"जिम्मेदार पत्रकारिता में गैर-जिम्मेदार रिपोर्टिंग की कोई जगह नहीं", कलकत्ता हाईकोर्ट ने अपलोड आदेश के आधार पर मीडिया से अपनी रिपोर्ट सत्यापित करने को कहा

LiveLaw News Network

2 May 2020 5:45 AM GMT

  • जिम्मेदार पत्रकारिता में गैर-जिम्मेदार रिपोर्टिंग की कोई जगह नहीं,  कलकत्ता हाईकोर्ट ने अपलोड आदेश के आधार पर मीडिया से अपनी रिपोर्ट सत्यापित करने को कहा

    Calcutta High Court

    COVID-19 महामारी के खतरे से निपटने के लिए राज्य सरकार द्वारा किए गए प्रयासों से संबंधित एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट ने मीडिया को चेताया है कि वह अपने आपको ''गैर-जिम्मेदाराना रिपोर्टिंग'' से दूर रखे।

    यह टिप्पणी मुख्य न्यायाधीश थोटाथिल बी. राधाकृष्णन के नेतृत्व वाली दो सदस्यीय खंडपीठ ने की है। चूंकि राज्य सरकार ने इंगित किया था यह जनहित याचिका एक ''पब्लिसिटी ओरिएंटेड लिटिगेशन'' है, जिसका इस्तेमाल याचिकाकर्ता अपनी राजनीतिक पहचान बढ़ाने और सार्वजनिक कार्यक्षेत्र में अपनी लोकप्रियता को बढ़ाने के लिए कर रहा है।

    जिम्मेदार पत्रकारिता

    पीठ ने कहा कि उनके सारे आदेश सार्वजनिक अधिकारक्षेत्र में उपलब्ध थे इसलिए मीडिया से उम्मीद की जाती है कि वह जिम्मेदारी से रिपोर्टिंग करे।

    पीठ ने आगाह किया कि हाईकोर्ट की वेबसाइट पर सभी आदेशों को अपलोड किया जा रहा है, इसलिए मीडिया सहित किसी को भी अगर किसी तरह की जानकारी की आवश्यकता है तो वह न्यायालय के आदेशों की सामग्री के साथ उसे सत्यापित कर सकता है। ताकि ''किसी व्यक्ति का समर्थन में आदेशों को प्रसारित या प्रचारित करने से वह स्वयं को दूर रख सकें।''

    इस पीठ में न्यायमूर्ति अरिजीत बनर्जी भी शामिल थे। पीठ ने कहा कि-

    ''यह भी ध्यान रखें कि हाईकोर्ट द्वारा जारी किए गए सभी आदेश आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड किए जा रहे हैं। इसका मतलब यह है कि किसी भी आदेश का वास्तविक विवरण कलकत्ता हाईकोर्ट की वेबसाइट से लिए जा सकता है। हमें यकीन है कि जिम्मेदार पत्रकारिता में से गैर-जिम्मेदाराना रिपोर्टिंग को बाहर करने की आवश्यकता है,चाहे वह प्रिंट मीडिया हो या ऑडियो विजुअल मीडिया। इसलिए हम उम्मीद करते हैं कि इस न्यायालय के आदेशों की सामग्री या तथ्यों के बारे में अगर किसी को भी जानकारी लेने की आवश्यकता है तो वह हाईकोर्ट की वेबसाइट का उपयोग करेगा और किसी व्यक्ति का समर्थन करने के लिए आदेशों को प्रसारित या प्रचारित करने से खुद को दूर रखेंगा।''

    विरोधात्मक परीक्षण या ट्रायल नहीं

    पिछले सप्ताह पहली बार राज्य सरकार ने यह मुद्दा उठाया था कि यह याचिका राजनीति से प्रेरित है। उस समय पीठ ने यह कहते हुए इस मुद्दे को टाल दिया था कि ''यह प्रश्न उठाया गया है और हो सकता है कि यह रिकॉर्ड पर आई सामग्रियों के आधार पर उत्पन्न हुआ हो। जो अब राज्य सरकार की तरफ से पेश की गई सामग्रियों पर गहराई से विचार करने के लिए हमारी अंतरात्मा या विवेक को भी उकसा रहा है।''

    मंगलवार को अपना रुख दोहराते हुए पीठ ने कहा कि-

    ''हमें याद है कि हमने अपने पहले के आदेश में दर्ज किया था कि इस मामले को आगे बढ़ाया जाएगा, जो प्रकृति में प्रतिकूल नहीं है ...

