SCAORA ने मुख्य न्यायाधीश से जुलाई से खुली अदालत में सुनवाई शुरू करने का आग्रह किया

LiveLaw News Network

2 Jun 2020 7:31 AM GMT

  •  SCAORA ने मुख्य न्यायाधीश से जुलाई से खुली अदालत में सुनवाई शुरू करने का आग्रह किया

    SCAORA Urges CJI To Restore Physical Court Hearings From July

     सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) ने देश के मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे को एक पत्र लिखकर आग्रह किया है कि जुलाई, 2020 से अदालत में भौतिक रूप से खुली सुनवाई के काम को बहाल किया जाए।

    पत्र पर प्रकाश डाला गया है कि ओपन कोर्ट की सुनवाई भारतीय कानूनी प्रणाली की "रीढ़" है और वर्चुअल कोर्ट भौतिक पीठों का विकल्प नहीं हैं।इसमें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से ऑनलाइन फाइलिंग और मामलों की सुनवाई में "व्यावहारिक कठिनाइयों" की ओर ध्यान आकर्षित किया गया है।

    यह कहा गया है कि वकीलों / वादियों को अक्सर एक आभासी सेटिंग में अपने मामले का प्रभावी ढंग से उल्लेख करने के लिए विवश किया जाता है,जबकि तकनीकी कमी, अपर्याप्त सरंचना उपलब्धता, वित्तीय बाधाओं आदि जैसे कारक इसे मुश्किल बनाते हैं।

    इस प्रकार, SCAORA अध्यक्ष, शिवाजी एम जाधव ने, हजारों वकीलों की ओर से गर्मियों की छुट्टियों के बाद जुलाई 2020 में अदालत को फिर से खोलने और भौतिक न्यायालय की सुनवाई फिर से शुरू करने के लिए सीजेआई से आग्रह किया है।

    उन्होंने कहा कि अनलॉक 1.0 की घोषणा और चरणबद्ध तरीके से सामान्य स्थिति को फिर से शुरू करने के लिए किए जाने वाले उपायों के प्रकाश में ये जरूरी है।

    इस संबंध में यह प्रस्तुत किया गया है कि न्यायालय सभी संबंधितों की सुरक्षा के लिए शर्तों को लागू करने पर विचार कर सकता है, जैसे कि मामलों के लिए सीमित संख्या में वकीलों को अनुमति देना, प्रवेश के दरवाजे, इत्यादि।

    पत्र में कहा गया है कि लगभग 95% वकील वर्चुअल कोर्ट की सुनवाई के साथ सहज नहीं हैं क्योंकि वे कंप्यूटर के उपयोग पर ज्ञान से अच्छी तरह से सुसज्जित नहीं हैं।

    "सामान्य प्रतिक्रिया से ऐसा लगता है कि वकील अपने मामलों को आभासी माध्यम में प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने में असमर्थ हैं और वकीलों के लिए इस तरह की आभासी सुनवाई के लिए सहमति के लिए ये परेशानी एक प्रमुख निवारक के रूप में कार्य कर रही है," पत्र में कहा गया है।

    आगे पत्र में ई-कोर्ट के साथ निम्नलिखित व्यावहारिक कठिनाइयों को इंगित किया गया है:

    • कई पक्षकारों और वकीलों के उपस्थित होने के मामले में, सभी वकीलों को बोलने का मौका नहीं दिया जाता है और कभी-कभी, उनके माइक को समन्वयक द्वारा म्यूट पर डाल दिया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप, उनकी अनुपस्थिति में उनके मामलों को सुना जाता है।

    • ऑडियो और वीडियो गुणवत्ता के साथ समस्याएं हैं, जिसके परिणामस्वरूप वकील अपनी दलीलों को प्रभावी ढंग से सामने नहीं ला पा रहे हैं।

    • अभी भी कई वकील हैं जो दिल्ली / NCR के बाहर हैं और अपने संबंधित गृहनगर में हैं, उनकी फाइलों तक पहुंच नहीं है और इस तरह वर्चुअल कोर्ट की सुनवाई में प्रभावी रूप से भाग लेने में असमर्थ हैं।

    • कई बार, ई-फाइलिंग के माध्यम से दायर सभी दस्तावेज पीठ के पास उपलब्ध नहीं होते हैं।

    • वकील अपने मामलों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने में सक्षम नहीं हैं जैसे निर्णय पढ़ना, अधिनियमों से प्रावधान आदि।

    • मामलों को दर्ज करने के बाद, मामलों की जांच करने के लिए रजिस्ट्री को समय लगता है। वकीलों को रजिस्ट्री अधिकारियों को कई बार सूचना देने और उनका पालन करने की आवश्यकता होती है। त्रुटि दूर करने के तंत्र और साथ ही साथ मामलों का पंजीकरण समस्याग्रस्त क्षेत्र हैं जिन पर तत्काल पुनर्विचार की आवश्यकता है।

    एसोसिएशन इस दृष्टिकोण से है कि लॉकडाउन अवधि के दौरान अदालतों के काम ना करने के कारण कई वकीलों द्वारा सामना की जा रही वित्तीय समस्याओं को तब तक संशोधित नहीं किया जा सकता है जब तक कि अदालतों के सामान्य कामकाज को फिर से शुरू नहीं किया जाता है।

    इस पत्र के माध्यम से, एसोसिएशन ने महामारी के इस कठिन समय में न्याय तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय कदम उठाने के लिए, न्यायालय का आभार भी व्यक्त किया।

    पत्र में कहा गया है कि

    "मैं नए ई-फाइलिंग मॉड्यूल सॉफ्टवेयर के प्रावधान के लिए कृतज्ञता व्यक्त करने का यह अवसर भी लेना चाहूंगा। हम वास्तव में वकीलों के लिए ऐसी व्यक्तिगत सेवाएं प्राप्त करने के लिए आभारी हैं, जो उन्हें अब और अधिक प्रभावी तरीके से अपने समय का उपयोग करने में सक्षम करेगा।"

    इस साल की शुरुआत में, 28 अप्रैल को, बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने सीजेआई से ई-फाइलिंग और वर्चुअल सुनवाई की प्रणाली को लॉकडाउन के बाद को जारी नहीं रखने का अनुरोध किया था। काउंसिल ने कहा था कि अक्सर उम्र के अंतर के अनुसार व्यक्तियों के तकनीकी ज्ञान में अंतर होता है, और अक्सर शिक्षा के तौर तरीके और संसाधनों व प्रौद्योगिकी में अंतर होता है।

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