साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के तहत अभियोजन पक्ष को सबूतों का दायित्व आरोपी पर डालने के लिए 'विशेष जानकारी' के संकेत देने वाले तथ्यों को स्थापित करना चाहिए: कर्नाटक हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

29 Sep 2022 9:45 AM GMT

  • हाईकोर्ट ऑफ कर्नाटक

    कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 उन मामलों पर लागू होगी, जहां अभियोजन पक्ष उन तथ्यों को स्थापित करने में सफल रहा है जिनसे कुछ अन्य तथ्यों के अस्तित्व के संबंध में एक उचित निष्कर्ष निकाला जा सकता है, जो आरोपी की विशेष जानकारी में है।

    कलबुर्गी स्थित जस्टिस डॉ एचबी प्रभाकर शास्त्री और अनिल बी कट्टी की खंडपीठ ने कहा,

    "यदि अभियोजन पक्ष यह दिखाने में सक्षम हो सकता है कि मामले के तथ्य और परिस्थितियाँ स्पष्ट रूप से यह प्रदर्शित करती हैं कि एक विशेष तथ्य खासतौर पर अभियुक्त की जानकारी में है, तभी उस तथ्य को साबित करने का भार आरोपी पर होगा।"

    पीठ ने सिद्दप्पा नामक एक व्यक्ति को उसकी पत्नी की दूसरे व्यक्ति के साथ संबंधों को लेकर उत्पन्न विवाद के बाद पत्नी की कथित हत्या के मामले में दोषी ठहराए जाने के आदेश को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की। अपीलकर्ता ने अपनी पत्नी पर गन्ना काटने वाले औजार ('कोयटा') से हमला किया, जिसकी बाद में मौत हो गई।

    सबसे पहले, हाईकोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा तहकीकात में किसी भी भौतिक गवाह ने न तो पीड़िता की मृत्यु की प्रकृति और न ही अपीलकर्ता की भूमिका के बारे में बात की थी। इसलिए, माना जाता है कि अभियोजन पक्ष के गवाहों के माध्यम से आरोपी और उसकी पत्नी की मृत्यु के बीच संबंध स्थापित करने के लिए कोई सबूत नहीं है।

    "अगर यह मान लिया जाए कि मृतका को चोटें चॉपर (गन्ना काटने वाले औजार) से लगी हैं, तो कम से कम अभियुक्त के साथ उक्त हथियार का संबंध अभियोजन द्वारा स्थापित किया जाना चाहिए था ... केवल इसलिए कि उक्त हथियार आरोपी के घर पर पाया गया था, यह अनुमान लगाना सुरक्षित नहीं है कि आरोपी ने उक्त हथियार का इस्तेमाल किया था और उसी के इस्तेमाल से उसकी पत्नी को घातक चोटें आई हैं।"

    कोर्ट ने कहा कि सत्र न्यायाधीश इस अनुमान पर आगे बढ़े कि चूंकि कथित घटना अपीलकर्ता के घर में हुई है, इसलिए घटना के तथ्यों की व्याख्या करना उसकी जिम्मेदारी है, क्योंकि यह उसकी "खास जानकारी" में है।

    इस तरह के दृष्टिकोण को खारिज करते हुए, हाईकोर्ट ने कहा कि यह साबित करने का "प्राथमिक दायित्व" अभियोजन पक्ष पर था कि आरोपी उस घर में मृतका के साथ रहता था, जहां कथित घटना हुई थी। सेशन कोर्ट ने मामले में धारा 106 की प्रयोज्यता के संदर्भ में गलत निर्णय लिया था और अपीलकर्ता को यह साबित करने का निर्देश दिया था कि वह अपराध स्थल पर मौजूद ही नहीं था।

    हाईकोर्ट ने कहा कि भले ही मृतका की शादी अपीलकर्ता से हुई हो, लेकिन इससे यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता है कि आरोपी घटना की तारीख को मृतका के साथ था।

    कोर्ट ने कहा,

    "सेशन जज कोर्ट, निर्णय में अपने तर्क की शुरुआत से, अपने दम पर अभियुक्त की गैर-मौजूदगी का बचाव करता रहा है और उक्त पहलू को आधार के तौर पर रखते हुए, यह अनुमान जारी रखा कि कथित तारीख और समय के अनुसार, घटना का आरोपी मृतका मीनाक्षी के साथ तेनिहल्ली गांव में उनके घर के एक कमरे में मौजूद था। सेशन कोर्ट द्वारा इस बुनियादी त्रुटि के साथ, अभियोजन पक्ष के साक्ष्य का, खासकर साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 और 114 के तहत मूल्यांकन किया गया। "

    कोर्ट ने आगे कहा,

    "अभियोजन पक्ष को प्राथमिक रूप से यह साबित करने के अपने दायित्व का निर्वहन करना चाहिए था कि आरोपी और मृतका, विशेष रूप से घटना की तारीख को एक साथ रह रहे थे, जैसे, कुछ तथ्य विशेष रूप से अभियुक्त की जानकारी में थे, और अभियुक्त से अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए कि वह उन परिस्थितियों के बारे में बताए, जिसके कारण उसकी पत्नी मीनाक्षी की हत्या हुई थी। इस प्रकार, मौजूदा मामले में साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 का इस्तेमाल और अभियुक्त से कथित दायित्व के निर्वहन की अपेक्षा करना, तथ्यों और परिस्थितियों की दृष्टि से पूरी तरह से अनुचित था।"

    तदनुसार, इसने अपील की अनुमति दी और सजा काट लेने की स्थिति में आरोपी को इस मामले में रिहा करने का निर्देश दिया।

    केस टाइटल: सिद्दप्पा बनाम कर्नाटक सरकार

    मामला संख्या: आपराधिक अपील संख्या 200104/2017

    साइटेशन : 2022 लाइव लॉ (कर्नाटक) 380

    आदेश की तिथि: 22 सितंबर, 2022

    पेशी: अपीलकर्ता के लिए अधिवक्ता विशाल प्रताप सिंह; प्रतिवादी (सरकार) की ओर से अतिरिक्त अधिवक्ता

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