(मानहानि) न्यायिक प्रक्रिया के दौरान हलफ़नामे के तहत या वैसे ही दिए गए किसी बयान को पूर्ण विशेषाधिकार हासिल नहीं : केरल हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

15 Jan 2020 4:15 AM GMT

  • (मानहानि) न्यायिक प्रक्रिया के दौरान हलफ़नामे के तहत या वैसे ही दिए गए किसी बयान को पूर्ण विशेषाधिकार हासिल नहीं : केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया का कोई पक्षकार आपराधिक मानहानि का दोषी पाया जाता है, क्योंकि उसने इस तरह की न्यायिक प्रक्रिया के दौरान हलफ़नामे के माध्यम से या ऐसे ही कोई बयान दिया तो उसकी आपराधिकता का निर्धारण आईपीसी की धारा 499 के प्रावधानों के आधार पर होना चाहिए।

    अदालत ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता के वक़ील की इस दलील में कोई दम नहीं है कि याचिकाकर्ता ने अदालत के समक्ष दायर रिट याचिका में जो बयान दिया है वह पूरी तरह उसके विशेषाधिकार के तहत आता है।

    इसी तरह का एक फ़ैसला हाईकोर्ट ने शयबीमों बनाम हरिदास 2010 (2) KLT 158 मामले में दिया था।

    वर्तमान आदेश न्यायमूर्ति आर नारायण पिशारदी ने दिया जिन्होंने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर इस याचिका पर सुनवाई की। याचिका में एक अलग न्यायिक प्रक्रिया में शिकायतकर्ता का कथित रूप से अपमान करने के लिए याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्रवाई के आदेश को निरस्त करने की माँग की गई थी।

    याचिकाकर्ता ने शिकायकर्ता के ख़िलाफ़ एक मामला दायर किया था कि याचिकाकर्ता ने उसे गुंडा कहकर उसका अपमान किया है।

    हाईकोर्ट ने इस कार्यवाही को निरस्त करने से मना कर दिया और कहा, "एक बार जब अदालत में कोई बयान दे दिया गया है तो उसे 'प्रकाशित' माना जा सकता है।" इस बारे में अदालत ने प्रभाकरण बनाम गंगाधरन, 2006 (2) KLT 122 मामले में आए फ़ैसले पर भरोसा किया।

    अदालत ने याचिकाकर्ता की दलील को ठुकरा दिया कि न्यायिक प्रक्रिया के दौरान जो बयान दिए गए थे उससे मानहानि का मामला नहीं बनता जिसके लिए आईपीसी की धारा 500 के तहत सज़ा का प्रावधान है।

    अदालत ने कहा कि आईपीसी की धारा 499 का अपवाद 9, जिसमें विश्वास के तहत दिए गए बयान को सुरक्षा प्राप्त है ताकि ऐसे बयान देनेवाले को सुरक्षा दी जा सके, यह याचिकाकर्ता के संदर्भ में लागू होगा या नहीं यह मुक़दमें की सुनवाई पर निर्भर है। इसके लिए शत्रुघ्न प्रसाद सिन्हा बनाम राजभाऊ सूरजमल राठी, (1996) 6 SCC 263 मामले में आए फ़ैसले पर भरोसा किया गया।

    "किसी मामले का बयान आईपीसी की धारा 499 के किसी 10 अपवादों के तहत आता है कि नहीं इसका निर्णय सुनवाई से ही हो सकती है और यह अपमानजनक बयान इनमें से किसी अपवाद के तहत आता है यह आरोपी को ही सिद्ध करना है।"

    यह कहते हुए अदालत ने इस याचिका को ख़ारिज कर दिया कि,

    "याचिकाकर्ता ने उक्त बयान अपने हित की रक्षा कि लिए विश्वास के तहत दिया है इस बात को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर याचिका में साबित नहीं किया जा सकता।"


    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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