"निजीकरण का फैसला 'सबका साथ, सबका विकास' एजेंडा के विपरीत है": पंजाब एंड हाईकोर्ट ने चंडीगढ़ प्रशासन को फटकार लगाई

LiveLaw News Network

1 Jun 2021 5:35 AM GMT

  • निजीकरण का फैसला सबका साथ, सबका विकास एजेंडा के विपरीत है: पंजाब एंड हाईकोर्ट ने चंडीगढ़ प्रशासन को फटकार लगाई

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मामले में कहा कि केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ प्रशासन के बिजली के निजीकरण का फैसला 'सबका साथ, सबका विकास' के देश के एजेंडे के विपरीत है।

    जस्टिस जितेंद्र चौहान और जस्टिस विवेक पुरी की बेंच केंद्र शासित प्रदेश पावरमैन यूनियन, चंडीगढ़ (रजि.) द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें केंद्र शासित प्रदेशष चंडीगढ़ में बिजली के निजीकरण के फैसले को चुनौती दी गई थी।

    वर्तमान आवेदन में अंतिम निर्णय तक निविदा बोलियों को खोलने और अंतिम रूप देने सहित केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में बिजली के निजीकरण के संबंध में आगे की कार्यवाही को रोकने के लिए प्रार्थना की गई थी।

    कोर्ट ने कहा कि प्रशासन को ऐसे संस्थानों की रक्षा करनी चाहिए। कोर्ट ने टिप्पणी की कि,

    "वे समाज को एक सुरक्षा प्रदान करते हैं, गरीब से गरीब व्यक्ति को बेहतर भविष्य का सपना देखने के लिए, व्यक्ति को आकांक्षी होने के लिए ताकि वह भी भारतीय सपने का हिस्सा बन सकें। यह सब एक सामाजिक उद्देश्य को इंगित करता है न कि लाभ के उद्देश्य को।"

    कोर्ट का अवलोकन

    कोर्ट ने पाया कि केंद्र शासित प्रदेस चंदीगढ़ प्रशासन की इंजीनियरिंग विंग सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) के समान है, जिन्हें भारत सरकार ने एक आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने के लिए बनाया है।

    बेंच ने इसके अलावा भारत के पहले प्रधानमंत्री का जिक्र करते हुए कहा कि अक्टूबर, 1963 में भाखड़ा नंगल बांध का उद्घाटन करते समय नेहरू ने इसे 'आधुनिक भारत का मंदिर' कहा था और इसकी स्थापना के पीछे भारत का उद्देश्य विश्व के दूसरे देशों पर निर्भरता कम करना था। भारत संघ द्वारा किए गए प्रस्तुत किया गया कि इकाई का निजीकरण करके भारत को 'आत्मनिर्भर भारत' बनाना है।

    कोर्ट ने टिप्पणी की कि,

    "यदि प्रतिवादियों की ओर से तर्क भारत को 'आत्मनिर्भर भारत' बनाना है तो हम यह समझ नहीं पाए हैं कि भारत में भारतीयों द्वारा संचालित, भारतीय राज्य को अपने मुनाफे से समृद्ध करना और भारतीयों के लिए रोजगार पैदा करने वाली संस्था से ज्यादा 'आत्मनिर्भर' क्या हो सकता है। हम यह भी महसूस करते हैं कि इसे स्थापित करने का विचार समाज के उन वर्गों को शामिल करने के उद्देश्य से एक समतावादी है, जिन्हें मदद की जरूरत है।"

    कोर्ट ने आगे समावेश के दर्शन को जोड़ा और कहा कि जैसा कि प्रस्तावना में डॉ अम्बेडकर ने 'आर्थिक न्याय' की अवधारणा भी शामिल की है।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "इस देश के महानतम निर्माताओं के अनुसार संविधान के इस आदर्श को प्राप्त करने के लिए विशेष रूप से ऐसे अनिश्चित समय में जिसमें हम रहते हैं, प्रशासन के लिए ऐसे संस्थानों की रक्षा करना अनिवार्य हो जाता है जो आजीविका की सुरक्षा करते हैं।"

    "निजीकरण सभी बीमारियों के लिए रामबाण नहीं है"

    कोर्ट ने आगे कहा कि निजीकरण सभी बीमारियों के लिए रामबाण नहीं है और तथाकथित सही मकसद नहीं होने पर निजीकरण विफल हो जाता है क्योंकि यह न केवल एक लाभदायक है, बल्कि ग्राहकों की संतुष्टि के उच्च मानकों से बार-बार मेल खाता है और शहर को सुंदर बनाए रखने में इसकी बड़ी भूमिका है।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "यह रिकॉर्ड किया गया है कि हम इस तथ्य के साथ सामंजस्य स्थापित करने में असमर्थ हैं कि जब पूरी दुनिया घातक वायरस से जूझ रही है, ऑक्सीजन की कमी है, आईसीयू नहीं है, श्मशान घाट पर लंबी कतार है और अस्पतालों में कोई जगह नहीं है, अनुचित इतिहास के इस चरण में लाभ कमाने वाले विभाग को निजी संस्था को सौंपने के लिए प्रशासन की ओर से जल्दीबाजी में उठाया गया कदम सही नहीं है।

