन बनाम मैस्कॉट इंडस्ट्रीज (इंडिया) [एआईआर 1982 दिल्ली 308] का हवाला दिया, जहां इसने निष्पादन याचिका में समान चिह्न का उपयोग करने से निर्णय देनदारों को रोक दिया। मामले में हाईकोर्ट ने नोट किया कि समझौता विलेख पर आधारित डिक्री ने निर्णय देनदारों को एस्सो ट्रेडमार्क या किसी अन्य भ्रामक रूप से समान ट्रेडमार्क का उपयोग करके डिक्री-धारक के ट्रेडमार्क एस्सको का उल्लंघन करने से रोक दिया।

    हाईकोर्ट ने यह भी नोट किया कि निर्णय देनदारों द्वारा ओसो ट्रेडमार्क को अपनाना बेईमानी थी, क्योंकि यह डिक्री-धारक के ट्रेडमार्क एस्सको से काफी मिलता-जुलता था। डिक्री से पहले ही समान ट्रेडमार्क का उपयोग करने का निर्णय देनदारों का प्रयास बेईमानी के इरादे को दर्शाता है, जो प्रतिबंध आदेश को और भी उचित ठहराता है।

    चित्तूरी सुब्बान्ना बनाम कुडप्पा सुब्बान्ना [1965 एआईआर 1325] पर भी भरोसा किया गया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने माना कि निष्पादन न्यायालय को स्पष्ट और पूर्ण डिक्री को बिना व्याख्या किए या उसकी शर्तों से परे जाए लागू करना चाहिए भले ही डिक्री गलत या कानून के विपरीत क्यों न लगे। इन उदाहरणों के आधार पर हाईकोर्ट ने माना कि निष्पादन याचिका में यह निर्धारित कर सकता है कि प्रतिवादी के उत्पाद समान थे और ग्लैक्सो के ट्रेडमार्क का उल्लंघन कर रहे थे। इसने पुष्टि की कि निष्पादन न्यायालय को डिक्री को उसकी वैधता पर सवाल उठाए बिना लागू करना चाहिए।

    परिणामस्वरूप हाईकोर्ट ने पाया कि प्रतिवादियों के उत्पाद और पैकेजिंग ग्लैक्सो के ट्रेडमार्क के समान थे और उनका उल्लंघन करते थे। परिणामस्वरूप, प्रतिवादियों को बेटनेविन ट्रेडमार्क और बेटनेसोल के समान पैकेजिंग का उपयोग करने से रोक दिया गया। निष्पादन याचिका का निपटारा कर दिया गया साथ ही ग्लैक्सो को आगे उल्लंघन के मामले में याचिका पुनर्जीवित करने की स्वतंत्रता दी गई।

    केस टाइटल- ग्लैक्सो ग्रुप लिमिटेड और अन्य बनाम राजीव मुकुल और अन्य।

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