COVID-19 के संदिग्ध मरीज़ों का किया जाए निःशुल्क परीक्षण, गरीबों के लिए मुफ्त राशन/आश्रय की मांग, कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका

LiveLaw News Network

30 March 2020 2:45 AM GMT

  • COVID-19 के संदिग्ध मरीज़ों का किया जाए निःशुल्क परीक्षण, गरीबों के लिए मुफ्त राशन/आश्रय की मांग, कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका

    कर्नाटक हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें सभी COVID-19 के संदिग्ध रोगियों की निजी या सार्वजनिक प्रयोगशाला में निःशुल्क परीक्षण की सुविधा देने की मांग की गई है। इसके अलावा फ्रंटलाइन हेल्थकेयर वर्कस को उचित उपकरण और बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करवाना और समाज के गरीब व निचले तबके के लोगों के लिए भोजन और आश्रय की व्यवस्था करने की भी मांग की गई है।

    नो याॅर राइट्स एसोसिएशन की तरफ से यह जनहित याचिका दायर की गई है । जिसे 30 मार्च को मुख्य न्यायाधीश की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

    वेंटिलेटर के साथ-साथ डॉक्टरों व हेल्थकेयर वर्कर के लिए पीपीई

    याचिका में फ्रंटलाइन हेल्थकेयर वर्करों के लिए सुरक्षा उपकरण, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) और अन्य संरचनात्मक सुविधाओं की उपलब्धता के बारे में चिंता व्यक्त की गई है। यह भी कहा गया है कि कि फ्रंटलाइन कार्यकर्ता या वर्कर,वो लोग हैं जो सीधे तौर पर और मुख्य रूप से संक्रमण के संपर्क में आने के जोखिम में हैं। परंतु उनको डब्ल्यूएचओ द्वारा अनुशंसित पर्याप्त सुरक्षा उपकरण नहीं दिए गए हैं, इसलिए प्रार्थना की जा रही है कि संबंधित राज्य प्राधिकरणों को निर्देश दिया जाए कि वह फ्रंटलाइन हेल्थ वर्करस को डब्ल्यूएचओ व अन्य स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा अनुशंसित बुनियादी सुरक्षा उपकरण और COVID-19 परीक्षण किटों की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करें।

    सार्वजनिक और निजी लैब में हो सभी का निःशुल्क COVID-19 का परीक्षण

    याचिका में यह भी कहा गया है कि चूंकि यह महामारी राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर का स्वास्थ्य आपातकाल है, इसलिए सरकार को सभी COVID-19 के संदिग्ध रोगियों के लिए निजी या सार्वजनिक प्रयोगशाला में निःशुल्क परीक्षण की सुविधा देने की व्यवस्था करनी चाहिए।

    यह COVID-19 के उन संदिग्धों को आगे आने और परीक्षण कराने में सहायता करेगा जो गरीब हैं और अपने उपचार का खर्च नहीं उठा सकते हैं। घरों में मुफ्त राशन पहुंचाना, गरीब और कमजोर लोगों के लिए आश्रय याचिका में दावा किया गया है कि असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को राष्ट्रीय लॉकडाउन के कारण सबसे ज्यादा मुश्किल हो रही है , क्योंकि इस लाॅकडाउन ने उनको बेघर व बेरोजगार कर दिया है।

    याचिका में कहा गया है कि-

    ''लाॅकडाउन से होने वाले परिणामों के लिए उचित व पर्याप्त प्रबंध किए बिना ही राज्य में लाॅकडाउन कर दिए जाने के कारण गरीबों, दलितों, असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को मुश्किल में पड़ गए हैं क्योंकि उनके पास अपने लिए आश्रय, भोजन, वस्त्र आदि का प्रबंध करने के लिए कोई साधन नहीं हैं। इसके अलावा समाज के सबसे कमजोर वर्ग जैसे दहाड़ी मजदूर, प्रवासी कामगार, बीपीएल परिवार और आश्रयहीन को भी बड़ी मुश्किल में डाल दिया गया है क्योंकि उनके पास अपनी जीविका की मूलभूत आवश्कताओं के लिए खर्च करने के लिए कोई आय का साधन नहीं रहा है।

    दैनिक मजदूरी करने वाले लोग सिर्फ उसी दिन के लिए अपनी आजीविका कमाते हैं,जिस दिन वह काम करते हैं। अगर किसी दिन उनके पास कोई काम नहीं होता है तो पूरे परिवार को बहुत दुख और भुखमरी का सामना करना पड़ता है।''

