पुलिस अधिकारियों को यौन उत्पीड़न और बलात्कार के मामलों से निपटने के लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता, NHRC ने केंद्र व राज्यों से रिपोर्ट मांगी

LiveLaw News Network

5 Dec 2019 8:45 AM GMT

  • पुलिस अधिकारियों को यौन उत्पीड़न और बलात्कार के मामलों से निपटने के लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता, NHRC ने केंद्र व राज्यों से रिपोर्ट मांगी

    राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC)ने देश में यौन उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं पर गंभीर चिंता व्यक्त की और मीडिया रिपोर्टों पर स्वत संज्ञान लेते हुए केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी कर रिपोर्ट मांगी है। निर्भया फंड के उपयोग व ऐसे संवेदनशील मामलों से निपटने के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) पर यह रिपोर्ट मांगी गई है।

    एक प्रेस विज्ञप्ति में, एनएचआरसी ने कहा,

    ''दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, जिसने सबसे लंबे समय तक लिखे गए ,संविधान को अपनाया है और लैंगिक समानता की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है, आज उसकी महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित वातावरण होने के चलते आलोचना की जा रही है। बलात्कार, छेड़छाड़, लिंग आधारित भेदभाव और महिलाओं के खिलाफ इस तरह के अन्य अत्याचार ,दुर्भाग्य से, नियमित मीडिया की सुर्खियाँ बन रहे हैं।

    यह सुनिश्चित करने के लिए संवैधानिक और वैधानिक प्रावधान हैं कि महिलाओं को किसी भी तरह के भेदभाव और उत्पीड़न का सामना न करना पड़े। लेकिन एक खतरनाक प्रवृत्ति चल रही है जो यह संकेत दे रही है कि पूरे देश में चीजें बदतर होती जा रही है, जो महिलाओं के जीवन, स्वतंत्रता, गरिमा और समानता के अधिकार के उल्लंघन के समान हैं।

    हाल ही में, मीडिया में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें अपराधियों ने कानून के प्रति गंभीर अनादर दिखाते हुए महिलाओं का यौन शोषण व उनसे घोर अपमानजनक और अमानवीय व्यवहार किया है। ऐसे कई उदाहरण हैं जहां पर कथित तौर पर घटनाएं प्रशासन और कानून को लागू करने वाली सार्वजनिक एजेंसियों द्वारा बरती गई घोर लापरवाही के कारण हुई हैं।''

    तेलंगाना में 26 वर्षीय एक लड़की, जिसका कथित रूप से चार आरोपियों ने बेरहमी से गैंगरेप किया और उसके बाद उसे मार डाला, इस मामले का जिक्र करते हुए एनएचआरसी ने कहा कि-

    ''अपराधियों ने न केवल पीड़िता की गरिमा को अपमानित किया, बल्कि उसे मार डाला और उसके शरीर को जला दिया। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, पीड़िता के भाई ने शमशाबाद पुलिस थाने में रात को लगभग 11.00 बजे सूचना दी थी कि उसकी बहन पिछले दो दिनों से मिल नहीं रही है। लेकिन पुलिस कर्मियों ने उसकी चिंताओं को दरनिकार कर दिया और घटना के घटने के बाद भी काफी देरी से प्राथमिकी भी दर्ज की गई। हालांकि आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है, लेकिन पुलिस द्वारा अगर समय पर कार्रवाई की गई होती, तो शायद इस वीभत्स घटना को रोका जा सकता था।''

    आयोग ने झारखंड में हाल ही में एक कानून की छात्रा से हुए गैंगरेप का भी जिक्र किया। पीड़िता का दो लोगों ने बंदूक की नोक पर एक बस स्टॉप से अपहरण कर लिया था और बाद में 12 पुरुषों ने उससे सामूहिक बलात्कार किया था।

