'क्या आप बांग्लादेशी प्रवासियों के रूप में निकाले गए लोगों का पुनर्वास करेंगे?' कर्नाटक हाईकोर्ट सरकार से पूछा
LiveLaw News Network
4 Feb 2020 11:58 AM IST
कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह 10 फरवरी तक सूचित करे कि क्या वह उन व्यक्तियों का पुनर्वास करेगी जो कि करिअम्मना अग्रहारा, देवरबीसनाहल्ली, कुंदलहल्ली और बेलंदुरु क्षेत्र से निकाले गए थे। इन सभी को अवैध बांग्लादेशी अप्रवासी कहते हुए इन इलाकों से निकाला गया था। हालांकि न्यायालय ने कहा, वह उचित आदेश पारित करेगा।
मुख्य न्यायाधीश अभय ओका और न्यायमूर्ति हेमंत चंदनगौदर की खंडपीठ ने कहा कि-
''हम प्रथम दृष्टया मानते हैं कि राज्य को उन लोगों का पुनर्वास करना होगा जिन्हें बेदखल कर दिया गया था। यह सब राज्य सरकार के एक पुलिस निरीक्षक के कारण शुरू हुआ था, जिसने भूमि मालिकों को एक पत्र लिखा था। राज्य को उन सभी का पुनर्वास करना होगा, या तो भुगतान करना होगा या उन्हें कहीं और रहने के लिए स्थान दें।''
पीठ ने भूमि मालिक, प्रतिवादी 8 और 9 (चेतन और गोपीनाथ) द्वारा दिए गए बयान पर गंभीर नाराजगी व्यक्त की, जिन्होंने दावा किया कि शेड (जो ध्वस्त हो गए थे) उनकी जानकारी के बिना उनकी भूमि पर प्रवासियों द्वारा बनाए गए थे। भूमि मालिकों ने दावा किया कि उन्होंने कब्जा करने वालों को अपने पहचान पत्र दिखाने के लिए बुलाया था और ऐसा करने में उनकी विफलता के कारण उन्हें खाली करने के लिए कहा गया और कब्जा करने वाले अपने आप छोड़ कर चले गए।
इस दलील पर अविश्वास करते हुए, पीठ ने पूछा कि,''कौन विश्वास करेगा कि बैंगलोर शहर में पुलिस के समर्थन के बिना, लोग विनम्र अनुरोध पर छोड़कर निकल जाएंगे।''
राज्य सरकार के वकील ने अदालत को बताया कि मराठाहल्ली पुलिस स्टेशन के पुलिस निरीक्षक द्वारा लिखित पत्र वापस ले लिया गया है और पुलिस अधिकारी को स्थानांतरित कर दिया गया है।
इस पर न्यायालय ने कहा कि,
''पुलिस अधिकारी का स्थानांतरण क्या? उसे नौकरी से निकाल दिया जाना चाहिए। उसने अवैध प्रवासियों को हटाने के लिए दीवानी न्यायालय की शक्ति का उपयोग किया है। भूमि के मालिकों को उसके द्वारा लिखे गए पत्र में भूमि पर अवैध रूप से रहने वाले बांग्लादेशी आप्रवासियों के रिकॉर्ड की बात कही गई है। लोगों के चेहरे को देखकर, क्या वह पहचान सकता है कि वह बांग्लादेशी है? एक उचित डोर टू डोर सर्वे /सत्यापन चलाया जाना चाहिए था। राज्य के पास इस बात का भी स्पष्टीकरण नहीं है कि पुलिस नोटिस जारी करने के लिए इस भूमि के मालिक को चुनने का क्या औचित्य था।''
निगम ने अदालत को सूचित किया है कि उनके द्वारा तोड-फोड़ की कोई कार्रवाई नहीं की गई थी। महाधिवक्ता प्रभुलिंग के नवदगी ने क्षेत्र की तस्वीरें प्रस्तुत कीं और अदालत को यह भी बताया कि स्थानीय निवासियों से मिली शिकायतों पर और भारत सरकार की सलाह पर पुलिस निरीक्षक ने पत्र लिखा था। उन्होंने कहा कि,''इस तरह के अवैध शेड अवैध गतिविधियों का खतरा पैदा करते हैं।''
पीठ ने कहा कि,''एडवाइजरी केवल यह कहती है कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों को अवैध आप्रवासियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए संवेदनशील होना चाहिए।''
अदालत ने अंतरिम राहत के माध्यम से, पहले से दी गई छूट में ,अधिकारियों को शेड में रहने वालों को बाहर निकालने से रोक दिया था, जो करिअम्मना अग्रहारा, देवरबीसनाहल्ली, कुंदलहल्ली और बेलंदुरु के इलाकों में रह रहे थे।
पिछली सुनवाई में अदालत ने पूछा था कि ,''क्या यह एक बाहरी ताकत थी, जिसने विध्वंस को अंजाम दिया।'' बीबीएमपी ने अदालत के सामने दावा किया कि ,उन्होंने यह आरोप लगाते हुए निष्कासन नहीं किया था कि वहां कब्जा करने वाले अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं।
न्यायालय ने पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) द्वारा दायर मामले में उपरोक्त टिप्पणियां कीं, जिसमें कथित बांग्लादेशी प्रवासियों के खिलाफ बीबीएमपी और पुलिस के निष्कासन अभियान को चुनौती दी गई है।
याचिका में कहा गया है कि बीबीएमपी और पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई अवैध और असंवैधानिक थी। अफवाहों के आधार पर यह बेदखली अभियान चलाया जा रहा था कि बंग्लादेशी अप्रवासी भूमि पर कब्जा कर रहे हैं।
पीयूसीएल ने कहा कि,यह सभी निवासी या रहने वाले वासी उत्तर कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा और बिहार के प्रवासी हैं, जो अपनी कमजोर सामाजिक-आर्थिक स्थिति के आधार पर पीड़ित हो रहे हैं।
याचिका में कहा गया है कि,''प्रत्येक व्यक्ति को भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आश्रय की गारंटी का अधिकार है। अनुच्छेद 21 के तहत मिले इस अधिकार से केवल कानून द्वारा स्थापित एक उचित और तर्कशील प्रक्रिया के माध्यम से ही वंचित किया जा सकता है, जो वर्तमान मामले में अनुपस्थित है। उक्त संपत्ति के विध्वंस या गिराने के लिए किसी भी वैधानिक प्राधिकरण द्वारा कोई आदेश जारी नहीं किया गया था। "