आरोपी के साथ स्वेच्छा से घर छोड़ने से पीड़िता की निजता पर हमला करने का आरोपी को कोई अधिकार नहीं मिल जाता : कलकत्ता हाईकोर्ट ने बलात्कार की सजा बरकरार रखी

Sharafat

11 Sep 2023 12:51 PM GMT

  • आरोपी के साथ स्वेच्छा से घर छोड़ने से पीड़िता की निजता पर हमला करने का आरोपी को कोई अधिकार नहीं मिल जाता : कलकत्ता हाईकोर्ट ने बलात्कार की सजा बरकरार रखी

    कलकत्ता हाईकोर्ट की सर्किट बेंच ने जलपाईगुड़ी में हाल ही में माना है कि एक लड़की द्वारा स्वेच्छा से आरोपी व्यक्ति के साथ अपना घर छोड़ने से आरोपी को उसकी निजता पर हमला करने या उसके साथ यौन अपराध करने का कोई अधिकार नहीं मिल जाता है।

    जस्टिस सिद्धार्थ रॉय चौधरी की एकल पीठ ने आईपीसी की धारा 376 के तहत बलात्कार के लिए अपीलकर्ता की ट्रायल कोर्ट की सजा को बरकरार रखा और कहा,

    " यदि यह मान लिया जाए कि पीड़िता का अपहरण नहीं किया गया था और उसने अकेले ही आरोपी के साथ अपना घर छोड़ दिया था, इससे आरोपी व्यक्ति को पीड़ित लड़की की निजता पर हमला करने या भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत परिभाषित बलात्कार के अर्थ में उसके खिलाफ यौन अपराध करने का अधिकार नहीं मिल जाता है। अपने मुख्य साक्ष्य में पीड़िता ने कहा कि आरोपी व्यक्ति ने उसे तीन दिनों तक एक घर में कैद रखा और उसके साथ बलात्कार किया। यहां इस मामले में पीड़िता से किये गए क्रॉस एक्ज़ामिनेशन से उसकी विश्वसनीयता को हिलाने वाली कोई बात सामने नहीं आई है, इसलिए पुष्टि की मांग करने का कोई कारण नहीं है क्योंकि यह पीड़िता को पहले से ही लगी चोट पर अपमान जोड़ने जैसा होगा।"

    नवंबर 2007 में पीड़िता के पिता ने पुलिस से शिकायत की कि अपीलकर्ता उनकी कथित नाबालिग बेटी, जो सातवीं कक्षा की छात्रा है, उसे अपने साथ बहला फुसला कर ले गया है। लड़की के पिता ने अपीलकर्ता के खिलाफ आईपीसी की संबंधित धाराओं के तहत एक एफआईआर दर्ज करवाई।

    ट्रायल में आरोपी को आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) के तहत दोषी ठहराया गया और सात साल की कैद और जुर्माने के तहत दंडित किया गया।

    अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष दस्तावेजी सबूतों के माध्यम से पीड़िता की उम्र साबित करने में विफल रहा है और जबकि पीड़िता की मां और आरोपी एक ही स्थान पर काम करते थे। वास्तविक शिकायतकर्ता कहीं और रहती थी और उसे आरोपी और पीड़ित के बीच संबंध के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।

    यह तर्क दिया गया कि आरोपी और पीड़िता प्यार में थे और 'विवेक' की उम्र होने के बाद पीड़िता स्वेच्छा से आरोपी के साथ अपना घर छोड़कर चली गई।

    वकील ने तर्क दिया कि अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 365 के तहत दोषी ठहराने का कोई कारण नहीं था क्योंकि ट्रायल कोर्ट के लिए यह अनुमान लगाने का कोई आधार नहीं था कि पीड़िता को उसके स्वैच्छिक कार्यों के माध्यम से उसके अभिभावक की देखभाल से बाहर कर दिया गया था।

