COVID-19 डेटा प्रोसेस करने के लिए यूएस- कंपनी ''स्प्रिंकलर'' के साथ केरल सरकार के अनुबंध को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका
LiveLaw News Network
19 April 2020 11:45 AM IST
COVID-19 रोगियों से संबंधित डेटा तैयार करने के लिए केरल सरकार और अमेरिका स्थित स्प्रिंकलर कंपनी के बीच हुए समझौते को चुनौती देते हुए एक याचिका केरल हाईकोर्ट में दायर की गई है।
बालू गोपालकृष्णन नामक एक वकील ने यह याचिका दायर की है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि पिनारयी विजयन सरकार द्वारा COVID-19 डेटा का संचयन और विश्लेषण करने के लिए एक विदेशी निजी कंपनी की सेवाओं को चुनने का निर्णय उपयुक्त नहीं है या इस निर्णय में बेईमानी नजर आ रही है। याचिकाकर्ता ने सी-डीआईटी और एनआईसी जैसी राज्य संस्थाओं की अनदेखी करते हुए एक विदेशी कंपनी को काम सौंपने के फैसले पर सवाल उठाया है।
याचिकाकर्ता का कहना है कि नागरिकों का यह डेटा उनकी सहमति के बिना एकत्र किया गया था और एक विदेशी सर्वर में संग्रहीत किया गया है। याचिकाकर्ता ने बताया है कि COVID-19 के रोगियों की 1.5 लाख से अधिक संवेदनशील मेडिकल जानकारी इस कंपनी के पास हैं।
वकील जयकर के.एस के जरिए दायर इस याचिका में कहा गया है कि-''यदि ऐसी संवेदनशील जानकारी किसी निजी तीसरे पक्ष के वेब सर्वर में संग्रहीत की जा रही है तो कम से कम राज्य को इसके लिए उन व्यक्तियों से सहमति लेनी चाहिए और उनको सूचित भी करना चाहिए,जिनसे यह डेटा एकत्र किया गया है। साथ ही उनको इसके संभावित दुरुपयोग से भी अवगत कराना चाहिए। यह आसानी से देखा जा सकता है कि डेटा को एकत्रित करने के लिए सरकारी एजेंसियांअच्छी तरह से सुसज्जित हैं या ऐसा करने के पूरी तरह योग्य हैं। इसलिए बड़ा सवाल यह है कि ऐसी संवेदनशील सूचनाओं को स्टोर करने के लिए राज्य ने तीसरे प्रतिवादी (स्प्रिंकलर) का चुनाव क्यों किया?''
याचिकाकर्ता ने बताया है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में डेटा चोरी के आरोपों में इस कंपनी के खिलाफ केस चल रहा है।
के.एस पुट्टस्वामी मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि इस समझौते के परिणामस्वरूप नागरिकों के निजता के अधिकार का उल्लंघन हुआ है जो उन्हें संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिला हुआ है।
याचिकाकर्ता ने सवाल किया है कि-
''जो डेटा तीसरे प्रतिवादी (स्प्रिंकलर) को एकत्रित करके भेजा जा रहा है,वो डेटा मार्केट में एक मूल्यवान वस्तु है,जिससे करोड़ों डॉलर कमाए जा सकते हैं। इसलिए यह एक सवाल उठता है कि ऐसा क्यों किया गया है। प्रथम प्रतिवादी उपरोक्त तथ्य की उपेक्षा या अनदेखी नहीं कर सकता है।
अपने देश में सबसे अच्छे आईटी दिमाग वाले लोग हैं और सलाहकारों की उत्कृष्टता है। वहीं डेटा का हस्तांतरण एक राज्य द्वारा किया जा रहा है, न कि किसी आम आदमी द्वारा। इतना ही नहीं यह निर्णय इस मामले के सभी पहलुओं पर विशेषज्ञों की एक टीम द्वारा विचार करने के बाद सामूहिक रूप से लिया गया है, न कि किसी एक व्यक्ति द्वारा। फिर भी ऐसा क्यों किया गया?''
याचिकाकर्ता ने इस मामले में भारत सरकार को भी एक प्रतिवादी के रूप में जोड़ा है। उसने कहा कि एक विदेशी कंपनी के साथ अनुबंध में प्रवेश करने का निर्णय केंद्र सरकार की सहमति के बिना नहीं लिया जा सकता था।
याचिका में कहा गया है कि-
''दूसरे प्रतिवादी (संघ) को यह अधिकार है कि उनसे राज्य के ऐसे निर्णयों के बारे में सहमति ली जानी चाहिए। परंतु यह एक दुखद सच्चाई है कि कथित समझौते को निष्पादित करने से पहले दूसरे प्रतिवादी से कभी भी परामर्श नहीं लिया गया था और न ही इसके लिए कभी उनकी सहमति मांगी गई थी। प्रथम प्रतिवादी को लगता है कि ऐसे महत्वपूर्ण निर्णय,जिनमें केंद्र सरकार की सहमति की जरूरत है,वो खुद से लिए जा सकते हैं और उनके द्वारा किए गए निर्णय ही प्रबल होंगे।''
याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया है कि यह समझौता सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 के प्रावधानों का भी उल्लंघन है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि-
''अधिनियम में बताया गया है कि कैसे संवेदनशील जानकारी को सुरक्षित रखना चाहिए और किस तरीके से इसे प्रेषित किया जा सकता है। प्रथम प्रतिवादी ने सभी कानूनी विरोधाभासों के साथ बेतरतीब तरीके से एक गैरकानूनी अनुबंध किया है। यह अनुबंध एक आम व्यक्ति की जानकारी को एक निजी संस्था के हाथों में सौंप रहा है। राज्य का यह कर्तव्य बनता है वह व्यक्तियों की रक्षा करे न कि स्वयं उनको किसी तीसरे पक्ष के समक्ष बेनकाब कर दें।''
याचिका में मांग की गई है कि राज्य सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह स्प्रिंकलर कंपनी के साथ समझौते को समाप्त कर दें। वहीं COVID-19 सूचनाओं को स्टोर करने और उनका विश्लेषण के लिए एक सरकारी-आईटी कंपनी नियुक्त करें।
याचिकाकर्ता ने यह भी मांग की है कि केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए कि इस आईटी अनुबंध में की गई ''बेईमानी'' का पता करने के लिए एक फॉरेंसिक ऑडिट करवाएं।
अंतरिम राहत के तौर पर याचिकाकर्ता ने मांग की है कि स्प्रिंकलर के वेब सर्वर में COVID-19 की सूचनाओं को अपलोड करने से रोकने के लिए निर्देश जारी किया जाए।
स्प्रिंकलर के साथ हुए इस अनुबंध को लेकर राज्य में बड़ा राजनीतिक विवाद भी हुआ है। विपक्ष ने आरोप लगाया है कि इस अनुबंध को करने में गंभीर अनियमितताओं बरती गई हैं।
मीडिया साक्षात्कार में आए आईटी सचिव एम शिवशंकर ने बताया कि COVID-19 महामारी के कारण बने सार्वजनिक संकट के चलते यह समझौता किया गया था।
डेटा चोरी के आरोपों को खारिज करते हुए आईटी सचिव ने कहा कि इस डेटा पर अंतिम या पूरा नियंत्रण राज्य का ही है। साथ ही यह भी कहा कि कंपनी केवल इस डेटा को एक संरचित जानकारी के रूप में प्रस्तुत करने के लिए इसका संचयन कर रही है।
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