सरकारी अस्पताल में मरीज की अनपेक्षित मौत या चोट पहुंचने पर राज्य की ओर से मुआवजा देना अनिवार्य है, भले ही चिकित्सकीय लापरवाही नहीं हुई हो : मद्रास हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

27 Feb 2021 7:26 AM GMT

  • सरकारी अस्पताल में मरीज की अनपेक्षित मौत या चोट पहुंचने पर राज्य की ओर से मुआवजा देना अनिवार्य है, भले ही चिकित्सकीय लापरवाही नहीं हुई हो : मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु राज्य सरकार को एक दलित याचिकाकर्ता को 5 लाख रुपये का मुआवजा प्रदान करने का निर्देश दिया, जिसकी बेटी की सरकारी अस्पताल में एनेस्थीसिया (बेहोशी की दवा) देने के बाद पैदा हुई जटिलताओं के कारण मौत हो गई।

    न्यायमूर्ति जीआर स्वामीनाथन की एकल पीठ ने इस मामले की सुनवाई की और कहा कि भले ही एनेस्थेटिस्ट की ओर से कोई चिकित्सकीय लापरवाही (Medical Negligence) न की गई हो, लेकिन सरकार की ओर से एक दायित्व मौजूद है कि अगर किसी मरीज को एक सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया और वहां वह मरीज प्रभावित होता है या उसे चोट आती है या उसकी मौत हो जाती है, तो यह एक सामान्य घटना नहीं है।

    पीठ ने कहा कि,

    "जब किसी मरीज को इलाज के लिए सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया जाता है और उसे कोई चोट आती है या मृत्यु हो जाती है, तो यह एक सामान्य घटना नहीं है, यहां तक की अगर यह घटना बिना किसी चिकित्सकीय लापरवाही के घटित होती है तो भी सरकार का दायित्व है कि वह प्रभावित पार्टी की मदद करे।"

    मामले के तथ्य

    तत्काल मामले में, याचिकाकर्ता की बेटी, जिसकी उम्र 8 वर्ष थी, वह टॉन्सिल से पीड़ित थी और उसके उपचार के लिए अरुप्पुकोट्टई के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इलाज के लिए उसे सर्जरी प्रक्रिया से गुजरना था और उस प्रक्रिया में, उसे एनेस्थीसिया (बेहोशी की दवा) दिया गया था। नतीजतन, कुछ जटिलताएं पैदा हुईं और उसे मदुरै के राजाजी सरकारी अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया, जिसमें वह कोमा में चली गई और आखिरकार उसका निधन हो गया।

    कोर्ट का अवलोकन

    एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि काउंसलर द्वारा याचिकाकर्ता के लिए प्रस्तुत किया गया है कि उसकी सर्जरी करने से पहले उसे एनेस्थीसिया दिया गया। इसके बाद शरीर के अंदर अनेक जटिलताएं उत्पन्न हुईं और यह एनेस्थेटिस्ट की ओर से की गई लापरवाही के कारण हुआ।

    चिकित्सकीय लापरवाही को तथ्यात्मक निर्धारण की आवश्यकता बताते हुए, न्यायालय ने कहा कि बच्चे को जो दवा दी गई थी वह आंतरिक रूप से खतरनाक दवा नहीं थी, लेकिन इससे माइटोकॉन्ड्रियल बीमारियों वाले बच्चों के लिए जटिलताएं हो सकती हैं। हालांकि, यह नोट किया गया कि मृतक बच्चे को इस तरह की बीमारी होने का संकेत देने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं था, जिससे डॉक्टरों द्वारा इस पर ध्यान नहीं दिया गया था।

    पीठ ने कहा कि,

    "हमेशा ऐसे उदाहरण देखने के मिलते हैं, जब कोई दवा रोगी को दी जाती है और दवा का असर शरीर पर सही से नहीं होता है तो इससे दुर्भाग्यपूर्ण जटिलताएं उत्पन्न हो जाती हैं। इस मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ है। इसलिए, मुझे यह मानने के लिए कोई आधार नहीं मिला है कि प्रतिवादी एनेस्थेटिस्ट ने चिकित्सकीय लापरवाही का कोई भी कार्य किया है।"

    हालांकि, भले ही अदालत ने चिकित्सकीय लापरवाही के आरोप को खारिज कर दिया, लेकिन यह टिप्पणी की कि याचिकाकर्ता एक अधिसूचित अनुसूचित जाति समुदाय का है और बच्चे को सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

    इस संदर्भ में, अदालत ने कहा कि,

    "जब किसी मरीज को इलाज के लिए सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया जाता है और उसे कोई चोट आती है या मृत्यु हो जाती है, तो यह एक सामान्य घटना नहीं है, यहां तक की अगर यह घटना बिना किसी चिकित्सकीय लापरवाही के घटित होती है तो भी सरकार का दायित्व है कि वह प्रभावित पार्टी की मदद करे।"

    कोर्ट ने कहा कि, तमिलनाडु सरकार ने एक कोष बनाया है, जिसमें प्रत्येक सरकारी डॉक्टर एक निश्चित धनराशि जमा करते हैं और तदनुसार, तत्काल आदेश की प्रति प्राप्त होने की तारीख से आठ सप्ताह की अवधि के भीतर इस निधि से याचिकाकर्ता को 5 लाख रुपया मुआवजे के रूप में देने के लिए निर्देशित किया जाता है।

    केस का शीर्षक: तमिल सेल्वी बनाम तमिलनाडु राज्य और अन्य।

    केस नंबर : Writ Petition (MD) No. 2721 of 2017

    याचिकाकर्ता के लिए: एडवोकेट आर. करुणानिधि

    प्रतिवादी के लिए: एडवोकेट सी रामर आर1 से आर 7 और आर11, एडवोकेट टी. लाजपति रॉय, सी पृथ्वीराज और आर 8 से आर10 के लिए।

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



    Next Story