महिला आईपीएस अधिकारी ने डीजीपी पर कथित रूप से यौन उत्पीड़न और शिकायत दर्ज कराने से रोकने का आरोप लगाया: मद्रास हाईकोर्ट ने संज्ञान लिया; जांच की निगरानी करेंगे

LiveLaw News Network

2 March 2021 5:42 AM GMT

  • महिला आईपीएस अधिकारी ने डीजीपी पर कथित रूप से यौन उत्पीड़न और शिकायत दर्ज कराने से रोकने का आरोप लगाया: मद्रास हाईकोर्ट ने संज्ञान लिया; जांच की निगरानी करेंगे

    मद्रास हाईकोर्ट ने एक स्पेशल डीजीपी द्वारा एक आईपीएस कैडर महिला अधिकारी के साथ कथित यौन उत्पीड़न करने के मामले में स्वत: संज्ञान लिया है, और इसके साथ ही मामले की जांच की निगरानी करने का भी निर्णय लिया है।

    न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकटेश की एकल पीठ ने कथित घटना की आलोचना की और इसके साथ ही विशेष डीजीपी ने कथित रूप से पीड़ित अधिकारी को उसके खिलाफ शिकायत दर्ज करने से रोकने के लिए अपने संपर्कों और शक्ति का इस्तेमाल करने पर भी नाराजगी व्यक्त की।

    जज को इस बात की चिंता थी कि अगर भारतीय पुलिस सेवा में उच्च पद पर आसीन अधिकारी को परेशान किया जा सकता है और शिकायत दर्ज नहीं करने के लिए मजबूर किया जाता है, तो ऐसी मामले में शिकार होने वाली सामान्य महिलाओं की स्थिति क्या होती होगी।

    सिंगल बेंच ने कहा कि,

    "इस मामले में पीड़ित अधिकारी राज्य पुलिस का एक उच्च रैंक वाला पुलिस अधिकारी है। उस रैंक के एक पुलिस अधिकारी को चेन्नई के डीजीपी के पास शिकायत करने में इतना संघर्ष करना पड़ा। यह अदालत को सोचने के लिए मजबूर करती है कि अगर पीड़ित लोअर कैडर से संबंधित अधिकारी होती या जैसा कि एक सब-इंस्पेक्टर या हवलदार के साथ होता है। संभवत: ऐसे अधिकारी के लिए इस मामले में शिकायत करना भी असंभव हो जाएगा। अगर इस उच्च रैंक के महिला अधिकारी की जगह किसी सामान्य महिला का यौन उत्पीड़न हुआ होता तो उसकी स्थिति क्या होती।"

    पृष्ठभूमि

    आईपीएस कैडर से संबंधित पीड़ित अधिकारी ने पुलिस महानिदेशक, चेन्नई को एक शिकायत की, जिसमें आरोप लगाया गया कि उनकी आधिकारिक कार में स्पेशल डीजीपी द्वारा उनका यौन उत्पीड़न किया गया था, जब वे 21 फरवरी, 2021 को बैंडोबास्ट ड्यूटी के सिलसिले में उलुंदुरपेट जिले जा रही थी।

    आरोप लगाया कि वह किसी तरह घटनास्थल से भाग निकली और शिकायत दर्ज कराने के लिए अपनी आधिकारिक कार से चेन्नई की ओर जाने लगीं, तब उसे स्पेशल डीजीपी और कई अन्य पुलिस अधिकारियों के फोन आने लगे।

    उसने कोई भी कॉल नहीं उठाया और उन्हें पुलिस अधीक्षक, चेंगलपेट जिले के नेतृत्व में पुलिस की एक बड़ी टुकड़ी द्वारा परानूर टोल गेट पर रोका गया।

    शिकायत के अनुसार, एक स्ट्राइकिंग फोर्स व्हीकल उनकी कार के ठीक सामने आ कर खड़ी हो गई और उसमें से दो नामांकित पुलिस अधिकारी इंस्पेक्टर और पुलिस उप-निरीक्षक बाहर उतर कर आए और उनसे कार की चाबी छिन लिया।