    ... हमने यह भी रिकॉर्ड किया था कि इस मामले को अंत में सामूहिक अर्थों में जनहित के लिए और व्यक्तिगत अर्थों में एक नागरिक के लिए आगे बढ़ाया जाएगा और किसी भी तरह से इसको प्रचार के लिए एक मंच बनाने का इरादा नहीं है।''

    पीपीई की उपलब्धता

    मामले के तथ्यों के आधार पर पीठ ने राज्य और केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वे पश्चिम बंगाल राज्य में आईसीएमआर के दिशानिर्देशों के अनुसार परीक्षण सुविधाओं और पीपीई की उपलब्धता के बारे में एक हलफनामा दायर करें।

    पीठ ने यह भी कहा कि COVID-19के कारण राज्य के दो डॉक्टरों की मृत्यु हो गई है, जिसके बाद यह निर्देश जारी किया गया है।

    पीठ ने निर्देश दिया कि-

    ''एडवोकेट जनरल यह पता करें कि क्या पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट (पीपीई) इतनी मात्रा में उपलब्ध है कि यह उन सभी को प्रदान किए जा सकते हैं,जिनको फ्रंट लाइन बैरियर कहा जाता है। जिनमें डॉक्टर, पैरा मेडिक्स, ग्राउंड स्टाफ, सपोर्ट स्टाफ और मेडिकल संस्थानों के साथ काम करने वाले और अन्य क्षेत्रों से जुड़े वह लोग शामिल हैं,जहां पर नियम के अनुसार पीपीई के उपयोग किया जाना चाहिए। वहीं केंद्र सरकार को भी पश्चिम बंगाल राज्य में COVID-19 के प्रबंधन पर अपने दृष्टिकोण के संबंध में जवाब दायर करने की आवश्यकता है।''

    नमूनों का परीक्षण

    राज्य में किए जा रहे नमूनों के परीक्षण की संख्या में कमी के मुद्दे पर पीठ ने कहा है कि ''इस बात में निश्चितता का अभाव है कि क्या रैपिड टेस्टिंग पद्धति के साथ-साथ अन्य तौर-तरीकों का उचित उपयोग किया जा रहा है?''

    परंतु इसे ''शासन का मामला'' बताते हुए पीठ ने कहा है कि इस मुद्दे पर सरकार स्वयं विचार करें।

    पीठ ने कहा कि-

    ''जैव चिकित्सा अनुसंधान के मॉड्यूलेशन, फॉर्मुलेशन और प्रचार से इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च चिंतित है। जो भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित है। जाहिर है इसे स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के लिए विभिन्न चुनौतियों से निपटने के तौर तरीकों को विनियमित करने के मंच के रूप में माना जाता है ...

    COVID-19 के कारण होने वाली मृत्यु दर का रिकार्ड रखने के लिए नमूनों का परीक्षण, टेस्ट किट और मौत के कारण का पता लगाने के लिए अपनाया जाने वाला तरीका, यह सभी महामारी के वैज्ञानिक प्रबंधन से संबंधित मामले हैं। इसलिए भारतीय संघ और राज्य को आईसीएमआर या अन्य एजेंसी द्वारा तय किए गए उन सक्षम दिशानिर्देशों पर अपना जवाब दायर करना चाहिए,जिन्हें स्वयं भारत संघ ने आवश्यक पाया है।''

    मामले का विवरण-

    केस का शीर्षक- डॉ.फौद हलीम बनाम पश्चिम बंगाल राज्य व अन्य (और अन्य जुड़ी हुई पत्र याचिकाएं)

    केस नंबर- डब्ल्यूपी नंबर 5328/2020

    कोरम- मुख्य न्यायाधीश थोटाथिल बी. राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति अरिजीत बनर्जी

    प्रतिनिधित्व-वरिष्ठ अधिवक्ता बिकास रंजन भट्टाचार्य और एडवोकेट राजा सत्यजीत बनर्जी (याचिकाकर्ताओं के लिए) व महाधिवक्ता किशोर दत्ता (राज्य के लिए)


    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




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