'आईपीसी के तहत प्रथम दृष्टया अपराध सिर्फ इसलिए आकर्षित नहीं होगा क्योंकि महिला ने उत्तेजक कपड़े पहने थे': केरल कोर्ट ने यौन उत्पीड़न मामले में आरोपी को अग्रिम जमानत दी

Brij Nandan

17 Aug 2022 4:50 AM GMT

  • आईपीसी के तहत प्रथम दृष्टया अपराध सिर्फ इसलिए  आकर्षित नहीं होगा क्योंकि महिला ने उत्तेजक कपड़े पहने थे: केरल कोर्ट ने यौन उत्पीड़न मामले में आरोपी को अग्रिम जमानत दी

    केरल की एक अदालत (Kerala Court) ने यौन उत्पीड़न मामले (Sexual Harassment Case) में लेखक और सोशल एक्टिविस्ट सिविक चंद्रन को अग्रिम जमानत देते हुए कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 354 ए के तहत अपराध प्रथम दृष्टया आकर्षित नहीं होता है क्योंकि महिला 'यौन उत्तेजक कपड़े' पहन रखी थी।

    74 वर्षीय आरोपी ने जमानत अर्जी के साथ महिला की तस्वीरें भी पेश की थीं।

    कोझीकोड सत्र न्यायालय ने कहा,

    "आरोपी द्वारा जमानत आवेदन के साथ पेश की गई तस्वीरों से पता चलता है कि वास्तविक शिकायतकर्ता खुद ऐसे कपड़े पहन रखी थी, जो यौन उत्तेजक हैं। इसलिए धारा 354ए के तहत प्रथम दृष्टया आदेश आरोपी के खिलाफ नहीं होगी।"

    कोर्ट ने यह भी कहा किया कि यह कैसे संभव है कि 74 वर्षीय शारीरिक रूप से अक्षम आरोपी शिकायतकर्ता को जबरदस्ती अपनी गोद में बिठा सकता है और उसके स्तनों को दबा सकता है।

    कोर्ट ने कहा कि धारा 354 के शब्दों से यह बिल्कुल स्पष्ट है कि आरोपी की ओर से एक महिला का शील भंग करने का इरादा होना चाहिए। धारा 354ए यौन उत्पीड़न और उसके दंड से संबंधित है; इस धारा को आकर्षित करने के लिए शारीरिक संपर्क और अवांछित और स्पष्ट यौन प्रस्ताव शामिल होने चाहिए, और यौन रूप से रंगीन टिप्पणियां या यौन पक्ष के लिए मांग या अनुरोध होना चाहिए।

    अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि आरोपी ने शिकायतकर्ता के प्रति यौन प्रगति की, जो एक युवा महिला लेखिका है और फरवरी 2020 में नंदी समुद्र तट पर आयोजित एक शिविर में उसकी शील भंग करने की कोशिश की। कोयिलंडी पुलिस ने आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 354ए(2), 341 और 354 के तहत अपराध के लिए मामला दर्ज किया है।

    जमानत की अर्जी जब सत्र न्यायालय के समक्ष आई तो आरोपी की ओर से पेश वकील पी. हरि और सुषमा एम ने तर्क दिया कि यह एक झूठा मामला है और आरोपी के खिलाफ उसके कुछ दुश्मनों द्वारा उसके खिलाफ प्रतिशोध लेने के लिए गढ़ा गया है। यह भी तर्क दिया गया कि घटना की कथित घटना के लगभग 6 महीने बाद मामला दर्ज किया गया था और देरी का कारण अभियोजन पक्ष द्वारा समझाया जाना चाहिए।

    शिकायतकर्ता द्वारा अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर प्रकाशित तस्वीरें पेश करते हुए, उन्होंने तर्क दिया कि शिकायतकर्ता अपने प्रेमी के साथ घटना स्थल पर थी और कथित घटना के समय कई लोग मौजूद थे और आरोपी के खिलाफ ऐसी शिकायत किसी ने भी नहीं उठाया।

    लोक अभियोजक ने आरोपी को जमानत देने का विरोध करते हुए कहा कि आरोपी के खिलाफ पहले भी इसी तरह का यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज किया गया था।

    कोर्ट ने कहा कि यह एक सुस्थापित सिद्धांत है कि जब एफआईआर दर्ज करने में लंबी देरी होती है, तो देरी का कारण ठीक से बताया जाना चाहिए।

    केस टाइटल: सिविक चंद्रन@सी.वी.कुट्टन बनाम केरल राज्य



    Next Story