सुप्रीम कोर्ट ने हथनी को रिहा करने की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका वापस लेने की अनुमति के साथ खारिज की
LiveLaw News Network
10 Jan 2020 10:42 AM GMT

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को हथनी लक्ष्मी को उसके पूर्व महावत को वापस सौंपने से इनकार कर दिया और महावत द्वारा हथनी को वापस पाने के लिए दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर उचित राहत के लिए हाईकोर्ट से संपर्क करने की स्वतंत्रता देने के साथ याचिका को वापस लेने की अनुमति देते हुए याचिका का निपटान कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वर्तमान में याचिकाकर्ता महावत का हथनी पर स्वामित्व का दावा किसी भी कानूनी दस्तावेज से साबित नहीं होता है।
हालांकि, अदालत ने हाईकोर्ट से उचित राहत के लिए संपर्क करने की स्वतंत्रता के साथ इस याचिका को वापस लेने की अनुमति दी।
यह था मामला
एक महावत जो अपनी हथनी के साथ लंबे समय के भावनात्मक संबंध का दावा करता है, उसने सुप्रीम कोर्ट में 'बंदी प्रत्यक्षीकरण' याचिका दायर करके अपनी हथनी को छोड़ने की मांग की थी।
महावत की इस हथनी को वन अधिकारी ले गए थे और उसे पुनर्वास केंद्र में रखा था। दिल्ली की हथनी 'लक्ष्मी' को सितंबर माह में वन अधिकारियों ने यमुना बैंक के मैदानों से हरियाणा के एक शिविर में भेजा था।
इस कार्रवाई को चुनौती देते हुए हथनी के महावत सद्दाम ने सुप्रीम कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका दायर की थी। याचिका के अनुसार, सद्दाम और उसकी हथनी की दस साल से अधिक की बॉन्डिंग है।
याचिका में कहा, "उनकी दोस्ती इस हद तक बढ़ गई कि 'लक्ष्मी' ने कुछ समय बाद पूरी तरह से भोजन लेने से इनकार कर दिया। वह याचिकाकर्ता के अलावा किसी और से दवा नहीं लेती। लक्ष्मी 2 से 3 किमी की दूरी से भी याचिकाकर्ता की गंध को महसूस करके उसकी उपस्थिति को महसूस कर सकती है और याचिकाकर्ता ने अपने परिवार के सदस्य की तरह उसके साथ संवाद करता है और कोई और लक्ष्मी को याचिकाकर्ता से बेहतर नहीं जानता।
याचिकाकर्ता के परिवार के सदस्य भी लक्ष्मी से प्यार करते हैं और वे लगभग एक संयुक्त परिवार की तरह रह रहे थे।" सद्दाम को दिल्ली पुलिस ने कथित तौर पर वन अधिकारियों को हथनी को शिविर में ले जाने से रोकने के लिए गिरफ्तार किया था और वह 68 दिनों तक हिरासत में था।
उसने कहा कि वह बिहार में एक गरीबी से पीड़ित परिवार से है और अपनी आजीविका के लिए हथनी पर निर्भर है। 25 नवंबर को हिरासत से रिहा होने के बाद सद्दाम ने याचिका दायर करते हुए कहा कि वह "लक्ष्मी को न्याय दिलाना चाहता है, हालांकि वह मालिक नहीं हैं, लेकिन एक निकट, प्रिय और करीबी दोस्त के रूप में और एक महावत की क्षमता में हैं।"
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि अधिकारियों ने हथनी को ले जाते समय उसे यातना दी और उसके साथ क्रूरता का व्यवहार किया गया। याचिकाकर्ता ने जल्लीकट्टू मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2014 के फैसले का हवाला दिया, जहां यह माना गया था कि यहां तक कि जानवरों को भी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और प्रतिष्ठा का अधिकार है।