"व्यक्तिगत बदले के लिए कानूनी प्रक्रिया का इस्तेमाल एक टूल के रूप में किया गया" : दिल्ली हाईकोर्ट ने रेप एफआईआर खारिज की

LiveLaw News Network

10 March 2022 12:44 PM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट, दिल्ली

    दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महिला की उस एफआईआर को रद्द कर दिया जिसमें उसने एक व्यक्ति पर उससे कई बार बलात्कार करने का आरोप लगाया था। कोर्ट ने एफआईआर खारिज करते हुए कहा कि अभियोक्ता आरोपी के साथ चार साल की लंबी अवधि तक संबंध में थी और एफआईआर केवल तब दर्ज की गई जब यह संबंध शत्रुतापूर्ण रूप से समाप्त हो गया।

    जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 (2) (एन), 354, 354 ए के तहत अपराधों के लिए दर्ज एफआईआर रद्द करने की मांग वाली याचिका पर विचार कर रहे थे।

    शिकायत में महिला ने कहा कि वह याचिकाकर्ता के साथ चार साल से रिश्ते में रही और जब याचिकाकर्ता ने उसे बताया कि वह तलाकशुदा है तो वह चौंक गई। कहा गया कि याचिकाकर्ता ने उससे शादी करने का वादा किया था, लेकिन वह किसी और के साथ रिश्ते में था। वह उसके घर गई। वहां उसके साथ दुर्व्यवहार किया और उसके साथ मारपीट की।

    शिकायतकर्ता ने एक और शिकायत देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता चार साल पहले दोस्त बने और वह अक्सर शिकायतकर्ता के घर आता था। यह कहा गया कि लगभग एक साल पहले याचिकाकर्ता उसके घर आया था। उस समय उसकी मां पंजाब गई थी। उसकी बहन दूसरे कमरे में थी। याचिकाकर्ता ने उससे शादी करने का वादा करके उसके साथ संभोग किया।

    शिकायतकर्ता द्वारा एक अन्य शिकायत दर्ज कराई गई। इसमें कहा गया कि वह फेसबुक के माध्यम से याचिकाकर्ता से मिली। तीन-चार महीने की चैट के बाद याचिकाकर्ता ने एयर इंडिया में एक पायलट के रूप में अपना परिचय दिया और अप्रैल, 2017 में उसने शिकायतकर्ता को उससे मिलने के लिए मजबूर करना शुरू किया। उक्त शिकायत में भी इसी तरह के आरोप लगाए गए। शिकायतकर्ता ने मार्च, 2021 में मेडिकल टेस्ट कराने से इनकार कर दिया।

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता चार साल के दीर्घकालिक संबंध में थे, जो कि खराब हो गए और इसीलिए याचिकाकर्ता को इस मामले में झूठा फंसाया गया।

    यह प्रस्तुत किया गया कि एफआईआर दर्ज करने में चार साल की देरी हुई। शिकायतकर्ता की कहानी पूरी तरह से मनगढ़ंत है। यह विभिन्न समय पर पुलिस को दिए गए फर्जी बयानों पर आधारित है। दर्ज एफआईआर में सीआरपीसी की धारा 164 तहत दिए गए बयान में विसंगतियां हैं।

    दूसरी ओर, अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि बलात्कार का अपराध एक गंभीर अपराध है और सीआरपीसी की धारा 482 के तहत न्यायालय की सभी शक्तियों के बावजूद, उन मामलों में अपनी शक्ति का प्रयोग करने में सावधानी बरतनी चाहिए, जहां जघन्य आरोप लगाए गए हैं।

    यह देखते हुए कि शिकायतकर्ता द्वारा की गई प्रत्येक बाद की शिकायत में पिछले एक से सुधार हुआ है, अदालत ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि एफआईआर में शिकायतकर्ता ने कहा कि उसे याचिकाकर्ता द्वारा जूस दिया गया। इससे वह अर्ध-चेतना की स्थिति में बना रही, जबकि उसकी सीआरपीसी की धारा में 164 के बयान में उसने कहा कि उसे याचिकाकर्ता ने शराब पिलाई।

    कोर्ट ने कहा,

    "उसने शिकायत दर्ज नहीं कराई और खुद की मेडिकल टेस्ट नहीं कराया, जिससे यह साबित हो कि उसे कुछ नशीला पदार्थ दिया गया। एफआईआर में कहा गया कि 15.8.2017 को जब याचिकाकर्ता उसके घर आया तो उसकी मां पंजाब अपने भाई के अंतिम संस्कार में शामिल होने गई हुई थी, जबकि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दिए अपने बयान में उसने कहा कि उसकी मां बिस्तर पर पड़ी है और चलने में असमर्थ है।"

    अदालत का विचार था कि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री के अवलोकन से संकेत मिलता है कि शिकायतकर्ता और याचिकाकर्ता चार साल से एक-दूसरे के साथ सहमति से संबंध में थे, याचिकाकर्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले शिकायतकर्ता के साथ यौन संबंध स्थापित करने का आरोप लगाया गया।

    आगे यह देखते हुए कि शिकायतकर्ता ने न केवल याचिकाकर्ता के खिलाफ बल्कि चाचा और उसके साले के खिलाफ भी शिकायतों का आरोप लगाया, अदालत ने कहा:

    "आईपीसी की धारा 90 में कहा गया कि डर या गलत धारणा के तहत दी गई सहमति को सहमति नहीं कहा जा सकता। इस संदर्भ में यह इस पहलू के लिए प्रासंगिक हो जाता है कि अभियोक्ता चार साल की अवधि में लंबे समय तक संबंध में है और एफआईआर उक्त संबंध शत्रुतापूर्ण स्थिति में समाप्त होने के बाद ही दायर की गई, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि सेक्स संबंधों के लिए दी गई सहमति भय की गलत धारणा पर आधारित है।"

    कोर्ट का विचार था कि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री ने स्थापित किया कि सीआरपीसी की धारा 164 के बयान में पर्याप्त विरोधाभास है जिनका एफआईआर में उल्लेख नहीं किया गया।

    कोर्ट ने कहा,

    "इसके अलावा, याचिकाकर्ता की लगातार शिकायतों में से प्रत्येक में उल्लेखनीय विसंगतियां हैं। इससे ऐसा लगता है कि एक निजी विवाद को गुप्त उद्देश्यों के लिए बढ़ाया जा रहा है। कानून की प्रक्रिया को व्यक्तिगत बदले के लिए एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।"

    इसमें कहा गया,

    "विरोधाभासों को ध्यान में रखते हुए और शिकायतकर्ता द्वारा हर स्तर पर किए गए पर्याप्त सुधारों को ध्यान में रखते हुए इस न्यायालय की राय है कि वर्तमान एफआईआर को रद्द करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करना इस न्यायालय के लिए उपयुक्त है। परिणामस्वरूप , पीएस पश्चिम विहार में आईपीसी की धारा 376(2)एन, 354, 35-ए के तहत दर्ज एफआईआर नंबर 143/2021 और उससे होने वाली सभी कार्यवाही को रद्द किया जाता है।"

    तद्नुसार याचिका का निस्तारण किया गया।

    केस शीर्षक: कैप्टन सिमरनजीत सिंह संभी बनाम राज्य (एनसीटी दिल्ली) और अन्य

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 186

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