वयस्क होने के बावजूद लड़की को बालिका गृह में बंद रखने पर बाल कल्याण समिति से राजस्थान हाईकोर्ट ने लड़की को मुआवज़ा देने को कहा
LiveLaw News Network
10 April 2020 9:52 AM IST
राजस्थान हाईकोर्ट ने एक वयस्क लड़की को सरकारी बालिका गृह में एक साल तक बंद रखने का दोषी मानते हुए राज्य की बाल कल्याण समिति की अध्यक्ष को इस लड़की को 50,000 रुपए का मुआवज़ा देने का आदेश दिया। अध्यक्ष को नोटिस जारी कर यह भी पूछा गया है कि इस चूक के लिए उन्हें क्यों नहीं उनके पद से हटा दिया जाए।
बंद की गई लड़की को लेकर दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर हुई सुनवाई में स्कूल के प्रमाणपत्र के आधार पर उसे बालिग़ बताया गया। जोधपुर के बालिका गृह के अधिकारियों के बाल कल्याण समिति को लगातार इस बारे में बताए जाने के बाद भी उन्होंने इस लड़की के पुनर्वास के बारे में किसी तरह का क़दम नहीं उठाया।
जूवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 की धारा 29 के तहत बाल कल्याण समिति को बच्चों के कल्याण, सुरक्षा और विकास एवं पुनर्वास के लिए मामले को निपटाने का अधिकार है, इसलिए यह कहा गया कि पाली की बाल कल्याण समिति ने जानबूझकर इस मामले पर कोई निर्णय नहीं लिया।
न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई की पीठ ने कहा,
"स्पष्ट रूप से, यह लड़की पहले दिन से यह चिल्ला-चिल्लाकर कह रही थी कि वह वयस्क है। बालिका गृह, जोधपुर के अधीक्षक के बार-बार आग्रह करने के बाद भी सीडब्ल्यूसी, पाली ने कोई उचित आदेश इस बारे में नहीं दिया और उसे एक साल से अधिक समय तक ग़ैरक़ानूनी तरीके से बंद रखा।
हम मानते हैं कि याचिकाकर्ता को एक साल से अधिक समय तक जोधपुर के बालिका गृह में वयस्क होने के बावजूद बंद रखने के लिए सीडब्ल्यूसी, पाली ज़िम्मेदार है जिसने अक्षमता और संभावित मिलीभगत की वजह से क़ानून के अनुरूप कोई निर्णय नहीं लिया।"
अदालत ने कहा कि सीडब्ल्यूसी की अध्यक्ष की अशोक कुमार के साथ "संभावित मिलीभगत" है जिसके साथ इस लड़की के मां-बाप उसकी शादी कराना चाहते हैं। इस पर कड़ी आपत्ति करते हुए अदालत ने कहा कि यह लड़की वयस्क है और उसे अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ शादी करने और उसके साथ रहने की इजाज़त है।
इसे देखते हुए अदालत ने सीडब्ल्यूसी, पाली की अध्यक्ष और सीडब्ल्यूसी के पूर्व सदस्य दोनों को इस लड़की को ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से बंद रखने के जुर्म में 50,000-50,000 रुपए का मुआवज़ा देने को कहा।
अदालत ने कहा कि ये लोग आज से 60 दिनों के भीतर यह राशि ज़िला जज, पाली के पास जमा करेंगे और यह राशि याचिककर्ता को मुआवजे के रूप में दी जाएगी।
अदालत ने कहा,
"हम सीडब्ल्यूसी, पाली के अध्यक्ष और इसके एकमात्र सदस्य सुदर्शन उदावत को कारण बताओ नोटिस जारी कर यह पूछ रहे हैं कि उन्हें उनकी ज़िम्मेदारियों से क्यों नहीं हटा दिया जाए।…"