भले ही आरोपी को गिरफ्तार न किया गया हो और केवल पुलिस द्वारा पूछताछ की गई हो, तब भी साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 लागू होती है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

28 Nov 2022 7:01 AM GMT

  • Allahabad High Court

    Allahabad High Court

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि भले ही आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया गया हो, लेकिन पुलिस पूछताछ के दौरान आरोपी से मिली जानकारी के अनुसार यदि एक शव बरामद किया जाता है, तो यह साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत स्वीकार्य होगा।

    जस्टिस अरविंद कुमार मिश्रा- I और जस्टिस मयंक कुमार जैन की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 'संगम लाल बनाम उत्तर प्रदेश सरकार 2002 (44) एसीसी 288' के मामले में दिये गये फैसले पर भरोसा करते हुए यह बात कही।

    'संगम लाल मामले (सुप्रा)' में, हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने कहा था कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 को आकृष्ट करने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि अभियुक्त को गिरफ्तार किया ही जाना चाहिए और यह पर्याप्त है कि वह एक पुलिस अधिकारी के हाथ आ गया है या किसी प्रकार की निगरानी या प्रतिबंध के अधीन है।

    इसके साथ, कोर्ट ने अपीलकर्ता/आरोपी (विद्या देवी) की दोषसिद्धि को बरकरार रखा, जिसने वर्ष 1984 में अपने बेटे (मृतका के पति) और पति के साथ मिलकर अपनी बहू की हत्या कर दी थी। यह देखते हुए कि वह वर्तमान में जमानत पर है, कोर्ट ने उसके निजी बॉण्ड और मुचलके रद्द कर दिए तथा आदेश दिया कि उसे (आरोपी को) आजीवन कारावास की बची हुई सजा काटने के लिए जेल भेजा जाये।

    मामला संक्षेप में

    शिकायतकर्ता की पुत्री आशा देवी (मृतका) का विवाह राम कृपाल से हुआ था। उसका पति व ससुराल वाले उस पर आरोप लगाते रहते थे और दहेज के लिए प्रताड़ित करते थे। शिकायतकर्ता ने अपनी दूसरी बेटी की शादी राम कृपाल से करने का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया, इसलिए उसकी बेटी के पति और ससुराल वालों ने 23 अगस्त, 1983 को मृतका की हत्या कर दी तथा उसका शव गायब कर दिया।

    शिकायतकर्ता द्वारा लिखित रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद, पुलिस शिकायतकर्ता एवं अन्य लोगों के साथ अपीलकर्ता के घर पहुंची। वर्तमान अपीलकर्ता विद्या देवी से पूछताछ के दौरान, उसने अपराध के तरीके का खुलासा किया कि एक रात पहले राम कृपाल (अपीलकर्ता का बेटा) और नेत्रपाल (उसका पति) ने आशा देवी के हाथ और पैर पकड़ लिये और उसका गला घोंटकर मार दिया और उसके बाद अन्य आरोपियों की मदद से उसका शव कुएं में फेंक दिया। अपीलकर्ता की निशानदेही पर कुएं से आशा देवी की लाश बरामद हुई। फरियादी ने शव की शिनाख्त अपनी बेटी के रूप में की।

    दोनों पक्षों को सुनकर और मामले के साक्ष्य, तथ्यों और परिस्थितियों का मूल्यांकन करने के बाद, ट्रायल कोर्ट ने उन्हें आईपीसी की धारा 302/34 और 201 के तहत दोषी पाया और मृतका की हत्या के लिए अपीलकर्ताओं को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

    इसके बाद, उन्होंने हाईकोर्ट के समक्ष अपनी सजा को चुनौती दी। मामले के लंबित रहने के दौरान, अभियुक्त विद्या देवी के पुत्र और पति की मृत्यु हो गई थी और इसलिए, उनके खिलाफ कार्यवाही समाप्त हो गई थी और अब केवल अभियुक्त विद्या देवी के खिलाफ अपील की सुनवाई अदालत के समक्ष हुई थी।