    आगे यह प्रस्तुत किया गया कि जोड़े के रिश्ते के बारे में पीड़ित के माता-पिता को पता था और आरोपी की कोई आपराधिक मंशा नहीं थी क्योंकि घटनाएं प्रेम में दो व्यक्तियों के बीच घटी घटनाएं थीं।

    अपीलकर्ताओं ने अभियोजन मामले में और भी प्रक्रियात्मक विसंगतियों की ओर इशारा किया और तर्क दिया कि भले ही पीड़िता ने अपने माता-पिता को सूचित करने की बात कही थी, लेकिन इसकी पुष्टि के लिए कोई फोन रिकॉर्ड नहीं लिया गया। साथ ही डॉक्टर द्वारा किए गए मेडिकल जांच में लड़की के शरीर पर कोई चोट सामने नहीं आई।

    राज्य ने तर्क दिया कि अपीलकर्ताओं द्वारा बताई गई विसंगतियां प्रकृति में मामूली हैं। यह प्रस्तुत किया गया कि पीड़िता के साक्ष्य की संपूर्णता में सराहना की जानी चाहिए और उसने कभी भी अपीलकर्ता के साथ "शारीरिक संबंध" के लिए अपनी सहमति नहीं दी थी।

    यह तर्क दिया गया कि अपीलकर्ता ने बल प्रयोग किया और पीड़िता के साथ बलात्कार किया, जिससे पीड़िता की मेडिकल जांच के दौरान संभोग के सबूत मिलने के बाद आईपीसी की धारा 376 के तहत दोषसिद्धि को उचित ठहराया गया।

    राज्य ने गवाहों के क्रॉस एक्ज़ामिनेशन पर भरोसा करते हुए बताया कि पीड़िता ने आरोपी द्वारा यौन उत्पीड़न किए जाने के दौरान शोर मचाया था और अगली सुबह स्थानीय लोगों द्वारा पूछताछ करने पर उसने उन्हें सूचित किया था कि वह पेनेट्रेटिव सेक्सुअल का शिकार हुई, जिससे आईपीसी की धारा 376 के तहत अपराध साबित होता है।

    राज्य ने पीड़िता की उम्र साबित करने में अपनी असमर्थता स्वीकार की, लेकिन कहा कि आरोपी किसी भी तरह की "छूट" पाने के लिए इस पर भरोसा नहीं कर सकता क्योंकि वह अभी भी बलात्कार का दोषी है।

    पक्षकारों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने माना कि पीड़िता की उम्र के संबंध में किसी भी सबूत के अभाव में आईपीसी की धारा 365 के तहत दोषसिद्धि को कायम नहीं रखा जा सकता है, लेकिन यह अभियोजन मामले की जड़ पर प्रहार नहीं करेगा।”

    पीड़िता ने क्रॉस एक्ज़ामिनेशन के दौरान कहा, '' जब उस घर में हेमंत ने उसके साथ बलात्कार किया मैंने शोर मचा दिया। अगली सुबह उस घर के सदस्यों ने मुझसे कारण पूछा जिसके कारण मैंने शोर मचाया तो मैंने उन्हें बताया कि हेमन्त ने मेरे साथ बलात्कार किया है। पीड़िता की डॉक्टर द्वारा जांच की गई और पीडब्लू 10 के अनुसार डॉक्टर ने कहा कि पीड़िता के साथ संभोग हुआ। पीड़िता न केवल क्रॉस एक्ज़ामिनेशन में खरी उतरी, बचाव पक्ष के वकील ने क्रॉस एक्ज़ामिनेशन के माध्यम से अभियोजन मामले को समर्थन दिया।

    तदनुसार अपीलकर्ता को हुई "पीड़ा और चिंता" के कारण सजा की मात्रा में अदालत के हस्तक्षेप की प्रार्थना करने वाली दलील पर ध्यान देते हुए अदालत ने आईपीसी की धारा 376 आईपीसी के तहत अपीलकर्ता की सजा को 7 साल से घटाकर 4 साल कर दिया।

    केस: हेमन्त बर्मन बनाम पश्चिम बंगाल राज्य

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