‘सेटलमेंट की कोशिशों के बाद पति के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया, पत्नी को दोष नहीं दिया जा सकता’: बॉम्बे हाईकोर्ट ने तलाकशुदा महिला को भरण-पोषण देने के आदेश को बरकरार रखा
Manisha Khatri
29 Jan 2023 1:45 PM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट ने उस महिला को भरण-पोषण देने के आदेश को बरकरार रखा है, जिसके पति की तलाक की याचिका को फैमिली कोर्ट ने परित्याग और क्रूरता के आधार पर स्वीकार कर लिया था।
इस तर्क से निपटते हुए कि तलाक की डिक्री से पहले उसने पर्याप्त कारण के बिना पति के साथ रहने से इनकार कर दिया था और इस तरह वह भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है, अदालत ने कहा कि वह अपने वैवाहिक घर वापस गई थी, लेकिन संभवतः उसने अपने पति के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं देखा और उसने फिर से वैवाहिक घर छोड़ दिया, तो यह नहीं कहा जा सकता है कि उसने सीआरपीसी की धारा 125(4) के तहत पर्याप्त कारणों के बिना सहवास से इनकार कर दिया था।
नागपुर खंडपीठ के जस्टिस जीए सनप ने फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि अगर पत्नी की पति के साथ सहवास स्थापित करने की बिल्कुल भी इच्छा नहीं होती, तो वह उसकी साथ रहने के लिए बिल्कुल भी सहमत नहीं होती।
कोर्ट ने कहा,
‘‘दाम्पत्य अधिकारों की बहाली के लिए दायर की गई याचिका को वापस लेने का उपयोग याचिकाकर्ता नंबर 1(पत्नी) के खिलाफ उसको भरण-पोषण देने से इनकार करने के लिए नहीं किया जा सकता है। उपरोक्त तथ्यों की पृष्ठभूमि में एकमात्र अनुमान संभव है कि इन सभी प्रयासों और समझौते के बाद, हो सकता है कि उसने प्रतिवादी और उसकी मां के व्यवहार और रवैये में कोई बदलाव नहीं देखा हो और इसलिए उसने प्रतिवादी/पति, के साथ जुड़ने और उसके साथ रहने की सभी उम्मीदें खो दी होंगी।’’
हाईकोर्ट ने कहा कि पति पर कोई अन्य आश्रित नहीं है और वह प्रतिमाह 45,000 रुपये से 46,000 रुपये का वेतन पा रहा है और अच्छी तरह से योग्य है।
अदालत ने कहा,‘‘याचिकाकर्ता नंबर 1 (पत्नी) भी योग्य महिला है। उसके पास फार्मेसी में डिप्लोमा है। उसकी पृष्ठभूमि और सामाजिक स्थिति को देखते हुए, उसकी मानक जीवन शैली होनी चाहिए। वह अपनी योग्यता और प्रतिवादी (पति) की स्थिति के अनुसार जीने की हकदार है। निचली अदालत के न्यायाधीश ने भरण-पोषण की मात्रा निर्धारित करने में इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखा है। इस पृष्ठभूमि में, किसी भी मानक को लागू करने और विशेष रूप से आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि को देखते हुए मासिक भरण-पोषण के तौर पर 7,000 रुपये प्रति माह देने का आदेश उचित, सही और तर्कसंगत है।’’
कोर्ट ने कहा कि उसके पति ने उसे और उसकी बेटी को बनाए रखने की अपनी जिम्मेदारी और खुद को बनाए रखने में उनकी असमर्थता के संबंध में दी गई दलीलों का खंडन नहीं किया।
यह भी कहा कि,
‘‘प्रतिवादी की मुख्य गवाही के हलफनामे के अवलोकन से पता चलता है कि उसने याचिकाकर्ता नंबर 1 और याचिकाकर्ता नंबर 2 द्वारा किए गए भरण-पोषण के दावे से इनकार करने के लिए अपने खंडन में कोई सबूत नहीं जोड़ा है। न ही उसने अपनी मासिक आय और याचिकाकर्ता नंबर 1 की आय के स्रोत के बारे में कोई सबूत दिया। मेरे विचार से, इसलिए यह दस्तावेज बिना दलील के ही एक सबूत होगा।’’
पत्नी ने दावा किया कि शादी के एक-दो महीने बाद ही उसका पति और सास उससे झगड़ने लगे और पति ने कई बार मारपीट भी की। इसके अलावा, उसका पति और उसकी मां उसे दहेज नहीं लाने के लिए ताने मारते थे और बेटी के जन्म से नाखुश थे। उसने आगे कहा कि उसके पति ने उसे उसके माता-पिता के घर छोड़ दिया और सहवास स्थापित करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। उसने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए एक याचिका दायर की और मध्यस्थता के माध्यम से समझौता किया गया। हालांकि, उसने कहा, पति और उसकी मां ने उसके साथ फिर से बुरा व्यवहार करके उसे बाहर निकाल दिया और उसने अपनी वैवाहिक अधिकारों की बहाली की मांग वाली याचिका वापस ले ली।
