मवेशियों के परिवहन के नियमों के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर तेलंगाना हाईकोर्ट ने नोटिस जारी किया

LiveLaw News Network

16 Feb 2020 9:19 AM GMT

  • मवेशियों के परिवहन के नियमों के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर तेलंगाना हाईकोर्ट ने नोटिस जारी किया

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने मवेशियों और पशुओं के परिवहन से संबंधित कुछ नियमों को चुनौती देने वाली एक याचिका पर नोटिस जारी किया है।

    तेलंगाना मोटर वाहन नियम, 1989 के नियम 253 और केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 के नियम 125-ई के खिलाफ ऑल इंडिया जमीयतुल कुरैश एक्शन कमेटी ने जनहित याचिका दायर की है। ये नियम, पशु या पशुधन, के परिवहन के लिए मोटर वाहनों की विशेष आवश्यकताओं को निर्धारित करते हैं।

    ये नियम इस प्रकार हैं-

    (1) जानवरों को ले जाने वाले वाहनों के ढ़ाचें में स्थायी विभाजन (निर्धारित आकार के) होंगे ताकि जानवरों को प्रत्येक विभाजन में अलग ले जाया जाए।

    याचिकाकर्ता संगठन ने तर्क दिया है कि वाहन के ढ़ाचें में ऐसे विभाजन होना असंभव और अव्यवहारिक है क्योंकि उपलब्ध कराए गए स्थान पशुधन की प्रजातियों के आकर से बहुत बड़े आकार के हैं और अधिकांश जानवर जो छोटे आकार के हैं, ये स्थान उनके लिए उपयुक्त नहीं हैं।

    पशुओं को आवश्यकता से अधिक स्थान में ले जाने से उनको असुविधा होगी और उन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि जानवरों को चोट लग सकती है और वे घायल हो सकते हैं।

    उन्होंने आगे कहा कि यह प्रावधान पशु कल्याण के लिए हानिकारक हैं, क्योंकि विभिन्न पशु चिकित्सा विशेषज्ञों ने बताया है कि पशुओं के व्यक्तिगत विभाजन में उनको ले जाना, पशु कल्याण निहितार्थ के खिलाफ है क्योंकि जानवरों का आपसी सामाजिक बंधन होता है और वे व्यक्तिगत रूप से अलग रहने की बजाय छोटे समूहों में रहना पसंद करते हैं।

    इस पृष्ठभूमि में यह तर्क दिया गया है कि लगाए गए प्रावधान पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 ( प्रिवेंशन ऑफ क्रूएल्टी टू एनिमल्स एक्ट, 1960 ) की योजना के खिलाफ हैं।

    यह भी कहा गया है कि लगाए गए प्रावधान को बीआईएस कोड में उल्लेखित मानक के अनुरूप लाया जा सकता है, जो पशुओं के लिए चारा, पानी इत्यादि जैसी आवश्यक सामग्री के अलावा उनके साथ किसी अन्य सामान को परिवहन नहीं करने के बारे में बताता है या निर्धारित करता है।

    (2) पशुओं को ले जाने के लिए बने वाहनों को किसी अन्य सामान को ले जाने की अनुमति नहीं होगी।

    इस प्रावधान को अल्ट्रा वायर्स (शक्ति से बाहर) और विभिन्न संवैधानिक प्रावधानों के उल्लंघन के रूप में चुनौती दी गई है। यह कहा गया है कि इस तरह की शर्त किसानों और पशु व्यापारियों पर वाहन की वापसी यात्रा के किराए का भुगतान करने का भार ड़ालती है, जो संविधान के अनुच्छेद 19 ( i ) (जी) के तहत उनके व्यापार के अधिकार और अनुच्छेद 21 के तहत आजीविका के अधिकार को प्रभावित करती है।

    वर्तमान ऑपरेशन में पशुधन को ग्रामीण क्षेत्र के बाजारों से शहरी क्षेत्र के बाजार या उपयोगकर्ता गंतव्य तक ले जाया जाता है और वापसी की यात्रा में चूंकि जानवरों को नहीं ले जाया जाता है इसलिए वाहन उचित माल ले जाते हैं जो परिवहन की लागत और स्थायी संचालन को कवर कर लेता है।

    ... याचिका में कहा गया है कि पशुधन को खाली करने के बाद अगर वाहन वापसी में खाली लौट कर आएगा तो वापसी यात्रा की लागत भी परिवहन किए गए पशुधन के खाते में ड़ाल दी जाएगी ,जो पशुधन के परिवहन की लागत को दोगुना कर सकता है।

    इसी बीच इस याचिका में परिवहन आयुक्त, तेलंगाना द्वारा जारी किए गए एक सर्कुलर मेमो को भी चुनौती दी गई है, जिसमें प्रावधानों को लागू किया गया है। धार्मिक रूप से, उक्त परिपत्र या सर्कुलर धार्मिक उद्देश्यों के लिए किसी भी जानवर की बिक्री/खरीद /परिवहन पर प्रतिबंध लगाता है।

    यह, याचिकाकर्ता के अनुसार, संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत गारंटीकृत धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार का उल्लंघन है।

    इसके अलावा यह बिक्री या वध के लिए किसी भी जानवर की बिक्री/ खरीद पर प्रतिबंध लगाता है, जो मांस बिक्री व्यवसाय का एक हिस्सा है। यह, ''भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 ( i ) (जी) के तहत गारंटीकृत मुक्त व्यापार और व्यवसाय पर अनुचित और अत्यधिक प्रतिबंध है और व्यापार व व्यवसाय की स्वतंत्रता में असंवैधानिक हस्तक्षेप है।

    यह भी कहा गया है कि भोजन की पसंद का अधिकार (गैर शाकाहारी या शाकाहारी) व्यक्तिगत स्वतंत्रता, विवेक और गोपनीयता के अधिकार का एक हिस्सा है। भोजन के लिए जानवरों के परिवहन पर प्रतिबंध लगाना ऐसे जानवरों के मांस खाने की इच्छा रखने वाले नागरिकों को इस तरह के भोजन से वंचित कर देगा।

    यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत भोजन, निजता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है।

    इस मामले में अब 4 मार्च को सुनवाई होगी।

    मामले का विवरण-

    केस का शीर्षक-

    आलॅ इंडिया जमीयतुल कुरैश एक्शन कमेटी बनाम यूनियन आॅफ इंडिया

    केस नंबर-डब्ल्यूपी नंबर 2080/2020

    कोरम-मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चैहान और न्यायमूर्ति ए. अभिषेक रेड्डी

    प्रतिनिधित्व-एडवोकेट मोहम्मद अब्दुल फहीम (याचिकाकर्ता के लिए) व एडवोकेट नामवरपु राजेश्वर राव (प्रतिवादी के लिए)

    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




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