Begin typing your search above and press return to search.
मुख्य सुर्खियां

RTE-निजी स्कूलों में प्रवेश पर रोक लगाने के कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस, पढ़िए याचिका

LiveLaw News Network
21 Aug 2019 5:15 AM GMT
RTE-निजी स्कूलों में प्रवेश पर रोक लगाने के कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस, पढ़िए याचिका
x

सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर नोटिस जारी कर दिया है, जो कर्नाटक हाईकोर्ट के 31 मई को दिए गए एक फैसले के खिलाफ दायर की गई है। कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अगर किसी छात्र/छात्रा के इलाके के आस-पास कोई सरकारी या सहायता प्राप्त स्कूल स्थित है तो छात्र/छात्रा को शिक्षा के अधिकार यानि राईट टू एजुकेशन के तहत किसी निजी स्कूल में दाखिला पाने का अधिकार नहीं है।

हाईकोर्ट ने अपना यह फैसला उस याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया था, जिसमें कर्नाटक सरकार द्वारा किए गए संशोधनों को चुनौती दी गई थी। सरकार ने रूल 12 में एक नया प्रावधान शामिल कर दिया था, जिसके तहत अगर आसपास के इलाके में कोई सरकारी या सहायता प्राप्त स्कूल मौजूद है तो आरटीई एक्ट की धारा 12(1)(सी) के तहत दी गई बाध्यता या शर्त निजी स्कूल पर लागू नहीं होगी।

सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका यानि स्पेशल लीव पिटिशन आरटीई स्टूडेंट एंड पैरेंट्स एसोसिएशन ने दायर की है, जिसमें मुख्य तर्क यही दिया गया है कि सरकार द्वारा किए गए संशोधन से आरटीई का वह उद्देश्य धुमिल हो जाएगा, जिसके तहत छात्रों में वर्ग के आधार पर किए जाने वाले भेद को समाप्त करना है।

आरटीई अधिनियम का मुख्य उद्देश्य कक्षाओं को आर्थिक आधार से परे एकीकृत करके सामाजिक-आर्थिक न्याय प्राप्त करना है।

याचिका में कहा गया है कि सरकारी व निजी स्कूलों के अस्तित्व ने दो स्तर बना दिए हैं, जिनमें शिक्षा के सिस्टम को अलग-अलग कर दिया गया है, जहां पर अच्छी आर्थिक स्थिति वाले लोग अपने बच्चों को निजी स्कूल में भेजते है और वहां शिक्षा आमतौर पर अंग्रेजी भाषा में दी जाती है। वहीं कमजोर वर्ग के लोगों के पास कोई विकल्प नहीं है और ऐसे में वो अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में भेजते हैं, जहां अक्सर निर्देश मातृभाषा में ही दिए जाते हैं।

वकील गौतम भाटिया व राहुल नारायण द्वारा तैयार की गई इस याचिका में कहा गया है कि-''धारा 12(1)(सी) का उद्देश्य कक्षाओं को एकीकृत करके शैक्षणिक भेद की नीति की इस वास्तविक प्रणाली को तोड़ना था और कम उम्र से ही शैक्षणिक क्षेत्र में विविधता की गारंटी देकर सामाजिक न्याय प्राप्त करना था। सरकार द्वारा आसपास में स्कूल खोले गए है या नहीं इस सशर्त या आकस्मिक दायित्व से अलग है और इसीलिए, आरटीई अधिनियम के 25 प्रतिशत दायित्व में इस अधिनियम के दिल और आत्मा थे।''

याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोड़ा और जयना कोठारी सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए थे।

याचिका में यह भी कहा गया है कि धारा 12(1)(सी) के तहत निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत दाखिला देने का दायित्व न तो ''आकस्मिक है और न ही सशर्त''। ऐसा कुछ नहीं है कि आसपास सरकारी या सहायता प्राप्त स्कूल न होने पर ही उनको यह दाखिला देना है। याचिका में कहा गया है कि-

''आरटीई रूल्स में किया गया यह संशोधन-जो धारा 12(1)(सी) के तहत दिए गए दायित्व को नगण्य या खत्म कर रहा है, वह आरटीई एक्ट की शक्ति से है।''

याचिका में कहा गया कि-'' आरटीई अधिनियम की कल्पना की गई और अनिवार्य किया गया कि सार्वजनिक व निजी क्षेत्रों में संयुक्त सहयोग होगा। धारा 12(1)(सी) के तहत निजी स्कूलों का दायित्व इस बात का उदाहरण था कि जब बात सबसे कमजोर व समाज के पिछड़े लोगों को शिक्षित करने की हो तो निजी स्कूलों को शिक्षा के बोझ के इस एक हिस्से को साझा करने की आवश्यकता होने पर किस तरह इस सार्वजनिक/निजी साझेदारी को व्यवहार में लाया जाना चाहिए। ऐसे में 25 प्रतिशत की आवश्यकता कोई एक अस्थायी तौर पर नहीं की गई थी, जिसे उस समय खत्म कर दिया जाए,जब पड़ोस में एक सरकारी स्कूल बना दिया जाए।''

याचिकाकर्ता के अनुसार,कर्नाटक में किए गए संशोधन का आरटीई को राज्य में लागू करने पर एक नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। समाचार पत्रों में छपी खबरों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इस संशोधन के बाद आरटीई के तहत दाखिले के लिए दी जाने वाली अर्जियों में 92 प्रतिशत कमी आई है। इस फैसले ने व्यावहारिक तौर पर पू रे कानून को ही नकार दिया है।



Next Story