अगर मृतक विवाहित है तो उसके संरक्षित शुक्राणु पर केवल उसकी पत्नी का अधिकार है: कलकत्ता उच्च न्यायालय
Sparsh Upadhyay
20 Jan 2021 6:40 AM GMT
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने मंगलवार (19 जनवरी) को एक याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें याचिकाकर्ता (पिता) ने मृतक के साथ अपने पिता-पुत्र के रिश्ते के आधार पर, उसके संरक्षित शुक्राणु को प्राप्त करने की अनुमति मांगी थी (उसकी पत्नी की अनुमति के बिना)।
न्यायमूर्ति सब्यसाची भट्टाचार्य की पीठ ने फैसला सुनाया कि याचिकाकर्ता (पिता) के पास, केवल इसलिए कि वह मृतक का पिता है, इस तरह की अनुमति मांगने का कोई 'मौलिक अधिकार' नहीं है।
न्यायालय के समक्ष मामला
याचिकाकर्ता (मृतक के पिता) ने अदालत के समक्ष कहा कि उनका बेटा थैलेसीमिया का मरीज था और प्रतिवादी सं. 4 (मृतक की पत्नी) के साथ वैवाहिक जीवन जीते हुए उनकी मृत्यु हो गई।
अपने जीवनकाल के दौरान, मृतक ने अपने शुक्राणु को सेंट स्टीफन अस्पताल, तीस हजारी, नई दिल्ली में संग्रहीत किया था।
उनके निधन के बाद, उसके पिता (याचिकाकर्ता) ने शुक्राणु को उन्हे देने के लिए उक्त अस्पताल से संपर्क किया कि वह दावा किया वह मृतक के पिता हैं।
अस्पताल ने, हालांकि, कहा कि शुक्राणु का आगे उपयोग, जो कि दाता की पत्नी को गर्भावस्था प्रदान करने, किसी और को दान करने या त्यागने के लिए किया जा सकता है, रोगी की पत्नी की अनुमति (विवाह प्रमाण आवश्यक) के बाद ही तय किया जा सकता है।
इसके बाद, याचिकाकर्ता ने अपने दिवंगत बेटे की पत्नी से उक्त शुक्राणु को प्राप्त करने के लिए याचिकाकर्ता को-अनापत्ति जारी करने का आग्रह किया, हालांकि, उसने उक्त संचार का कोई जवाब नहीं दिया।
याचिकाकर्ता और मृतक के पिता-पुत्र के रिश्ते को आधार बनाते हुए, उसने अदालत के समक्ष मृतक की पत्नी की अनुमति न मिलने के बावजूद, शुक्राणु को प्राप्त करने के अपने अधिकार पर जोर दिया।
न्यायालय का अवलोकन
महत्वपूर्ण रूप से, अदालत ने टिप्पणी की,
"सेंट स्टीफन अस्पताल में संरक्षित शुक्राणु मृतक के थे और, चूंकि मृतक प्रतिवादी संख्या 4 के साथ वैवाहिक संबंध में था इसलिए उसके निधन के बाद, एकमात्र अन्य व्यक्ति, जिसका शुक्राणुओं पर पर कोई अधिकार है, वह उसकी पत्नी है।"