    यह भी इंगित किया गया कि उन गरीब परिवारों के बच्चों, स्तनपान कराने वाली और गर्भवती महिलाएं को भी असहाय कर दिया गया है जो आंगनवाड़ी केंद्रों के पौष्टिक भोजन और मिड-डे मील योजनाओं पर निर्भर थे। राज्य में पूर्ण लॉकडाउन के कारण वह इन केंद्रों तक पहुंच नहीं पा रहे हैं।

    इसलिए, याचिकाकर्ता संगठन ने मांग की है कि संबंधित राज्य प्राधिकरणों को निर्देश दिया जाए कि वह समाज के गरीब और वंचित वर्गों के लिए भोजन और आश्रय की बुनियादी सुविधाओं प्रदान करें।

    इस संबंध में, यह भी सुझाव दिया गया है कि राज्य सरकार कम से कम 90 दिनों की निर्दिष्ट अवधि के लिए फ्री में भोजन, स्वच्छ पानी, दवाइयाँ आदि आवश्यक वस्तुओं की डोर स्टेप डिलीवरी पर विचार कर सकती है।

    इसी बीच, याचिकाकर्ता ने यह भी मांग की है कि बेघर, भिखारी, और प्रवासी श्रमिक के परिवारों को सरकारी शेल्टर होम या आश्रय गृह में भेज दिया जाए या रख लिया जाए। ताकि उन्हें उनके स्वास्थ्य और जीवन की रक्षा के लिए सामाजिक दूरी बनाने के लिए पर्याप्त स्थान प्रदान किया जा सके।

    जेल के कैदियों, छात्रावास और अन्य संस्थानों में रहने वाले लोगों को सुविधाएं

    याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि जेल और रिमांड घरों में काफी सारे कैदी व ऐसे किशोर बंद है,जिनको अभी कानून के अनुसार अपने आप को नाबालिग साबित करता है। जिनको एक-एक कमरे में 15 से 20 की संख्या में रखा गया है।

    इसी तरह राज्य में सरकारी महिला छात्रावास, चिल्ड्रेन हॉस्टल, बेघरों के लिए आश्रय गृह, अनाथालय घर, मानसिक और शारीरिक विकलांग घर और वरिष्ठ नागरिक घर आदि भी हैं।

    याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि उन सबके संक्रमण की चपेट में आने की संभावना काफी ज्यादा है। इसलिए यह प्रार्थना की गई है कि उनको आवश्यक सुविधाएं प्रदान की जाएं ताकि उनको सामाजिक दूरी बनाने के लिए पर्याप्त स्थान मिल सकें।

    ईएमआई सहित सभी प्रकार के बिल भुगतानों में छूट दी जाए, मास्क और सैनिटाइजर हो उचित मूल्य पर उपलब्ध

    यह भी दलील दी गई है कि मध्यम आय वर्ग के लोग भी इस संकट के कारण बडे़ स्तर पर वित्तीय संकट का सामना करेंगे। इस संबंध में यह इंगित किया गया है कि-

    ''मध्यम वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग के लोग, जिन्होंने अपनी अलग-अलग आवश्यकताओं के लिए विभिन्न बैंकों से लोन लिया है। जैसे व्यवसाय ऋण, गृह ऋण, स्वरोजगार ऋण आदि। परंतु लाॅकडाउन के कारण प्रतिष्ठान, दुकानें, उद्योग बंद हो गए हैं। जिस कारण लोगों की नौकरियों पर खतरा मंडरा रहा है और व्यवसायों में नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। इस कारण वह सभी मासिक ईएमआई देने की स्थिति में नहीं हैं।''

    इन सबको देखते हुए याचिका में मांग की गई है कि एक आदेश पारित किया जाए कि जब तक बीमारी का प्रकोप नियंत्रित नहीं हो जाता है तब तक आम जनता को पानी के बिलों, बिजली बिलों, इंटरनेट बिलों के भुगतान से छूट दी जाए और मासिक ईएमआई पर दो महीने तक ब्याज में छूट दी जाए।

    इसी के बीच, व्यक्तिगत स्वच्छता उपकरणों जैसे कि मास्क और सैनिटाइजर की ब्लैक मार्केटिंग का मुद्दा भी उठाया गया है और न्यायालय से आग्रह किया गया है कि उचित मूल्य पर ऐसे उपकरणों की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए।

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