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राजस्थान हाईकोर्ट ने अंतर-जातीय विवाहित कपल को कथित तौर पर अलग करने वाले पुलिसकर्मी को निलंबित करने के आदेश दिए

राजस्थान हाईकोर्ट ने एक कॉन्स्टेबल के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने और अनंतिम निलंबन के आदेश दिए, जिस पर एक अंतर-जातीय जोड़े को अलग करने और अपनी पत्नी को पेश करने संबंधित बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करने वाले व्यक्ति को धमकी देने का आरोप लगाया गया है।
अदालत ने पुलिस कांस्टेबल चंद्रपाल सिंह के आचरण पर भी गंभीर आपत्ति जताई जैसे कि उन्होंने तत्काल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के संबंध में कोर्ट ड्यूटी पर होने का दावा किया, लेकिन वह वर्दी में नहीं थे।
न्यायमूर्ति मनोज कुमार गर्ग और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ अपनी पत्नी को पेश करने की मांग करने वाले कविश नाथ की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता और कॉर्पस अलग-अलग जातियों के हैं। याचिकाकर्ता जाति से जोगी है, जबकि कॉर्पस राजपूत समुदाय से है।
कोर्ट के समक्ष वह मंगलवार, 13 जुलाई को पेश हुई थी और बेंच ने कॉर्पस के साथ बातचीत की और प्रथम दृष्टया निष्कर्ष निकाला कि वह दबाव में है और दबाव/जबरदस्ती से मुक्त बयान देने में असमर्थ है।
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने कांस्टेबल चंद्रपाल सिंह के खिलाफ कुछ गंभीर आरोप लगाए, जो पुलिस स्टेशन करेरा, जिला भीलवाड़ा में तैनात हैं और आग्रह किया कि याचिकाकर्ता से कॉर्पस को अलग करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
आगे आरोप लगाया गया कि उक्त कांस्टेबल जुलाई के पहले सप्ताह में अपने कार्यालय में आया, तभी याचिकाकर्ता बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर हस्ताक्षर करने के लिए वहां मौजूद था और उसे गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी थी।
कथित तौर पर याचिकाकर्ता का मोबाइल फोन उससे जबरन छीन लिया गया और उसे अनलॉक किया गया और उसमें से कुछ मैसेज देखे गए।
यह भी आरोप लगाया गया है कि जब याचिकाकर्ता और कॉर्पस पुलिस सुरक्षा के आदेश के लिए पेश पोखरण थाने गए तो कांस्टेबल वहां मौजूद था और उसने याचिकाकर्ता के मूल दस्तावेज छीन लिए थे।
इन आरोपों से कांस्टेबल का सामना करने पर उसने स्वीकार किया कि वह दी गई तारीख को जोधपुर में था, लेकिन उसने इस बात से इनकार किया कि वह वकील के कार्यालय गया था।
कोर्ट ने इसके अलावा कहा कि,
"गंभीर आरोपों को देखते हुए हम भीलवाड़ा के पुलिस अधीक्षक को कांस्टेबल चंद्रपाल सिंह के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने का निर्देश देते हैं और उन्हें अनंतिम रूप से निलंबित करने का आदेश देते हैं। पुलिस अधीक्षक, भीलवाड़ा की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट अदालत की अगली सुनवाई की तारीख पर अवलोकन के लिए रखी जाएगी।"
कोर्ट ने अंत में 16 जुलाई को निर्देश दिए कि कॉर्पस को तुरंत स्वतंत्र किया जाए और कॉर्पस और याचिकाकर्ता की सुरक्षा और सुरक्षा के लिए स्पष्ट खतरे को देखते हुए, कोर्ट ने पुलिस अधीक्षक, जैसलमेर को कॉर्पस और याचिकाकर्ता के परिवार के सदस्यों को जब तक कि उनके जीवन के लिए खतरा बना रहता है तब तक सुरक्षा प्रदान करने के निर्देश दिए।
केस का शीर्षक - कविश नाथ बनाम राजस्थान राज्य और अन्य