    इसके बाद, पीड़िता पर दबाव डाला गया और उसे विशेष डीजीपी के साथ बात करने के लिए मजबूर किया गया। विशेष डीजीपी ने उससे शिकायत नहीं करने का अनुरोध किया। हालांकि, जब पीड़िता नहीं मानी , तो उसे जाने दिया गया। इसके बाद उसने चेन्नई के डीजीपी के पास अपनी शिकायत दर्ज कराई।

    इसके बाद, सीबीसीआईडी द्वारा विशेष डीजीपी और पुलिस अधीक्षक, चेंगलपेट के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354A (2), धारा 341, धारा 506 (1) और तमिल नाडु महिला उत्पीड़न निषेध अधिनियम,1998 की धारा 4 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई।

    पीड़ित अधिकारी द्वारा दी गई यौन उत्पीड़न की शिकायत की जांच के लिए एक समिति भी गठित की गई है।

    स्वत: संज्ञान (Suo Moto)

    इस चौंकाने वाली और डरावनी घटने पर स्वत: संज्ञान लेते हुए, एकल न्यायाधीश ने गंभीर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि पहले, एक महिला के साथ इस तरह के उत्पीड़न किया जाता और उसके बाद, कथित अपराधी और उसके सबऑर्डिनेट ने भी शिकायत दर्ज करने से रोकने का दुस्साहस किया।

    एकल न्यायाधीश ने कहा कि,

    "मामला अपने चरम पर पहुंच गया जब महिला अधिकारी को पुलिसकर्मियों की एक भीड़ द्वारा रोका गया, जिसमें कार को रोकने और कार की चाबी छिनने का दुस्साहस किया गया। यह ध्यान में रखना होगा कि जिन अधिकारियों ने यह काम किया वे पुलिस के उप-निरीक्षक और इंस्पेक्टर के रैंक के अधिकारी हैं और कार के अदंर पुलिस अधीक्षक बैठे थे। यह वास्तव में ऐसी घटना थी जिस पर कोर्ट ने सज्ञान लिया। ऐसा इसलिए कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।

    कोर्ट ने पुलिस अधिकारियों द्वारा अपने से वरिष्ठ अधिकारी को रोके जाने पर ध्यान दिया।

    कोर्ट ने कहा कि पीड़ित अधिकारी को उन अधिकारियों द्वारा रोक दिया गया था, जो रैंक और स्थिति में उससे कनिष्ठ हैं, निश्चित रूप से यह दर्शाता है कि महिला की रैंक और स्थिति नहीं बल्कि केवल चैटेल के रूप में देखते हैं।

    आगे टिप्पणी की कि,

    "पुरुषों में एक दोषपूर्ण जीन है जिससे कभी-कभी उन्हें लगता है कि एक महिला उनके अधीनस्थ है और कभी-कभी उन्हें एक चैटल की तरह भी माना जा सकता है। इतिहास में बहुत लंबे संघर्ष के बाद, पिछले 25 वर्षों में महिलाओं ने किसी तरह सार्वजनिक सेवा सहित कार्यस्थलों पर शीर्ष स्तर पर पहुंचने में कामयाबी हासिल की है। यह महिला अधिकारी की सुरक्षित स्थिति नहीं है क्योंकि उन्हें एक अधिकारी या पेशेवर के रूप में नहीं देखा जाता है, अभी भी उन्हें केवल पितृसत्तात्मक आंखों से देखा जाता है।"

    कोर्ट ने महिला अधिकारी की वरिष्ठता का हनन करने पर स्पेशल डीजीपी को फटकार लगाया।

    न्यायाधीश ने विशेष डीजीपी के कृत्यों की आलोचना निम्नलिखित शब्दों में की:

    "यदि कोई अधिकारी, जिस शक्ति के द्वारा दूसरों पर दबाव बनाने की सोचता है, वह सोचता है कि वह किसी भी कार्य से अपनी शक्ति और कनेक्शन के बल पर यह काम कर सकता है, तो न्यायालय मूकदर्शक नहीं बनने वाला है और इसके साथ ही न्यायालय यह सुनिश्चित करेगा कि कानून का शासन लागू है।

