विधवा का पुनर्विवाह मोटर दुर्घटना मुआवजा के निर्धारण के लिए निर्णायक कारक नहीं : केरल हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

9 July 2020 3:45 AM GMT

  • विधवा का पुनर्विवाह मोटर दुर्घटना मुआवजा के निर्धारण के लिए निर्णायक कारक नहीं : केरल हाईकोर्ट

    Kerala High Court

    “विधवा के फिर से विवाह कर लेने पर उसके पूर्व पति के परिजनों से सभी प्रकार के संबंध समाप्त कर लेने की सदियों पुरानी अवधारणा अब बीते जमाने की कहानी हो रही है।”

    केरल हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी है कि पति की मौत के बाद मोटर वाहन अधिनियम की धारा 166 के तहत सहारे के तौर पर विधवा के मुआवजे का निर्धारण करते वक्त उस महिला का पुनर्विवाह निर्णायक कारक नहीं होगा।

    न्यायमूर्ति एन. नागारेश ने कहा कि पति की मौत के कारण महिला के आश्रित होने का अधिकार सिर्फ इसलिए नहीं समाप्त हो सकता कि उस महिला ने फिर से शादी कर ली है या वह आत्मनिर्भर बन चुकी है।

    इस मामले में मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के आदेश के खिलाफ अपील पर कोर्ट के समक्ष विचारणीय बिंदु था कि क्या किसी महिला के पति की सड़क दुर्घटना में मौत होने के परिणामस्वरूप विधवा को मिलने वाले मुआवजे का अधिकार सिर्फ इसलिए समाप्त हो जायेगा, क्योंकि मोटर वाहन अधिनियम 1988 की धारा 166 के तहत मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के समक्ष कार्यवाही लंबित रहने के दौरान उस महिला ने दूसरी शादी कर ली थी? मृतक के माता-पिता और विधवा अपीलकर्ता थे।

    कोर्ट ने कहा कि यह निर्धारित तथ्य है कि तलाकशुदा पत्नी या विधवा भी मोटर वाहन अधिनियम की धारा 166 के तहत अपनी याचिका जारी रख् सकती है।

    अपील पर विचार करते हुए कोर्ट ने कहा कि दावाकर्ता ने फिर से शादी करने का नहीं सोचा होता, यदि उसके पति की असामयिक मौत न हुई होती। कोर्ट ने यह भी कहा कि विधवा ने तलाक के कारण पुनर्विवाह नहीं किया था।

    न्यायाधीश ने कहा :

    "कोर्ट को उस मानसिक कठिनाइयों के बारे में भी विचार करना है, जिसका सामना उस विधवा को पुनर्विवाह के कारण करना पड़ेगा। समाज बदल रहा है। विधवा के फिर से विवाह कर लेने पर उसके पूर्व पति के परिजनों से सभी प्रकार के संबंध समाप्त कर लेने की सदियों पुरानी अवधारणा अब बीते जमाने की कहानी हो रही है। तथ्य यह है कि प्रतिवादी संख्या-1 मृतक की आश्रित थी ओर दुर्घटना के कारण यदि पति की मृत्यु नहीं होती तो वह आश्रित रहती ही। पति की मौत के परिणामस्वरूप निश्चित तौर पर महिला का सहारा छिन गया।

    पति की मौत के बाद विधवा नौकरी कर सकती है और आत्मनिर्भर बन सकती है या फिर दूसरी शादी करने का निर्णय ले सकती है। किसी भी हाल में पति की मौत के कारण उसके सहारे का अधिकार सिर्फ इसलिए नहीं समाप्त हो सकता कि उसने फिर से शादी कर ली है या वह आत्म निर्भर बन चुकी है। इसलिए 'निर्भरता' शब्द और इसके कानूनी प्रतिनिधित्व की व्यावहारिक व्याख्या की जानी चाहिए।"

    कोर्ट ने मुआवजे की राशि बढ़ाते हुए आगे कहा :

    "मौजूदा दौर के समाज में कोई भी यह नहीं चाहता या अपेक्षा करता कि जवान विधवा सफेद रंग की साड़ी में लिपटी रहे या विधवा का वस्त्र पहनकर पूरी जिन्दगी शोक संतप्त होती रहे। समाज में परिवर्तन हुआ है। फिर से शादी करने के बावजूद, विधवा अपना संबंध पूर्व पति के परिवार से बनाये रख सकती है और पुनर्विवाह के बाद भी पूर्व सास-ससुर के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकती है। ऐसे मामलों में अनुमान नहीं लगाया जा सकता। ये सभी चीजें आकलन से परे हैं। आकलन से परे ऐसे मामलों में कोर्ट सामान्य तौर पर अनुमानित जीवन काल से संबंधित आंकड़े पर विचार नहीं करता।"

    केस का ब्योरा :

    केस का नाम : ग्लैनिस बनाम लाज़र मंजिला

    केस नं. : एमएसीए नं. – 1936/2008

    कोरम : न्यायमूर्ति एन. नागरेश

    वकील : एडवोकेट पी वी बेबी, जॉन जोसेफ वेट्टिकाडु

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