    हाईकोर्ट के समक्ष यह दलील दी गयी थी कि चूंकि अपीलकर्ता विद्या देवी को अभियुक्त के रूप में प्रस्तुत नहीं किया गया था और इस तथ्य के बारे में कथित बयान देने के समय तक उन्हें हिरासत में नहीं लिया गया था कि उन्होंने अन्य सह-अभियुक्तों के साथ मृतका आशा देवी का शव अपने घर के पास के कुएं में फेंक दिया था, इसलिए मृतका आशा देवी के शव की बरामदगी से संबंधित जानकारी को साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत प्रदान की गई जानकारी नहीं माना जा सकता है।

    हाईकोर्ट की टिप्पणियां

    शुरुआत में, कोर्ट ने संज्ञान लिया कि अभियोजन पक्ष का मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित था क्योंकि ऐसा कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं था जो यह बता सके कि अपीलकर्ता ने आशा देवी की हत्या की थी। इसलिए, कोर्ट ने निष्कर्ष निकालने के लिए मामले की परिस्थितियों की पड़ताल की कि अपीलकर्ता को अपराध को साबित करने वाली घटनाओं की एक श्रृंखला पूरी थी या नहीं।

    कोर्ट ने कहा कि अभियोजन मृतका की हत्या के पीछे के मकसद को स्थापित कर सका है क्योंकि यह नोट किया गया कि (सभी) अपीलकर्ता मृतका आशा देवी से खुश नहीं थे और वे अपने बेटे की दोबारा शादी करना चाहते थे और यही आशा देवी को खत्म करने का मकसद था ।

    इस मामले में चिकित्सा साक्ष्य के संबंध में कोर्ट ने कहा कि चिकित्सा साक्ष्य अभियोजन पक्ष के मामले के साथ काफी संगत था और इस पर अविश्वास करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री उपलब्ध नहीं थी।

    महत्वपूर्ण रूप से, कोर्ट ने अभियोजन पक्ष के गवाह संख्या-तीन (पीडब्ल्यू 3) के साक्ष्य को ध्यान में रखा, क्योंकि यह घटनाओं की श्रृंखला से जुड़ा था, क्योंकि उसने अपीलकर्ता विद्या देवी को अन्य सह-अभियुक्तों के साथ मृतक आशा देवी के शव को एक बोरे में ले जाते हुए देखा था, जिसे बाद में पास में एक कुएं में फेंक दिया गया था, ताकि साक्ष्य मिटा दिये जाएं।

    अभियुक्त/अपीलकर्ता के बचाव के लिए दी गयी दलीलों के बारे में कोर्ट ने कहा कि यह आवश्यक नहीं है कि किसी अभियुक्त को उसके बयान से पहले औपचारिक रूप से गिरफ्तार किया जाये, ताकि आपत्तिजनक सामग्री का पता चले और उसे भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत स्वीकार्य बनाया जाए।

    कोर्ट ने कहा,

    "...चूंकि अपीलकर्ता, विद्या देवी से जांच अधिकारी ने पूछताछ की थी और इसके परिणामस्वरूप उसने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर अपराध करने के तरीके के बारे में बताया और कहा कि उसकी निशानदेही पर मृतका का शव बरामद किया गया था तथा बाद में मृतका को उसके पिता/शिकायतकर्ता पी.डब्लू.1 द्वारा शिनाख्त की गयी थी... इसलिए, अपीलकर्ता विद्या देवी के संकेत पर मृतक आशा देवी के शव की बरामदगी साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत स्वीकार्य है।"

    इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि अपीलकर्ता विद्या देवी और अन्य सह-अभियुक्तों ने कोई ठोस स्पष्टीकरण नहीं दिया कि मृतका आशा देवी की हत्या उन्होंने नहीं की है और इस प्रकार, अपीलकर्ता साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 106 के तहत अपने बोझ का निर्वहन करने में विफल रही ।

    परिणामस्वरूप, परिस्थितियों की श्रृंखला पूर्ण होने का पता चलने के बाद ट्रायल कोर्ट की राय को बरकरार रखते हुए अपील खारिज कर दी गई।

    केस टाइटल - विद्या देवी व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश सरकार [आपराधिक अपील संख्या – 3333/1984]

    केस साइटेशन: 2022 लाइवलॉ (इलाहाबाद) 506

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