जमीन आवंटन में देरी : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने सेना के जवान की विधवा को अदालत जाने के लिए मजबूर करने पर पंजाब सरकार को उसे पांच लाख रुपये देने का आदेश दिया

Sharafat

7 May 2023 7:00 AM GMT

  • जमीन आवंटन में देरी : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने सेना के जवान की विधवा को अदालत जाने के लिए मजबूर करने पर पंजाब सरकार को उसे पांच लाख रुपये देने का आदेश दिया

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने गुरुवार को पंजाब सरकार को निर्देश दिया कि वह मृतक सैनिक की विधवा को को पांच लाख रुपये का मुआवजा दे। राज्य को यह आदेश यह कहते हुए दिया गया कि मृतक सैनिक की विधवा को उनके मृत पति की सेवा के सम्मान में आवंटित भूमि के लिए राजस्व का कोई रास्ता नहीं दिया गया, इसलिए राज्य पीड़िता महिला को पांच लाख रुपए का भुगतान करे।

    जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस कुलदीप तिवारी की खंडपीठ ने कहा:

    "शहीद जवान जिसने देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया, उनकी विधवा को कोई राजस्व रास्ता नहीं दिए जाने का परिणाम उक्त आवंटन के पूरी तरह से उद्देश्यहीन होने का खराब परिणाम हुआ, क्योंकि वह वर्ष 2009 के बाद से आवंटित भूमि का उपयोग करने के लिए स्पष्ट रूप से अक्षम हो गई।"

    याचिकाकर्ता को 8 अगस्त, 1997 को गांव खेड़ा बेट, तहसील और जिला लुधियाना में 10 एकड़ जमीन आवंटित की गई थी, जो उनके मृत पति, जो सेना में थे और "देश की सीमाओं की रक्षा करते हुए शहीद होने के बाद, उनकी वीरता का सम्मान करने के लिए दी गई थी। .

    अदाल्त ने नोट किया,

    " याचिकाकर्ता को आवंटित भूमि का कब्जा उसे 18 मई, 2009 को दिया गया था। हालांकि, याचिकाकर्ता को आवंटित 10 एकड़ भूमि में से केवल 8 एकड़ जमीन का ही उसे प्रतीकात्मक कब्जा दिया गया था, शेष 2 एकड़ भूमि वन क्षेत्र के अंतर्गत थी।'

    याचिकाकर्ता ने रिट याचिका के माध्यम से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और अदालत के निर्देशों के अनुपालन में, उसे 13 सितंबर, 2011 को नूरपुर बेट गांव में भूमि आवंटित की गई और याचिकाकर्ता के पक्ष में अपेक्षित नामांतरण भी प्रमाणित किया गया।

    हालांकि, याचिकाकर्ता को फिर से अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा क्योंकि उन्हें भूमि का पूरी तरह से उपयोग करने में सक्षम बनाने के लिए और 08 अप्रैल, 2015 को निदेशक, भू-अभिलेख, पंजाब, राजस्व अधिकारी-सह-चकबंदी अधिकारी, लुधियाना को निर्देश दिए जाने के बावजूद अपने अधिकारों का प्रयोग करने में सक्षम बनाने के लिए उन्हें कोई रास्ता नहीं दिया गया।

    राज्य की ओर से पेश वकील ने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया कि अब तक याचिकाकर्ता को एक रास्ता आवंटित किया गया है।

    अदालत ने कहा कि

    " लेकिन आवंटन में देरी हुई है और यह याचिकाकर्ता को अदालत तक पहुंचने के लिए मजबूर भी किया गया, "जबकि उनके पति ने राष्ट्र की बहादुरी से सेवा की। यह आवश्यक है कि संबंधित अधिकारी शीघ्र कार्रवाई करें। वर्तमान याचिकाकर्ता की आवश्यकता (आवश्यकताओं) के प्रति अकर्मण्य और उदासीन होने के बजाय प्रासंगिक उद्देश्य के लिए कार्रवाई करें।"

    अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को अनावश्यक रूप से और बार-बार मुकदमेबाजी में घसीटा गया और इसलिए पंजाब राज्य को "संबंधित अधिकारियों की ओर से आलस्य और सुस्ती के लिए" एक प्रतिपूरक उपाय के रूप में याचिकाकर्ता को पांच लाख रुपए देने का निर्देश दिया।


    केस टाइटल: बलवंत कौर बनाम पंजाब राज्य व अन्य।

    कोरम: जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस कुलदीप तिवारी

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