आरटीआई संशोधन पश्चगामी, यह कानून के अमल को प्रभावित करेगा : जस्टिस लोकुर

LiveLaw News Network

21 Oct 2019 10:02 AM GMT

  • आरटीआई संशोधन पश्चगामी, यह कानून के अमल को प्रभावित करेगा : जस्टिस लोकुर

    सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मदन बी. लोकुर ने कहा है कि सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून, 2005 में हाल ही में किये गये संशोधन प्रतिगामी हैं और इसका दुष्प्रभाव कानून के अमल पर पड़ेगा।

    न्यायमूर्ति लोकुर सरकारी कामकाज में पारदर्शिता लाने और जिम्मेदारी तय करने के लिए कार्य कर रहे नागरिक समूह 'सतर्क नागरिक संगठन'(एसएनएस) की ओर से 16 अक्टूबर को आयोजित सार्वजनिक सभा को सम्बोधित कर रहे थे। यह बैठक आरटीआई एक्ट के 14 साल पूरे होने के अवसर पर आयोजित की गयी थी।

    संसद ने जुलाई 2019 में आरटीआई एक्ट को संशोधित किया था। संशोधन के जरिये केंद्र सरकार को केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) तथा राज्य सूचना आयोगों के प्रमुखों एवं अन्य सूचना आयुक्तों के कार्यकाल, वेतन, भत्ते एवं सेवा की अन्य शर्तें तय करने के लिए अधिकृत किया गया है। संशोधन को एक अगस्त 2019 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल जाने के दो माह बाद भी केंद्र सरकार ने इसके नियमों को लागू नहीं किया है।

    न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा कि जब तक नियम बनेंगे तब तक आरटीआई कानून बुरी तरह प्रभावित होता रहेगा। उन्होंने कहा कि आरटीआई कानून ने महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त करने तथा सरकार को जिम्मेदार ठहराने के लिए आम आदमी को अधिकार दिये हैं तथा सूचना आयोग इस कानून के अमल के लिए महत्वपूर्ण हैं।

    उन्होंने व्यापक पारदर्शिता सुनिश्चित करने तथा जनता का भरोसा जीतने के लिए आयोग की कार्यवाही की वीडियो रिकॉर्डिंग करने और उसे प्रसारित किये किये जाने की सलाह दी। उन्होंने सार्वजनिक अधिकारियों को सख्त संदेश देने के लिए कानून के उल्लंघन करने वाले प्राधिकारों पर जुर्माना लगाने की भी सलाह दी।

    उन्होंने 'रिपोर्ट कार्ड ऑफ इंफॉर्मेशन कमीशन्स इन इंडिया 2018-19' नाम से प्रकाशित एक रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्षों पर भी विमर्श किया। एसएनएस द्वारा प्रकाशित यह रिपोर्ट आरटीआई अधिनियम के तहत गठित सभी 29 सूचना आयोगों के कामकाज की व्याख्या करती है, जिसमें आयोगों में रिक्तियों, अपील/शिकायतें लंबित होने, मामलों के निपटारे में आयोगों द्वारा लिये गये समय तथा लगाये गये जुर्माने की समीक्षा की गयी है।

    रिपोर्ट पर विस्तार से चर्चा करते हुए एसएनएस की अंजलि भारद्वाज ने विस्तृत ब्योरा दिया कि किस प्रकार पूरे देश में सरकारें सूचना आयुक्तों की नियुक्तियां लटकाकर आरटीआई एक्ट को कमजोर करने की कोशिश कर रही हैं।

    उन्होंने बताया कि दिसम्बर 2018 में केंद्रीय सूचना आयोग निर्धारित आठ सूचना आयुक्तों में से महज तीन के साथ काम कर रहा था। इस दौरान मुख्य आयुक्त का पद भी खाली था। उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया कि अब भी सीआईसी में चार रिक्तियां मौजूद हैं, जबकि लंबित मामलों की संख्या हर माह बढ़ती जा रही है। फिलहाल 33 हजार से अधिक मामले लंबित हैं।

    उन्होंने कहा कि त्रिपुरा का सूचना आयोग मई 2019 से पूरी तरह निष्क्रिय है, जबकि आंध्र प्रदेश राज्य सूचना आयोग में (मई 2017 से अक्टूबर 2018 तक) 17 महीने कामकाज नहीं हुआ। इतना ही नहीं, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और राजस्थान के सूचना आयोग मुख्य आयुक्त के बिना काम कर रहे हैं।

    मुख्य सूचना आयुक्त सुधीर भार्गव ने भी सार्वजनिक सभा को सम्बोधित किया। आरटीआई एक्ट ने लोगों को जिस तरह से सशक्त बनाया है, उस पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि आयोग यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि आम आदमी, खासकर हाशिये पर जीवन बसर कर रहे लोगों को जानकारियां प्राप्त हों। हालांकि उन्होंने मुकदमों के निपटारों में होने वाली देरी को लेकर चिंता जतायी और कहा कि इसके कारण शिकायतों और अपीलों का बैकलॉग बढ़ता जा रहा है।

    बैठक में उपस्थित कई लोगों ने विभिन्न आयोगों के समक्ष लंबे समय से लंबित मुकदमों की शिकायतें कीं तथा अपने अनुभव साझा किये कि किस प्रकार वे अपनी अपीलों/शिकायतों के निपटारे के लिए लंबे समय से इंतजार कर रहे हैं।

    सूचना आयोगों के आदेशों पर अमल न किये जाने के मुद्दे भी इस अवसर पर उठाये गये। लोगों ने सूचित किया कि आयोग से प्रगतिवादी दिशानिर्देश प्राप्त होने के बावजूद सरकार अक्सर उन आदेशों पर अमल नहीं करती।

    असंगठित क्षेत्र के कामगारों के पंजीकृत संगठन जन जागरण शक्ति संगठन का प्रतिनिधित्व कर रहे आशीष रंजन ने आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हमले किये जाने और उनकी हत्याएं तक किये जाने का मामला भी उठाया। उन्होंने आरटीआई कार्यकर्ताओं - राजेन्द्र सिंह और धर्मेन्द्र यादव- की हत्या का जिक्र भी किया, जिन्हें भ्रष्टाचार उजागर करने के कारण मार डाला गया।

    बैठक में वकील प्रशांत भूषण, सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर और शबनम हाशमी तथा नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वीमेन की महासचिव एन्नी रजा भी शामिल थे।

    गौरतलब है कि केरल हाईकोर्ट ने पिछले माह संशोधन कानून की वैधानिकता को चुनौती देने वाली एक याचिका पर नोटिस जारी किये थे। याचिका में कहा गया था कि वेतन और भत्ते कार्यपालिका के नियंत्रण में रखे जाने के कारण आरटीआई ऑथरिटीज की स्वतंत्रता और स्वायत्तता समाप्त हो गयी है।

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