    अगर किसी व्यक्ति किसी पद को धारण करता है तो उसके आधार पर व्यक्ति को यह आभास नहीं होना चाहिए कि वह कुछ भी कर सकता है।

    किसी व्यक्ति के पास जितनी शक्ति निहित होती है, वह उस स्थिति के आधार पर निहित होती है, अगर वह यौन उत्पीड़न में लिप्त होता है, तो उसे और अधिक कठोर सजा होनी चाहिए। जो भी व्यक्ति शामिल हो सकता है और वह जो भी स्थिति रखता है इसे कानून को अपने हाथों में नहीं लेना चाहिए, खासकर जब यह यौन उत्पीड़न के मामलों से संबंधित हो।"

    कोर्ट ने जांच की निगरानी करने का फैसला किया।

    अदालत को सूचित किया गया कि मामले में एक प्राथमिकी दर्ज की गई है और कथित घटना की जांच के लिए एक समिति का गठन किया गया है।

    हालांकि, बेंच की राय थी कि मामले के तथ्यों में, किसी संस्था द्वारा की गई जांच पर भरोसा करना समझदारी नहीं हो सकती है, जिस संस्था से आरोपी का संबंध है।

    पीठ ने कहा कि,

    "यह सच है कि सीबीसीआईडी द्वारा अब एक प्राथमिकी दर्ज की गई है और इसे इस न्यायालय के संज्ञान में लाया गया है कि इस मामले की जांच एक अधिकारी द्वारा की जा रही है जो पुलिस अधीक्षक के पद से कम नहीं है। एक एफआईआर दर्ज करने से यह सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है कि कार्यस्थलों में यौन उत्पीड़न के रूप में प्रचलित नासमझी खत्म हो जाएगी।"

    कोर्ट ने कहा कि,

    "पीड़िता को शिकायत दर्ज कराने से रोकने के लिए पुलिस अधिकारियों की एक टुकड़ी द्वारा छेड़छाड़ की गई। इस मामले में आरोपी व्यक्ति उसी राज्य पुलिस बल का एक उच्च पदस्थ पुलिस अधिकारी है जिस राज्य पुलिस बल के बारे में कहा जाता है कि वह इस मामले की भी जांच कर रहा है। न्याय को विफल करने के लिए राज्य पुलिस बल पर आरोपी की प्रवृत्ति को परानुर टोल गेट पर हुई घटना में देखा जा सकता है। "

    इस पृष्ठभूमि में, न्यायालय का विचार है कि यह एक असाधारण मामला है जहां जांच की निगरानी करना आवश्यक है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह सही तरीके से काम करें और कथित जांच में जनता का विश्वास बना रहे।

    आगे कहा गया कि,

    " न्यायालय को जांच की निगरानी करने की आवश्यकता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच के लिए पीड़ित के मौलिक अधिकार एक खाली अनुष्ठान नहीं हैं। न्यायालय द्वारा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का उपयोग करते हुए संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों की रक्षा करना संवैधानिक कर्तव्य है।"

    इसके अलावा, इस मुद्दे की संवेदनशीलता और राज्य में होने वाले आगामी चुनावों को देखते हुए, न्यायालय ने माना कि इस मुद्दे का राजनीतिकरण होने की संभावना अधिक है।

    कोर्ट ने इसे रोकने के लिए निम्नलिखित निर्देश जारी किए हैं:

    1. यह सुनिश्चित करने के लिए कि इस मामले में निष्पक्ष जांच हो रही है, इस मामले का राजनीतिकरण करने और / या प्रचार करने से सभी राजनीतिक दलों को रोकना होगा और मीडिया में पार्टियों द्वारा कोई भी बयान नहीं दिया जाना चाहिए।

    2. जब तक इस मामले की जांच चल रही है तब कर पीड़ित अधिकारी, आरोपी व्यक्ति और गवाहों के नाम मीडिया को नहीं बताया जाएगा।

    3. न्यायालय द्वारा जारी किए गए निर्देशों का कोई भी उल्लंघन बहुत गंभीरता से देखा जाएगा और न्यायालय को अवमानना कार्यवाही शुरू करने के लिए मजबूर किया जा सकता है।

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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