'पश्चिम बंगाल सरकार का आचरण कोर्ट के विश्वास को प्रेरित नहीं करता' : कलकत्ता हाईकोर्ट ने चुनाव के बाद हिंसा की शिकायतों की जांच के लिए NHRC को कमेटी गठित करने के आदेश को वापस लेने से इनकार किया
LiveLaw News Network
21 Jun 2021 1:37 PM IST
कलकत्ता हाईकोर्ट ने सोमवार को अपने 18 जून के आदेश को वापस लेने से इनकार किया, जिसमें राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) को पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हिंसा के दौरान डर से घर छोड़ने के लिए मजबूर हुए लोगों की शिकायतों की जांच के लिए एक समिति गठित करने का निर्देश दिया गया था।
पांच न्यायाधीशों की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी। बेंच ने कहा कि राज्य द्वारा न्यायालय के विश्वास को प्रेरित करने में विफल रहने के बाद आदेश पारित किया गया था और इस आदेश को वापस लेने / संशोधित करने या रोक लगाने का कोई कारण नहीं है।
बेंच में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिनल, जस्टिस आईपी मुखर्जी, जस्टिस हरीश टंडन, जस्टिस सौमेन सेन और जस्टिस सुब्रत तालुकदार शामिल थे।
एसीजे बिंदल ने कहा कि,
"ऐसे आरोप हैं कि पुलिस कार्रवाई नहीं कर रही है और इसलिए हमें एनएचआरसी को शामिल करना पड़ा। आपने प्राप्त एक भी शिकायत को रिकॉर्ड में नहीं रखा है। इस मामले में आपका आचरण न्यायालय के विश्वास को प्रेरित नहीं करता है।"
एसीजे बिंदल ने आगे कहा कि आदेश अहानिकर है और किसी भी तरह से राज्य को पूर्वाग्रह नहीं करता है।
पीठ ने राज्य की ओर से पेश महाधिवक्ता किशोर दत्ता से कहा कि,
"हमने केवल एनएचआरसी को वर्तमान स्थिति पर रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहा है। उन्हें ऐसा करने दें। इसमें गलत क्या है?"
पीठ ने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार एनएचआरसी द्वारा नियुक्त की जाने वाली समिति के समक्ष अपनी दलीलें और उसके द्वारा की गई कार्रवाइयों को भी रख सकती है।
राज्य ने यह कहते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया कि उसे हिंसा के दौरान डर से घर छोड़कर चले गए लोगों के पुनर्वास के संबंध में पश्चिम बंगाल राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण द्वारा दायर रिपोर्ट की कॉपी नहीं दी गई थी, जो 18 जून के आदेश का आधार बनी।
महाधिवक्ता किशोर दत्ता ने दावा किया कि रिपोर्ट के अभाव में मामले में प्रभावी ढंग से बहस करने में असमर्थ है। इसलिए उन्होंने आग्रह किया कि इस आदेश पर रोक लगाई जाए ताकि राज्य को स्थिति को सुधारने के लिए उनके द्वारा उठाए जा रहे कदमों को प्रदर्शित करने के लिए और समय दिया जा सके।
पीठ ने शुरुआत में कहा कि,
"इतना गंभीर मामला है और आप अब तक निर्देश लेने में विफल हैं? नहीं, हम इसकी अनुमति नहीं दे सकते।"
बेंच ने यह भी आश्चर्य व्यक्त किया कि एक तरफ NHRC को 500 से अधिक शिकायतें मिली हैं और दूसरी ओर राज्य का दावा है कि राज्य मानवाधिकार आयोग को कोई शिकायत नहीं मिली है।
पीठ ने कहा कि,
"यह कैसे संभव है। राज्य सरकार इसको लेकर सुस्त है।"
कोर्ट ने देखा कि कार्यवाही तथ्य-खोज की प्रकृति में है और आदेश को वापस लेने की कोई आवश्यकता नहीं है।
केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल वाईजे दस्तूर ने कहा कि अदालत ने केवल एनएचआरसी को एक रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहा है और इससे राज्य प्रशासन प्रभावित नहीं होता है।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल वाईजे दस्तूर ने आगे कहा कि,
"यदि यह न्यायालय आदेश पर रोक लगाता है, तो यह राज्य को लाभ देने के बराबर होगा।"
कुछ शिकायतकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता प्रियंका टिबरेवाल ने आरोप लगाया कि राज्य एक विहंगम दृष्टि से देखने की कोशिश कर रहा है जबकि पश्चिम बंगाल में हिंसा जारी है। उन्होंने यह प्रदर्शित करने के लिए कि सामान्य स्थिति वापस नहीं आई है, बैरकपुर निर्वाचन क्षेत्र में विस्फोट की घटना और एक महिला के खिलाफ हिंसा का हवाला दिया।
एजी दत्ता ने तर्क दिया कि चुनाव के बाद हिंसा की परिभाषा को सीमित किया जाना चाहिए और हर दूसरी घटना को चुनाव के बाद हिंसा के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।
पृष्ठभूमि
हाईकोर्ट ने इससे पहले तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था ताकि पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद की हिंसा के दौरान डर से घर छोड़ने पर मजबूर पीड़ितों को उनके घरों में शांतिपूर्वक लौटने में सक्षम बनाया जा सके।
कोर्ट के आदेश के अनुसार समिति में निम्न शामिल थे; (i) राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष द्वारा नियुक्त किया जाने वाला एक सदस्य (ii) राज्य मानवाधिकार आयोग द्वारा नामित किया जाने वाला सदस्य (iii) सदस्य सचिव, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण।
पीठ ने आदेश दिया था कि हिंसा के दौरान घर छोड़ने पर मजबूर व्यक्ति अपने घरों में शांति से लौटने और रहने के हकदार हैं। सभी संबंधित पुलिस स्टेशन समिति के साथ समन्वय करेंगे जो उपरोक्त प्रक्रिया के लिए उठाए गए कदमों के बारे में अपनी रिपोर्ट इस अदालत को सौंपेगी।
कोर्ट ने राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण को उन विस्थापित व्यक्तियों की शिकायतों पर गौर करने का भी निर्देश दिया कि जिन्हें उनके घरों में लौटने से रोका जा रहा है और उनके पुनर्वास के लिए आवश्यक कदम उठाएं।
बेंच ने प्राधिकरण की रिपोर्ट के अवलोकन पर कहा कि उसमें परिलक्षित तथ्य राज्य के दावे से काफी भिन्न हैं।
पीठ ने कहा था कि,
"राज्य शुरू से ही सब कुछ नकारता रहा है, लेकिन तथ्य जो याचिकाकर्ताओं द्वारा रिकॉर्ड में रखे गए हैं और पश्चिम बंगाल राज्य विधि सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव द्वारा दायर 3 जून, 2021 की रिपोर्ट स्पष्ट रूप से अलग है।"
कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के याचिका में मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप को ध्यान में रखते हुए एनएचआरसी अध्यक्ष को शिकायतों की जांच के लिए एक समिति गठित करने का निर्देश दिया था।
कोर्ट ने आदेश में कहा था कि,
"समिति सभी मामलों की जांच करेगी और प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर सकती है और वर्तमान स्थिति के बारे में इस न्यायालय को एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी और लोगों का विश्वास सुनिश्चित करने के लिए कि वे अपने घरों में शांति से रह सकते हैं और आजीविका कमाने के लिए अपना व्यवसाय कर करते हैं।"