दूसरी FIR यदि पहली जैसी ही है तो उसके आधार पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
10 Feb 2020 12:30 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दूसरी प्राथमिकी के आधार पर किसी व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा जारी रखने योग्य नहीं है, यदि उसकी बुनियाद भी पहली प्राथमिकी के समान हो।
इस मामले में, शिकायतकर्ता ने पहली प्राथमिकी यह कहते हुए दर्ज करायी थी कि उसने आरोपी के पक्ष में कभी भी जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी नहीं किया था और आरोपी ने फर्जी जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी बनाकर उसकी भूमि गैर कानूनी तरीके से बेच दी थी। इस मामले में आरोपी के खिलाफ अंतत: मुकदमा चलाया गया था और उसे बाद में बरी कर दिया गया।
उसके बाद उसने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156(3) के तहत एक अर्जी फिर से दायर की थी, जिसमें उसने पुन: वही आरोप लगाए थे। इसे बाद में पुलिस को अग्रसारित कर दिया गया था और उसी के आधार पर दूसरी प्राथमिकी दर्ज हो गई थी। आरोपी के आरोप मुक्त किए जाने की याचिका खारिज हो जाने के बाद उसने शीर्ष अदालत में अपील दायर की थी।
आरोपी ने मामले के तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में दलील दी थी कि 02.05.1985 को जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी तैयार करने के आरोपों के इतने वर्षों बाद 09.10.2008 को दूसरी प्राथमिकी दर्ज कराना कानूनी प्रक्रिया का पूर्ण उल्लंघन है और यह निरस्त किए जाने लायक है। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 300 का उल्लेख करते हुए उन्होंने दलील दी कि अपीलकर्ता के खिलाफ उसी प्रतिवादी के इशारे पर एक ही अपराध के लिए दो बार मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, जो दोनों ही प्राथमिकी में खुद शिकायतकर्ता हो।
न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की खंडपीठ ने मामले के तथ्यों का उल्लेख करते हुए कहा :
इसलिए यह पूरी तरह स्पष्ट है कि दोनों ही प्राथमिकियों में 02.05.1985 के जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी तथा उसके आधार पर अपीलकर्ता द्वारा जमीन बिक्री के एक समान आरोप थे।
यदि दोनों प्राथमिकियों का आधार एक जैसा हो तो बाद वाली प्राथमिकी में केवल नई धारा 467, 468 और 471 को जोड़ देने मात्र से यह नहीं कहा जा सकता कि नई प्राथमिकी में तथ्य, आरोप और आधार अलग-अलग हैं। ऐसो में उस पर विचार नहीं किया जा सकता।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 300 का संज्ञान लेते हुए बेंच ने यह कहकर अपील स्वीकार कर ली कि
"इस निष्कर्ष के मद्देनजर कि दोनों ही प्राथमिकियों में आरोप समान तरीके के थे तथा अपीलकर्ता को फर्जी जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी तैयार करने के आरोप से 07.08.1998 को बरी कर दिया गया था, हमारा स्पष्ट मानना है कि अपीलकर्ता के खिलाफ बाद में दर्ज प्राथमिकी संख्या 114/2008 के आधार पर चलाया गया मुकदमा जारी रखने लायक कतई नहीं है।"
मुकदमे का ब्योरा :
केस का नाम : प्रेमचंद सिंह बनाम उत्तर प्रदेश सरकार
केस न. : क्रिमिनल अपील नं. 237/2020
कोरम : न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति कृष्णमुरारी
वकील : वरिष्ठ अधिवक्ता प्रदीप कांत (अपीलकर्ता के लिए) और एडवोकेट अमित यादव (प्रतिवादी के लिए)
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