शादी का झूठा वादा करके बलात्कार करने का आरोप: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने बलात्कार की प्राथमिकी रद्द की

LiveLaw News Network

9 Sep 2021 12:04 PM GMT

  • Consider The Establishment Of The State Commission For Protection Of Child Rights In The UT Of J&K

    जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने हाल ही में एक ही महिला द्वारा दो पुरुषों के खिलाफ दर्ज दो प्राथमिकी को खारिज कर दिया, जिसमें शादी का झूठा वादा करने के बहाने बलात्कार करने का आरोप लगाया गया था।

    न्यायमूर्ति रजनीश ओसवाल ने अदालत के समक्ष पेश किए गए तथ्यों से पाया कि अभियोक्ता ने वर्ष 2018 में शादी का वादे करके दो व्यक्तियों के साथ यौन संबंध बनाए थे।

    पीठ ने कहा,

    "इस न्यायालय को यह मानने में कोई संकोच नहीं है कि प्रतिवादी संख्या 2 के आचरण से यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी संख्या 2 द्वारा दोनों याचिकाकर्ताओं के खिलाफ एक झूठी और तुच्छ प्राथमिकी दर्ज की गई है।"

    कोर्ट ने आगे कहा कि जब यह आरोप लगाया जाता है कि शादी के झूठे वादे के आधार पर यौन संबंध बनाए गए थे, तो यह स्थापित करना होगा कि शादी का वादा एक झूठा वादा था और इसका पालन करने का कोई इरादा नहीं था, जिस समय यह वादा किया गया था।

    पृष्ठभूमि

    अदालत प्राथमिकी रद्द करने की मांग करने वाली आरोपियों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

    दोनों याचिकाकर्ताओं-आरोपियों ने दावा किया कि प्राथमिकी उन्हें पीड़िता से शादी करने के लिए परेशान करने और ब्लैकमेल करने की एक रणनीति है। उन्होंने कथित तौर पर शादी का कोई वादा करने से इनकार किया।

    यह कहा कि एक प्राथमिकी में अभियोजन पक्ष ने देहाती होने का दावा किया जबकि दूसरे में उसने उच्च अध्ययन करने का दावा किया।

    जांच - परिणाम

    यह देखते हुए कि अभियोक्ता बार-बार अपना रुख बदल रही है, दोनों प्राथमिकी में आरोपों की समानता घटना की तारीख और स्थान का उल्लेख नहीं करती है, अदालत ने प्राथमिकी को झूठा और तुच्छ बताते हुए रद्द कर दिया।

    कोर्ट ने प्रमोद सूर्यभान पवार बनाम महाराष्ट्र राज्य का उल्लेख किया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि,

    "एफआईआर में आरोप उनके चेहरे पर यह नहीं दर्शाते हैं कि अपीलकर्ता द्वारा किया गया वादा झूठा था या शिकायतकर्ता इस वादे के आधार पर यौन संबंधों में लिप्त था। प्राथमिकी में ऐसा कोई आरोप नहीं है कि जब अपीलकर्ता ने शिकायतकर्ता से शादी करने का वादा किया था, यह उसे धोखा देने के लिए किया गया था। अपीलकर्ता की 2016 में 2008 में किए गए अपने वादे को पूरा करने में विफलता का मतलब यह नहीं लगाया जा सकता कि वादा ही झूठा था।"

    केस का शीर्षक: सुरेश कुमार एंड अन्य बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर एंड

    उपस्थिति: याचिकाकर्ता के लिए अधिवक्ता जगपाल सिंह और अधिवक्ता विकास शर्मा; राज्य के लिए एएजी असीम साहनी

    आदेश की कॉपी यहां पढे़ं:



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