    कोर्ट ने इसके अलावा कहा कि COVID-19 महामारी के कारण न्यायालयों के कामकाज में काफी हद तक कटौती की गई और उसी के कारण याचिका पर फैसला नहीं किया जा सका। इस प्रकार स्थिति की अत्यावश्यकता को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने कहा कि इस स्तर पर निजीकरण को रोकने के लिए संचार के संचालन को तेजी से ट्रैक करके न्याय और मानवता का बेहतर कार्य किया जाएगा।

    कोर्ट ने मामले को 18 अगस्त, 2021 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध की है।

    पूरा मामला

    याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत किया गया है कि विद्युत अधिनियम, 2003 के तहत निजीकरण का कोई प्रावधान नहीं है और ओबीसी, बीसी, खेल कर्मियों, पूर्व सेना कर्मियों और समाज के विभिन्न वंचित वर्गों के लिए आरक्षण नीति के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है।

    याचिकाकर्ता ने आगे प्रस्तुत किया कि केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ प्रशासन की सरकार की 100% हिस्सेदारी बेचकर चंडीगढ़ में बिजली विंग, यूटी, चंडीगढ़ / बिजली उपयोगिता के निजीकरण के लिए प्रभावी कदम उठाया गया। कानूनी रूप से सही नहीं है। यह फैसला अधिनियम की धारा 131 (2) का उल्लंघन है, जिसके अनुसार बिजली विभाग/उपयोगिता को पूरी तरह से निजी इकाई में स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है, जिसमें सरकार की कोई हिस्सेदारी या नियंत्रण नहीं है।

    याचिकाकर्ता द्वारा यह भी प्रस्तुत किया गया कि यू.टी., चंडीगढ़ के विद्युत विंग जो पिछले 3 वर्षों से मुनाफे में चल रहा है, राजस्व अधिशेष है और बिजली मंत्रालय द्वारा निर्धारित लक्ष्य 15% से कम टी एंड डी हानियों के साथ आर्थिक रूप से कुशल की यूटी प्रशासन द्वारा 100% हिस्सेदारी की बिक्री अन्यायपूर्ण और अवैध है।

    कोर्ट ने दलीलों को सुनने के बाद दिंसबर में अगले आदेश तक कार्यालय ज्ञापन और नोटिस आमंत्रण के संचालन और प्रभाव पर रोक लगा दी और निर्देश दिया कि अदालत के सामान्य कामकाज के फिर से शुरू होने के छह महीने के भीतर मामले की सुनवाई की जाएगी।

    यूटी प्रशासन, चंडीगढ़ द्वारा (अप्रैल 2021 में) मैसर्स डेलॉयट टौच तोहमात्सु इंडिया एलएलपी, गुड़गांव को एक निर्देश जारी किया गया कि चंडीगढ़ में बिजली के निजीकरण की प्रक्रिया को तेज किया जाए और इस निर्देश को आवेदन दायर कर उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई।

    यूटी पॉवरमैन यूनियन, चंडीगढ़ (पंजीकृत) ने 3 मई, 2021 को एक अभ्यावेदन दिया और प्रशासक और अध्यक्ष, आपदा प्रबंधन समिति, चंडीगढ़ के सलाहकार से संपर्क किया, जिसमें अनुरोध किया गया कि निजीकरण के मामले में आगे की कार्यवाही रोक दी जाए, कम से कम जब तक इस मामले में निर्णय न आ जाए। द

    याचिकाकर्ता ने कहा कि बिजली विभाग के कर्मचारी अपनी जान जोखिम में डालकर चिकित्सा और अन्य संस्थानों को निर्बाध बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए फ्रंटलाइन कोरोना वारियर्स के रूप में काम कर रहे हैं। यह भी दावा किया गया कि बिजली विभाग के कर्मचारियों के सक्रिय और कार्यात्मक समर्थन के बिना घातक बीमारी के खिलाफ लड़ाई संभव नहीं होगी और प्रार्थना की गई कि मानव जाति के इस कठिन दौर में बिजली विंग का निजीकरण करने के लिए इतनी जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।

    चंडीगढ़ प्रशासन और अन्य प्रतिवादियों ने अपने जवाब में प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता-यूटी पावरमैन की आशंकाएं पूरी तरह से गलत और निराधार हैं और प्रतिवादियों ने याचिका को खारिज करने की प्रार्थना की।

    केस का शीर्षक - यूटी पावरमेन यूनियन, चंडीगढ़ (रजि.) बनाम भारत संघ और अन्य

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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