    ''एक अन्य मीडिया रिपोर्ट में, जो आज दिनांक 02 दिसम्बर 2019 को प्रकाशित की गई है,जिसमें राजस्थान की एक 6 वर्षीय लड़की की एक दिसम्बर 2019 को उसकी स्कूल की बेल्ट से गला घोंटकर हत्या कर दी गई थी। पीड़ि़ता पिछले एक दिन से लापता थी।दस मामले में पुलिस ने कोई भी कार्रवाई नहीं की है और न ही किसी को गिरफ्तार किया है। हाल के दिनों में देश भर में ऐसे कई मामले सामने आए हैं। इन सभी घटनाओं ने संकेत दिया है कि सिर्फ पीड़ितों के लिए कड़े कानून और फंड बनाने से इस परिदृश्य को नहीं बदला सकता है। जब तक कि पुलिस अधिकारियों को विशेष रूप से प्रशिक्षित न किया जाए और उनका महिलाओं के मुद्दों के प्रति उनका रवैया बदला नहीं जाता है।

    इस तरह की घटनाओं और घबराहट पैदा करने या परेशान करने वाली स्थिति से निपटने के लिए ''स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर'' (एसओपी) का अभाव प्रतीत होता है। यह आरोप लगाए जा रहे हैं कि जब भी किसी बालिग या नाबालिग लड़की के लापता होने के बाद परिजन मदद के लिए किसी पुलिस स्टेशन में जाते हैं , तो पुलिस अधिकारियों का जवाब आमतौर पर यही रहता है कि वह किसी के साथ चली गई होगी।

    इस अपमानजनक और रूढ़ीवादी मानसिकता को बदलने की जरूरत है। मुख्य मुद्दे को प्रभावी ढंग से संबोधित करने या उस पर विचार करने की आवश्यकता है क्योंकि इस गंभीर चुनौती ने न केवल हमारे समाज में भय और अनिश्चितता का माहौल बनाया दिया है, बल्कि हमारे देश की छवि को भी बुरी तरह से कलंकित किया है। "

    एनएचआरसी ने यह भी कहा कि निर्भया फंड, जिसे देश में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए शुरू किया गया था, को कम कर किया गया है और राज्य सरकारों द्वारा उसका उचित उपयोग भी नहीं किया जा रहा है-

    '' दो दिसम्बर 2019 को आज ही प्रकाशित एक समाचार रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2014 से, यूटी यानि केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ को निर्भया फंड के तहत 7.46 करोड़ रुपये की राशि दी गई है, लेकिन प्रशासन ने इसमें से केवल 2.60 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। योजनाओं की घोषणाएं,कानून बनाना और धनराशि का प्रावधान,यह सभी तब तक अपने उद्देश्य को पूरा नहीं कर पाएंगे जब तक इनको ठीक से लागू नहीं किया जाएगा।''

    आयोग ने यह जानते हुए कि इस विषय पर विभिन्न मंचों द्वारा विचार किया जा रहा है, ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को नोटिस जारी किया है। सभी को निर्देश दिया गया है कि छह सप्ताह के भीतर रिपोर्ट दायर करके बताएं कि उनके राज्यों में निर्भया फंड की क्या स्थिति है,जिसमें यह भी बताया जाए कि पिछले तीन साल में इस फंड में से कितना पैसा खर्च किया है और कितना अभी बचा हुआ है।

    आयोग ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के पुलिस महानिदेशकों को भी नोटिस जारी कर छह सप्ताह में रिपोर्ट दायर करने के लिए कहा है। आयोग ने मानक संचालन प्रक्रिया या एसओपी और महिलाओं के साथ होने वाले यौन शोषण और अत्याचार से संबंधित मामलों से निपटने के लिए उनके द्वारा अपनाई जाने वालीे सर्वोत्तम प्रक्रियाओं या तरीकों के बारे में पूछा है। साथ ही इस बात का भी विवरण या जानकारी मांगी है कि महिलाओं से संबंधित मुद्दों के प्रति असंवेदनशील और लापरवाही बरतने वाले पुलिस अधिकारियों/ अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जाती है।

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