रेलवे में कार्यरत पति ने दावा किया कि शादी के कुछ महीनों के बाद ही उसकी पत्नी ने घर का काम करना बंद कर दिया था और उससे और उसकी मां से झगड़ा करती थी। वह उसे बताए बिना अपने माता-पिता के घर चली गई और जब वह उसे लेने गया तो उसने ठीक से जवाब नहीं दिया। समझौते के बाद भी, उसने अपना व्यवहार नहीं बदला और उसे और उसकी मां को मानसिक प्रताड़ना और क्रूरता दी और उसे अपनी बेटी की कंपनी से वंचित कर दिया।
फैमिली कोर्ट ने पति के मामले में परित्याग और क्रूरता के आधार पर तलाक मंजूर कर लिया। वहीं पत्नी और अवयस्क पुत्री को 7-7 हजार रुपये प्रतिमाह भरण-पोषण के तौर पर देने का निर्देश दिया। इसलिए,उसने अपनी पत्नी के भरण-पोषण के आदेश को चुनौती देने वाली रिवीजन याचिका दायर करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
पति ने तर्क दिया कि उसकी पत्नी भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है क्योंकि तलाक परित्याग और क्रूरता के आधार पर दिया गया है। अदालत को यह भी बताया गया कि वह एक पंजीकृत फार्मासिस्ट है और नागपुर में एक दवा कंपनी के साथ काम कर रही है।
अदालत ने रोहताश सिंह बनाम रामेंद्री मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा किया और निष्कर्ष निकाला कि परित्याग और क्रूरता के आधार पर तलाक पति को अपनी पत्नी को भरण-पोषण का भुगतान करने के कर्तव्य से मुक्त नहीं करेगा। ‘‘... केवल परित्याग और क्रूरता के आधार पर तलाक का आदेश दिए जाने के कारण, पति सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पत्नी को भरण-पोषण का भुगतान करने के अपने कर्तव्य से मुक्त नहीं होगा।’’
अदालत ने पति के साक्ष्य से पाया कि वह अपनी मां के नियंत्रण में था। उसने अपने हलफनामे में स्वीकार किया कि वह अपनी पत्नी को खुद उसके माता-पिता के घर छोड़ने गया था। उसने आगे कहा कि उसकी पत्नी ने उसे सहवास फिर से शुरू करने के लिए नोटिस जारी किया, लेकिन उसने उसे वापस लाने के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किया। इस प्रकार, अदालत ने उसकी इस दलील को खारिज कर दिया कि उसकी पत्नी भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है क्योंकि उसने पर्याप्त कारण के बिना उसके साथ रहने से इनकार कर दिया था।
अदालत ने पति की याचिका में दी गई तलाक की डिक्री पर कोई टिप्पणी नहीं की क्योंकि यह एक अपील में चुनौती के अधीन है। कोर्ट ने कहा कि पुनर्विवाह नहीं करने वाली पत्नी तलाकशुदा महिला के रूप में भरण-पोषण पाने की हकदार है।
अदालत ने कहा कि अपने दावे को साबित करने के लिए पत्नी द्वारा पेश किए गए सबूतों को चुनौती नहीं दी गई है। अदालत ने कहा कि उसके दावे को केवल इस आधार पर नकारा नहीं जा सकता है कि उसके पास फार्मेसी में डिप्लोमा है।
इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि उनकी बेटी अभी 10 साल से अधिक उम्र की हो चुकी है और पढ़ाई कर रही है, लेकिन पति ने उसके लिए कोई भरण-पोषण का प्रावधान नहीं किया है। अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि पत्नी ने साबित कर दिया है कि उसके पास खुद को और अपनी बेटी को बनाए रखने के लिए आय का कोई स्रोत नहीं है और पति पर्याप्त साधन होने के बावजूद उन्हें बनाए रखने में विफल रहा है।
एडवोकेट एसएम भांगड़े ने पति का प्रतिनिधित्व किया जबकि एडवोकेट पीएस तिवारी ने पत्नी का प्रतिनिधित्व किया।
केस संख्या- क्रिमनल रिवीजन नंबर 216/2019
केस टाइटल-अमित पुत्र सुरेश पाली बनाम रीता पुत्री रामावतार पाल
जजमेंट पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें