स्पेसिफिक परफॉर्मेंस एक्ट में अस्थायी आदेश का अनुरोध करने वाले वादी को अविवादित तथ्यों के आईने में प्रथमदृष्ट्या मजबूत आधार दिखाना होगा : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

9 Jan 2020 4:30 AM GMT

  • स्पेसिफिक परफॉर्मेंस एक्ट में अस्थायी आदेश का अनुरोध करने वाले वादी को अविवादित तथ्यों के आईने में प्रथमदृष्ट्या मजबूत आधार दिखाना होगा : सुप्रीम कोर्ट

    उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि करार के तहत निश्चित अदायगी (स्पेसिफिक परफॉर्मेंस) से संबंधित मुकदमे में अस्थायी आदेश के तौर पर राहत पाने के लिए अविवादित तथ्यों के जरिये प्रथमदृष्ट्या मजबूत आधार बनाना जरूरी है। न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने इसकी व्याख्या करते हुए कहा कि ऐसा इसलिए क्योंकि निश्चित अदायगी खुद में विवेकाधीन उपाय है।

    पीठ ने यह भी कहा कि अंतरिम आदेश के लिए प्रथमदृष्ट्या मामला, सुविधा का संतुलन और अपूरणीय क्षति जैसे तथ्यों के अलावा संबंधित पक्षों का व्यवहार भी मायने रखता है।

    पीठ ने कहा,

    "विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963 के अध्याय-7, धारा 36 निवारात्मक राहत प्रदान किये जाने से संबंधित है। धारा 37 कहती है कि किसी मुकदमे में अस्थायी आदेश नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) से विनियमित होता है। निश्चित अदायगी से संबंधित मुकदमे में राहत प्रदान किया जाना खुद में एक विवेकाधीन राहत है। करार के अनुरूप निश्चित अदायगी के मामले में अस्थायी आदेश के लिए वादी को अविवादित तथ्यों के जरिये प्रथमदृष्ट्या पुख्ता आधार पेश करना होगा। इस तरह के आदेश के लिए वादी का व्यवहार भी बहुत प्रासंगिक आधार होगा। ऐसे पड़ाव पर निर्णय न्यायसंगत होना चाहिए, न कि मनमाना।"

    शीर्ष अदालत 'स्पेसेफिक परफॉर्मेंस' से जुड़े एक मुकदमे में ट्रायल कोर्ट के उस अंतरिम आदेश के खिलाफ अपील की सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने बचावपक्षों को प्रॉपर्टी से संबंधित कोई भी बिक्री विलेख निष्पादित करने या कोई भी दस्तावेज तैयार करने से रोक दिया था। इस आदेश की पुष्टि हाईकोर्ट ने भी की थी, जिसे बचाव पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

    बचावपक्षों ने दलील दी थी कि बिक्री के लिए कोई करार सम्पन्न नहीं हुआ था तथा इस मामले में अभी सौदेबाजी हो ही रही थी। उन्होंने कहा था कि जब बातचीत असफल रही, तो अग्रिम राशि वादी को वापस कर दी गयी थी।

    वादी ने यह कहते हुए निचली अदालत के आदेश को जारी रखने का अनुरोध किया था कि दोनों पक्षों के बीच करार सम्पन्न हो चुका था। इसे साबित करने के लिए उसने दोनों पक्षों के बीच ई-मेल और ह्वाट्सऐप संदेश के जरिये हुई बातचीत का उल्लेख किया था। वादी ने यह भी कहा था कि बचावपक्षों ने जल्दबाजी में तीसरे पक्ष से बिक्री विलेख निष्पादित भी कर लिया था, जबकि उसके साथ करार जारी था।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि करार के अस्तित्व में रहने का मसला खुद विवादित है।

    "अर्थ की दृष्टि से ह्वाट्सऐप संदेश, जो आभासी संवाद है, साक्ष्य से जुड़ा मामला होता है और इसके विषय वस्तु को ट्रायल के दौरान एविडेंस-इन-चीफ और क्रॉस-एक्जामिनेशन द्वारा साबित किया जाना होता है। यह समझने के लिए कि करार सम्पन्न हुआ था या नहीं, ई-मेल एवं ह्वाट्सऐप संदेशों को एक-साथ पढ़ना और समझना होगा।"

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार, वादी के पक्ष में अस्थायी आदेश का कोई औचित्य नहीं था।

    " 'एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी, गोंडल एवं अन्य बनाम गिरधरभाई रामजीभाई छानियारा एवं अन्य (1997) 5 एससीसी 468' मामले में दिये गये फैसले के अनुरूप दोनों पक्षों के बीच लंबी बातचीत यह दर्शाती है कि मामला शुरुआती अवस्था में ही था। इस पड़ाव पर वादी यह स्थापित करने में विफल रहा है कि दोनों पक्षों के बीच करार को लेकर तालमेल बना हुआ था।"

    कोर्ट ने यह भी कहा कि यह मुकदमा बचाव पक्ष द्वारा अग्रिम राशि लौटाये जाने के सात माह बाद दायर किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वादी का यह दलील बिल्कुल ही कमजोर दलील है कि दूरदर्शी कारोबारी के तौर पर उसने बगैर मुकदमा किये निदान की उम्मीद में इंतजार किया था और इसमें असफल रहने पर मुकदमा दर्ज कराया था।

    इस पृष्ठभूमि में सुप्रीम कोर्ट ने कहा :

    "इसलिए हमारा स्पष्ट मत है कि मौजूदा मामले के तथ्यों और परिस्थितियों तथा इस स्तर पर हमारे सामने रखी गई सामग्रियों की प्रकृति के मद्देनजर साक्ष्यों के आधार पर यह तय किया जाना है कि क्या दोनों पक्षों के बीच करार निष्पादित हुआ था या नहीं। यदि वादी ने निष्पादित करार और/या मौखिक करार की दलील देते हुए जरूरी दस्तावेज को केवल औपचारिकता बताया है तो 'बृजमोहन' मामले में दिये गये फैसले के अनुरूप यह साबित करने का जिम्मा वादी पर होता है कि दोनों पक्ष संविदागत करार पर अमल के लिए तैयार थे।"

    इन तथ्यों के आधार पर अंतरिम आदेश खारिज करते हुए अपील स्वीकार की जाती है।

    मुकदमे का ब्योरा :-

    शीर्षक :- अम्बालाल साराभाई एंटरप्राइज लिमिटेड बनाम के एस इंफ्रास्पेस एलएलपी एवं अन्य तथा हरियाणा कंटेनर्स लिमिटेड बनाम के एस इंफ्रास्पेस एलएलपी एवं अन्य

    केस नं.:- सिविल अपील संख्या 9346, 9347, 9348-49/ 2019

    कोरम :- न्यायमूर्ति अशोक भूषण एवं न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा

    पेश वकील :- वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल एवं हुजेफा अहमदी (अपीलकर्ताओं की ओर से) एवं वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी (प्रतिवादियों की ओर से)


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