बलात्कार केस : शादी करने के वादे से 'सहमति'तथ्यों की ग़लतफ़हमी की वजह से कब निरस्त हो जाएगी, जानिए सुप्रीम कोर्ट का नज़रिया

LiveLaw News Network

22 Aug 2019 10:45 AM GMT

  • बलात्कार केस : शादी करने के वादे से सहमतितथ्यों की ग़लतफ़हमी की वजह से कब निरस्त हो जाएगी, जानिए सुप्रीम कोर्ट का नज़रिया

    बुधवार को दिए गए एक फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने IPC की धारा 375 (बलात्कार) के तहत किसी महिला की 'सहमति' की व्याख्या को लेकर क़ानूनी रुख को स्पष्ट किया। यह ऐसे मामलों से जुड़ा है जिसमें आरोप यह है कि सहमति 'तथ्यों के बारे में ग़लतफ़हमी'(शादी करने के वादे) पर आधारित है।

    न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और इंदिरा बनर्जी की पीठ ने प्रमोद सूर्यभान पवार बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में अपने फ़ैसले में कहा,

    "…यह साबित करने के लिए कि 'सहमति' कहीं शादी के वादे से उपजे तथ्यों के बारे में ग़लतफ़हमी पर आधारित तो नहीं है, दो प्रस्तावनाओं का निर्धारण ज़रूरी है। शादी करने का वादा अवश्य ही एक झूठा वादा रहा हो, इसका उद्देश्य ठगना रहा हो और जिस समय यह वादा किया गया उस समय उसकी मंशा इसे पूरा करने की नहीं रही हो। झूठा वादा तत्काल रूप से संगत हो या महिला का उसके साथ यौन संबंध बनाने से उसका प्रत्यक्ष संबंध हो"।

    जहां शादी करने का वादा झूठा हो और वादा करने वाले की मंशा वादा करने के समय ही इसको पूरा करने का नहीं हो और महिला को धोखा देकर उसके साथ यौन संबंध बनाने के लिए राज़ी करने का हो तो उस स्थिति में 'तथ्यों के बारे में ग़लतफ़हमी'होती है और यह महिला की 'सहमति' को निरस्त कर देता है।

    दूसरी ओर वादे को तोड़ने को झूठा वादा नहीं कहा जा सकता। किसी वादे को झूठा वादा साबित करने के लिए यह साबित करना ज़रूरी है कि वादा करने के समय वादा करने वाले की मंशा इसका पालन करने का नहीं रही होगी। धारा 375 के तहत किसी महिला की 'सहमति' तथ्यों के बारे में ग़लतफ़हमी की वजह से निरस्त हो जाती है। इसी ग़लतफ़हमी की वजह से वह उस व्यक्ति से यौन संबंध बनाती है।

    वर्तमान मामले में एफआईआर में लगाए गए आरोपों पर ग़ौर करते हुए पीठ ने एफआईआर को निरस्त कर दिया और कहा,

    एफआईआर में जो आरोप लगाए गए हैं उसके आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि अपीलकर्ता ने झूठा वादा किया किया था या शिकायत करने वाली महिला ने इस वादे के आधार पर उससे यौन संबंध बनाया था। एफआईआर में इस तरह के आरोप नहीं लगाए गए हैं कि जब अपीलकर्ता ने शिकायतकर्ता महिला से शादी का वादा किया था तब वह उसे ठगने के लिए ऐसा किया था। यह नहीं कहा जा सकता कि अपीलकर्ता ने 2008 में शादी करने का जो वादा किया था उसको 2016 में नहीं पूरा करने का मतलब यह हुआ कि यह वादा ही ग़लत था।

    एफआईआर में जो आरोप लगाए गए हैं उसके अनुसार शिकायतकर्ता इस बात से वाक़िफ़ थी कि 2008 से ही शादी की राह में बाधाएं लगातार बनी हुईं थी और यह कि शादी के बाद भी अपीलकर्ता और उस महिला के बीच काफ़ी समय तक यौन संबंध क़ायम रहा, एक विवाद का विषय बन गया। इसके बाद भी शिकायतकर्ता महिला वहां गई जहां अपीलकर्ता पदस्थापित था और उसके साथ रही और अपने आवास पर उसको सप्ताहांत बिताने की इजाज़त भी महिला ने दी थी।

    एफआईआर में जो कहा गया है कि शादी का वादा करके महिला के साथ धोखा हुआ है, उसकी ये सारी बातें झुठलाती हैं। इसलिए अगर शिकायतकर्ता ने अपने बयान में जो तथ्य रखे हैं उन सभी को मान लिया जाए तो भी आईपीसी की धारा 375 के तहत कोई मामला नहीं बनता है।

    जहाँ तक एससी/एसटी अधिनियम के तहत अपराध की बात है तो आरोपी ने शिकायतकर्ता को 27 और 28 अगस्त एवं 22 अक्टूबर 2015 को व्हाट्सएप संदेश भेजे थे। पीठ ने कहा कि ये संदेश सार्वजनिक नहीं थे, इनसे कोई हमला नहीं हुआ ना ही अपीलकर्ता इस स्थिति में था कि वह शिकायतकर्ता से जो चाहता, करवा लेता। इसलिए अगर व्हाट्सएप संदेशों के बारे में शिकायतकर्ता ने जो शिकायतें की हैं, उनको मान लिया जाए तो एससी/एसटी अधिनियम के तहत भी कोई अपराध नहीं बनता।



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