- Home
- /
- मुख्य सुर्खियां
- /
- चेक बाउंस के अपराध में...
चेक बाउंस के अपराध में दोषी पाए गए मृत व्यक्ति के वारिसों को दोष सिद्धि को चुनौती देने का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 के तहत दोषी ठहराए जा चुके मृतक व्यक्ति के कानूनी उत्तराधिकारी को यह साबित करने के लिए अपराध सिद्धि को चुनौती देने का अधिकार है कि संबंधित व्यक्ति निर्दोष था।
न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने एम अब्बास हाजी बनाम टी एन चैनाकेशव मामले में मृतक की ओर से दायर मुकदमे को जारी रखने को लेकर कानूनी उत्तराधिकारी का अनुरोध स्वीकार करते हुए कहा,
" ऐसे मामलों में कानूनी उत्तराधिकारी न जुर्माना देने के लिए और न ही सजा भुगतने के लिए बाध्य है। हालांकि, उसे अपने पूर्ववर्ती की दोषसिद्धि के खिलाफ याचिका दायर करने का अधिकार है, ताकि उसे निर्दोष साबित किया जाए। इसलिए हमने कानूनी उत्तराधिकारी की याचिका स्वीकार की है।"
इस मामले में, निचली अदालत ने इस आधार पर शिकायत खारिज कर दी थी कि हैंडराइटिंग एक्सपर्ट का मानना था कि चेक पर किए गए हस्ताक्षर आरोपी के नहीं थे। शिकायतकर्ता ने हाईकोर्ट में अपील दायर की थी, जिसकी सुनवाई के बाद उसमें आरोपी को निम्न आधार पर दोषी ठहराया था: -
(1) आरोपी ने गवाही कक्ष में आकर कभी यह दावा नहीं किया कि उसने चेक पर हस्ताक्षर नहीं किए थे। (2) हैंडराइटिंग एक्सपर्ट ने केवल मंतव्य दिया था, कोई निष्कर्ष नहीं, (3) आरोपी यह साबित करने में असफल रहा कि उसने शिकायतकर्ता की ओर से भेजे गए नोटिस का जवाब भेजा था, क्योंकि तथाकथित जवाब और न इसकी रसीद साक्ष्य के तौर पर रिकॉर्ड में नहीं है।
इस एक्ट की धारा 138 के तहत मुकदमा अर्ध आपराधिक मुकदमा
उच्चतम न्यायालय में यह दलील दी गई थी कि हाईकोर्ट ने रिहाई आदेश को खारिज करके अपनी सीमा का अतिक्रमण किया है, जिसके लिए आपराधिक मामलों में अपीलीय अदालत बाध्य हैं। बेंच ने कहा,
"एक्ट की धारा 138 के तहत मुकदमा अर्द्ध आपराधिक हैं। जो सिद्धांत आपराधिक मामलों में रिहाई के लिए लागू होता है वह इस मामले में लागू नहीं होगा।"
हाईकोर्ट के फैसले और दोषसिद्धि को सही ठहराते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि
इस मामले में हाईकोर्ट ने जो तीन कारण दिए हैं उसके अलावा हमारा मानना है कि मूल अपीलकर्ता यह स्पष्ट नहीं कर सका कि उसके चेकबुक से निकला हुआ चेक आखिर शिकायतकर्ता के पास कैसे पहुंचा। मूल अपीलकर्ता का दावा था कि शिकायतकर्ता उसके कार्यालय आता जाता था और उसी दौरान उसने चेक उड़ा लिया था, लेकिन शिकायतकर्ता ने इस आरोप को खारिज कर दिया है। हमारा मानना है कि शिकायतकर्ता के खिलाफ आरोप को साबित करने का जिम्मा मूल अपीलकर्ता का है। हमारे विचार से नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 के तहत मूल अपीलकर्ता को हाईकोर्ट द्वारा दोषी ठहराया जाना उचित है।